-दीपक दुआ... (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
‘कैलेंडर गर्ल्स’ देख कर लगता है कि डायरेक्टर मधुर भंडारकर न सिर्फ अतीत में जी रहे हैं बल्कि वह ज़बर्दस्त आत्ममुग्धता के शिकार भी हैं। समाज के चमक-दमक वाले चेहरों के पीछे के स्याह सच को वह ‘पेज 3’ में बेहद उम्दा तरीके से परोस चुके हैं और उसके बाद से वह सिर्फ उसी फिल्म के एपिसोड बना रहे हैं जिनमें से कोई एपिसोड ‘फैशन’ जैसा शानदार बन जाता है तो कोई ‘हीरोइन’ जैसा बदहवास। अफसोस, ‘कैलेंडर गर्ल्स’ की गिनती ‘हीरोइन’ जैसी फिल्म के साथ की जाएगी।
मॉडलिंग की दुनिया में एक साथ कदम रखने वाली पांच लड़कियों के स्ट्रगल के बहाने ज़िंदगी की कड़वी सच्चाइयों से रूबरू करवाती इस फिल्म की कहानी तो बेहद पुरानी है ही, मधुर का प्रेज़ेंटेशन भी काफी बासा और थका हुआ लगता है। नए चेहरों को ही लेना था तो कम से कम अच्छे आर्टिस्ट तो लिए होते। फिर म्यूज़िक भी ऐसा पकाऊ है कि गाने आकर सुलाने का काम करने लगते हैं। एक ही फिल्म में फैशन, फिल्म, हाई-सोसायटी, क्रिकेट, पॉलिटिक्स, सभी की परतें उधेड़ने की मधुर की यह कोशिश ईमानदार भले ही हो, दर्शनीय नहीं है। छोटे शहरों के सिंगल-स्क्रीन वाले थिएटरों के बाहर कम कपड़ों वाली लड़कियों के पोस्टर देख कर फिल्में देखने का फैसला करने वाले दर्शक ही इसे पसंद करें तो करें, बाकियों के लिए तो यह सिर्फ पुरानी तारीखों वाले कैलेंडर की तरह है-नाम भर को, काम का नहीं।
अपनी रेटिंग-2 स्टार
(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय यह रिव्यू किसी पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)
Release date-25 September, 2015
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)