• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रेट्रो रिव्यू-किताब में मिले किसी सूखे फूल-सी नाज़ुक ‘96’

Deepak Dua by Deepak Dua
2018/10/04
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रेट्रो रिव्यू-किताब में मिले किसी सूखे फूल-सी नाज़ुक ‘96’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

–दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

दसवीं की छुट्टियां हुईं तो लड़की ने लड़के की शर्ट पर अपने पेन से स्याही छिड़कते हुए कहा-मुझे भूलना मत। इसके बाद ये बिछड़ गए। 22 बरस बाद ये दोनों फिर मिले। लड़के ने अब तक वह शर्ट तह कर के संभाल रखी थी और साथ ही संभाल रखे थे वे सारे पल जो उसने इस लड़की के साथ और इसके बिना गुज़ारे थे। आज इनके पास साथ गुज़ारने को चंद घंटे ही हैं। लेकिन लड़की चाहती है कि कुछ और पल ये दोनों और साथ रह लें। कुछ और पल… बस, कुछ और पल… और इधर आप चाहने लगते हैं कि ये पल पूरी ज़िंदगी में क्यों नहीं बदल जाते।

यह एक तमिल फिल्म ‘96’ की कहानी है। अक्टूबर, 2018 में आई इस फिल्म को हाल ही में देखा तो मन बेचैन हो उठा। लगने लगा कि इस पर नहीं लिखा तो फिर शायद ज़िंदगी में न तो कोई फिल्म देख पाऊंगा, न उन पर लिख पाऊंगा।

बहुत कम रोमांटिक फिल्में ऐसी होती हैं जो आपको अपने भीतर इस तरह से समेट लेती हैं कि आपको अपनी भी सुध नहीं रहती। आप पर्दे के होकर रह जाते हैं। उन किरदारों की पीड़ा आपको अपनी लगने लगती है। उनकी मुस्कुराहट आपको सहज करती है तो उनका दर्द आपको चुभने लगता है। सी. प्रेम कुमार निर्देशित यह फिल्म ऐसी ही है।

राम आज एक नामी ट्रैवल फोटोग्राफर है। लेकिन वह अकेला है-बरसों से अकेला है। बरसों पहले स्कूल में उसने जानकी को चाहा था। 94 में वह स्कूल छोड़ गया। 96 में स्कूल का वह बैच खत्म हुआ। 2016 में ये सब लोग फिर से मिले हैं। जानकी सिंगापुर से आई है-कुछ घंटों के लिए। वह इन कुछ घंटों का एक-एक पल राम के साथ बिता देता चाहती है। और राम…? वह तो पहले से ही बीते तमाम पलों की गठरी को अपनी यादों में उठाए जी रहा है।

कोई कहानी जब अपनी-सी लगने लगे तो दिल छूती है। इस फिल्म को देखते हुए हर उस शख्स को अपनापन महसूस होगा जिसने अल्हड़ उम्र में किसी को प्यार भरी निगाहों से देखा होगा। जिसने किसी के रूमाल को हसरत से छुआ होगा। किसी फूल को किताब के पन्नों में संजोया होगा। लेकिन इस फिल्म की खासियत इसका यह अपनापन नहीं बल्कि वह परायापन है जिसे देख कर मन में टीस उठती है। अपनी किसी अधूरी प्रेम कहानी की याद आती है। एक खालीपन का अहसास होता है। मन होता है कि ऐसा किसी के साथ न हो। दिल से दुआ निकलती है कि काश, कुछ ‘फिल्मी’ हो जाए और ये दोनों उम्र भर साथ रहें। ऐसा दर्द, ऐसी पीड़ा होती है जिसे शब्दों में किसी को बता पाना मुमकिन नहीं लगता और फिल्म का अंत आते-आते आंखें न सिर्फ नम हो जाती हैं बल्कि दिल एकांत तलाशने लगता है कि फूट-फूट कर रो लें।

विजय सेतुपति और तृषा की जोड़ी बेहद लुभावनी लगती है। अक्षय कुमार के साथ हिन्दी की ‘खट्टा मीठा’ में आ चुकी तृषा का सर्वश्रेष्ठ काम दिखाती है यह फिल्म। राम की स्टुडैंट बनीं वर्षा की बोलती आंखें लुभाती हैं। फिल्म की एडिटिंग बेहद कसी हुई है। गीतों के बोल कहानी का साथ निभाते हैं और संगीत की मिठास रस घोलती है। फिल्म की एक बड़ी खासियत है इसका कैमरावर्क। यह अंग्रेज़ी सबटाइटिल्स के साथ उपलब्ध है और हिन्दी में डब होकर भी। तलाशिए, और देख डालिए। राधा-कृष्ण की पवित्र प्रेम-कहानी सरीखी ऐसी फिल्में कम ही बनती हैं।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-04 October, 2018

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: 9696 tamil movie reviewC.Premkumarretro reviewtrishavarsha bollammavijay sethupathi
ADVERTISEMENT
Previous Post

मिलिए ‘सुई धागा’ की अम्मा यामिनी दास से

Next Post

रिव्यू-रहस्य और रोमांच में लिपटी संगीतमय ‘अंधाधुन’

Related Posts

रिव्यू-कहानी ‘कंजूस’ मनोरंजन ‘मक्खीचूस’
CineYatra

रिव्यू-कहानी ‘कंजूस’ मनोरंजन ‘मक्खीचूस’

वेब-रिव्यू : फिर ऊंची उड़ान भरते ‘रॉकेट बॉयज़ 2’
CineYatra

वेब-रिव्यू : फिर ऊंची उड़ान भरते ‘रॉकेट बॉयज़ 2’

वेब-रिव्यू : किस का पाप है ‘पॉप कौन’…?
CineYatra

वेब-रिव्यू : किस का पाप है ‘पॉप कौन’…?

रिव्यू-दमदार नहीं है ‘मिसेज़ चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ का केस
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-दमदार नहीं है ‘मिसेज़ चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ का केस

रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’

रिव्यू : सैल्फ-गोल कर गई ‘सैल्फी’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू : सैल्फ-गोल कर गई ‘सैल्फी’

Next Post
रिव्यू-रहस्य और रोमांच में लिपटी संगीतमय ‘अंधाधुन’

रिव्यू-रहस्य और रोमांच में लिपटी संगीतमय ‘अंधाधुन’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.