-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
15 बरस पहले दुनिया को ठग कर मशहूर हुए बंटी-बबली अब अपने बेटे संग फुर्सतगंज में शराफत की ज़िंदगी जी रहे हैं। लेकिन तभी एक और बंटी-बबली दुनिया को ठगना शुरू कर देते हैं। इंस्पैक्टर जटायु सिंह पुराने बंटी-बबली को काम पर लगाता है कि तुम ही पकड़ो उन्हें वरना तुम्हें ही अंदर कर दूंगा। सवाल है कि आखिर कौन हैं ये नए बंटी-बबली? क्या पुराने वालों से उनका कोई नाता है? क्यों कर रहे हैं वे ऐसा? क्या वे पकड़े जाएंगे? और इन सबसे भी बड़ा सवाल यह कि यह फिल्म 2005 में आई शाद अली की ‘बंटी और बबली’ की तुलना में कैसी है?
मैंने हमेशा कहा है कि हर फिल्म एक अलहदा प्रॉडक्ट होती है और उसे उसकी अपनी खूबियों-खामियों पर आंकना चाहिए। लेकिन जब आप किसी कहानी का सीक्वेल लेकर आते हैं या किसी फिल्म का ब्रांडनेम अगली फिल्म में इस्तेमाल करते हैं तो फिर उसकी तुलना पिछली वाली फिल्म से किया जाना स्वाभाविक है। तो अब पूछिए सवाल कि क्या यह फिल्म पिछली वाली ‘बंटी और बबली’ से बेहतर बन पाई है? जवाब है-जी नहीं, बिल्कुल नहीं। तो क्या यह एक बेकार फिल्म है? जवाब है-मैंने ऐसा तो नहीं कहा…!
दिक्कत दरअसल इस फिल्म की नींव में है। नींव यानी कहानी, स्क्रिप्ट, किरदार। कहानी उतनी सशक्त नहीं है कि पिछली वाली को पार कर जाए। इस कहानी पर रची गई पटकथा में बहुत सारे झोल है। इंटरवल तक दो-एक बार लहकने के बावजूद इसमें गति तो है लेकिन उसके बाद तो यह झूलने लग जाती है। लेखक वरुण वी. शर्मा के रचे ज़्यादातर किरदार देखने में दिलचस्प होने के बावजूद मजबूत नहीं हैं और इसीलिए पैर जमा कर खड़े नहीं रह पाते। बंटी-बबली की खासियत ही है दूसरों को इस तरह से ठगना कि ठगे गए इंसान को पता भी न चले और जिसे पता चले उसका मुंह खुला रह जाए। लेकिन इस वाली फिल्म में जो चार वाकये बताए-दिखाए गए हैं वे बहुत ही हल्के हैं और बंटी-बबली का ब्रांडनेम खराब ही करते हैं।
पुराने बंटी अभिषेक बच्चन की जगह पर इस बार सैफ अली खान हैं और उन्होंने इस किरदार में जम कर मेहनत भी की है। बबली बनी रानी मुखर्जी ने भी ज़ोरदार काम किया लेकिन अक्सर वह बहुत लाउड हो गईं और डायरेक्टर की पकड़ से परे चली गईं। बावजूद इसके, सच यह है कि पर्दे पर इस जोड़ी को देखना ज़्यादा सुहाता है। सिद्धांत चतुर्वेदी के किरदार को और मज़बूती देकर उनसे बेहतर काम करवाया जा सकता था। शर्वरी (पर्दे पर उनका नाम ऐसे ही लिखा आता है) में आत्मविश्वास है-संवाद बोलने का भी और कैमरे के सामने ‘खुलापन’ दिखाने का भी। हालांकि अभिनय के स्तर पर उन्हें अभी और मेहनत करनी होगी। पंकज त्रिपाठी सबसे ऊपर रहे। रानी-सैफ के बेटे का किरदार भी शानदार रहा। थोड़ी-थोड़ी देर को आए नीरज सूद, असरानी, राजीव गुप्ता, प्रेम चोपड़ा, बृजेंद्र काला, यशपाल शर्मा, स्वर्गीय मोहित बघेल व अन्य कलाकारों ने अच्छा साथ निभाया।
पिछली वाली फिल्म के मुकाबले गीत-संगीत भी हल्का रहा। हालांकि गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने संगीतकार शंकर-अहसान-लॉय के साथ मिल कर इन दिनों बज रहे गीतों जैसे गाने ही दिए लेकिन इन दिनों जो बज रहे हैं, वे ही कौन-से शानदार गाने हैं? बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म में वरुण वी. शर्मा ने माहौल तो रंगारंग रचा लेकिन एक तो वह स्क्रिप्ट के झोल नहीं संभाल सके और दूसरे कहीं-कहीं ऐसा भी लगा कि वह और अधिक प्रभावी दृश्य रच सकते थे। फिल्म में और ज़्यादा कसावट, पैनापन, हास्य, चुटीलापन, थ्रिल आदि की कमी साफ महसूस होती रहती है तो कसूर शर्मा जी का ही है।
वर्ल्ड में दो तरह से सीक्वेल फिल्में बनती हैं-एक तो वे जिनके बारे में पहले से ही तय होता है कि इस कहानी को आगे चल कर किस रास्ते पर ले जाना है और दूसरी वे जो सिर्फ इसलिए बनाई जाती हैं ताकि पिछली वाली फिल्म के ब्रांडनेम को भुना सकें। हिन्दी में बनने वाली ज़्यादातर सीक्वेल फिल्में इस दूसरी वाली कैटेगरी की ही होती हैं। ‘बंटी और बबली 2’ भी इनसे अलग नहीं है। और हां, पिछली वाली फिल्म जहां ठगी छोड़ शराफत अपनाने की सीख दे गई थी वहीं यह वाली फिल्म शराफत छोड़ ‘प्रैक्टिकल’ बनने की सलाह दे रही है। मर्ज़ी हो तो अपनाइए इस सलाह हो, इस फिल्म को।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-19 November, 2021 in theaters.
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
दीपक जी आप बहुत ही अच्छे और बेहतरीन फिल्म समीक्षक हैं और आपकी फिल्म की लिखी गई समीक्षा पढ़ने के बाद फिल्म देखने का मन कर जाता है।
धन्यवाद…
Bdhiya review ,yey nhi bataya ki dekhen ya nahi
धन्यवाद… देखें या नहीं की सलाह रिव्यू के अंत में है…
Bhut bdia
धन्यवाद…