–दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
‘दंगल’ के ताऊ आमिर खान ने पूछा था-‘म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के…?’ अब यह हरियाणवी फिल्म उसी के जवाब में कह रही है-‘छोरियां छोरों से कम नहीं होतीं।’ बता दूं कि 2016 में आई ‘सतरंगी’ के बाद अब जाकर कोई हरियाणवी फिल्म रिलीज़ हुई है। ज़ी स्टूडियो और सतीश कौशिक इसके निर्माता हैं और सतीश के असिस्टैंट रहे राजेश अमरलाल बब्बर इसके निर्देशक।
कहानी इसकी साधारण-सी है। हरियाणा के एक गांव में छोरे की चाहत रखने वाले जयदेव चौधरी के घर में जब दूसरी भी छोरी आई तो वह निराश हो गया। लेकिन उसी दूसरी बेटी बिनीता ने हर मैदान में छोरों को मात दी और एक दिन आई.पी.एस. अफसर बन कर माता-पिता का सिर फख्र से ऊंचा कर दिया।
अक्सर हम हरियाणा प्रदेश में लड़कियों के साथ पक्षपात की खबरें सुनते हैं। हालांकि एक सच यह भी है कि लड़कों को सिर्फ हरियाणा में ही नहीं, हर जगह आगे रखा जाता है। समझा जाता है कि छोरियां तो कमज़ोर हैं, पराया धन हैं, ये क्या नाम रोशन करेंगी। लेकिन इसी देश और इसी हरियाणा की बेटियों ने इस धारणा को गलत भी साबित किया है। यह कहानी भी यही कहती है। ‘दंगल’ से यह बिल्कुल अलग है। उसमें एक पिता अपने सपनों को अपनी बेटियों के ज़रिए सच करने में लगा है लेकिन यहां तो पिता का कोई सपना ही नही हैं। उसकी निराशा और मजबूरी देख कर खुद बिनीता अपने-आप से यह वादा करती है कि वह आई.पी.एस. बनेगी और वह बनती भी है।
साधारण कहानी और साधारण पटकथा वाली यह फिल्म कमियों से परे नहीं है। बीच में बहुत-सी गैरज़रूरी चीजे़ं दिखती हैं। कैमरा, लाईटिंग जैसे तकनीकी मामलों में यह हिन्दी सिनेमा से पीछे दिखती है। कहीं-कहीं कलाकार हरियाणवी छोड़ कर सीधे हिन्दी में आ जाते हैं। गीत-संगीत में भी हिन्दी का बेवजह असर दिखता है। पुलिस अफसर बनने के बाद बिनीता का कानून हाथ में लेना भी अखरता है। लेकिन फिल्म बनाने वालों की नेकनीयती इन कमियों को ढकती है और बताती है कि छोरियों को कम न समझो, उन्हें उड़ने को खुला आकाश मिले तो वह उस पर छा भी सकती हैं। फिल्म की यही सीख आंखें नम करती है, दिल छूती है और प्यारी लगती है। बड़ी बात यह कि फिल्म कहीं बोर नहीं करती, आपको कुर्सी से हिलने नहीं देती और हरियाणवी सिनेमा के शून्य को सशक्तता से भरती भी है। इब और क्या चाईए तम्म ने…?
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release date-17 May, 2019
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)