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रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/01/20
in CineYatra, फिल्म/वेब रिव्यू
2
रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

हरियाणा का शहर करनाल। अब यहां नौकरियों की भरमार तो है नहीं सो पढ़ी-लिखी, समझदार, ज़रूरतमंद सान्या नौकरी तो एक कंडोम फैक्ट्री में करती है लेकिन सब को यही बताती है कि वह छतरी बनाने वाली फैक्ट्री में मुलाजिम है। सच तो एक दिन सामने आना ही था। आया और साथ ही लाया उस संस्कारी परिवार में तूफान जहां सान्या का जेठ बायोलॉजी का टीचर होने के बावजूद बच्चों को सैक्स-एजुकेशन दिए जाने के खिलाफ है। ज़ाहिर है नई बहू क्रांति भी लाएगी और भ्रांतियां भी दूर करेगी।

यंग जेनरेशन की यही बात सबसे अच्छी है कि इनमें हिम्मत बहुत होती है। अब देखिए न, इस किस्म की कहानी सोचना और उसे मनोरंजक तेवर में फैमिली वाले फ्लेवर में लेकर आना कितना रिस्की है। निर्माता रॉनी स्क्रूवाला और ओ.टी.टी. प्लेटफॉम ज़ी-5 ने यह रिस्क उठाया है। इस फिल्म को लिखने वाले संचित गुप्ता व प्रियदर्शी श्रीवास्तव की हिम्मत की दाद दी जानी चाहिए जिन्होंने एक ऐसा रंग-बिरंगा माहौल रचा जिसमें प्यार, मोहब्बत और ज़रूरतों की बात करते-करते वे यौन-शिक्षा की बात भी करते हैं क्योंकि जब पास में ज्ञान होगा तो गलत और गलती, दोनों से बचा जा सकेगा।

इस किस्म के ‘हट के’ वाले विषयों के लिए छोटे शहरों और पारंपरिक सोच वाले परिवारों की ही पृष्ठभूमि चुनी जाती है ताकि देखने वालों को बातें अजीब न लगें। लिखने वालों ने करनाल का माहौल, वहां के किरदार, उनके ‘कालरा, ढींगड़ा, लांबा’ जैसे सरनेम और स्थानीय लोकेशंस के ज़रिए विश्वसनीय माहौल बनाया है। लेकिन ये लोग अपनी लिखाई में उतने विश्वसनीय नहीं हो सके कि इन पर आंख मूंद कर विश्वास कर लिया जाए। कुछ समय पहले ज़ी-5 पर ही ऐसे ही विषय पर ‘हेलमैट’ (रिव्यू-इस ‘हेलमैट’ से सिर मत फोड़िए) आई थी। गनीमत है कि यह फिल्म उसकी तरह पकाऊ नहीं है और अपनी बात कायदे से कह जाती है। लेकिन दिक्कत फिर वही कि मनोरंजन कीजिए, मैसेज दीजिए, मगर उपदेश मत पिलाइए, और यह फिल्म कई जगह ऐसा करती है। कुछ एक जगह तो पटकथा एकदम से लचर और लाचार हो जाती है। मेडिकल स्टोर का मालिक अचानक से बढ़ी कंडोम की बिक्री से खुश होने की बजाय गुस्सा है कि उसके शहर के मर्द ‘जोरू के गुलाम’ बन रहे हैं और कंडोम खरीदने-बेचने से शहर का माहौल बिगड़ रहा है…! ऊपर से कई संवाद पैदल और खिजाऊ किस्म के हैं जिन्हें सुन कर लगता है कि लिखने वाले बेचारे कितने मजबूर रहे होंगे।

निर्देशक तेजस प्रभा विजय देवसकर ने कहानी को यथासंभव पटरी पर रखने की कामयाब कोशिश की। लेकिन ऐसे विषयों को संभालना आसान नहीं होता, सो वह भी कई जगह चूके हैं। रकुलप्रीत सिंह अपने किरदार में जमी हैं, जंची हैं। सुमित व्यास भरपूर अच्छे लगे हैं। जेठ बने राजेश तैलंग ने असरदार काम किया। प्राची शाह, सतीश कौशिक, डॉली आहलूवालिया, राकेश बेदी, रीवा अरोड़ा, काजोल चुग, उदय वीर सिंह यादव, अरुण शेखर आदि ने खूब सहारा दिया। गीत-संगीत अनुकूल है। एडिटिंग थोड़ी और चुस्त होनी चाहिए थी।

बावजूद कुछ कमियों के यह फिल्म सही बात करती है, सही तरह से करती है और सही समय पर करती है। ओल्ड जेनरेशन को इसे देखना चाहिए और यंग जेनेरेशन को इससे कुछ सीख लेना चाहिए।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-20 January, 2023 on Zee5.

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: chhatriwalichhatriwali reviewdolly ahluwaliakajol chughprachi shahrajesh tailangrakesh bedirakul preet singhsatish kaushiksumeet vyastejas prabhaa vijay deoskaruday vir singh yadavZEE5
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Comments 2

  1. Dilip Kumar says:
    7 days ago

    अरुण शेखर जी हैं तो देखना लाजिमी है 😊💐

    Reply
  2. Dr. Renu Goel says:
    7 days ago

    Nyc concept for society

    Reply

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