• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ऑनर बचाते गांठें खोलते ‘14 फेरे’

Deepak Dua by Deepak Dua
2021/07/23
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-ऑनर बचाते गांठें खोलते ‘14 फेरे’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘जब ऑनर (मान) ही बच गया तो फिर काहे की किलिंग…?’

दूसरी जात के लड़के से शादी कर रही लड़की जब अपने पिता से यह पूछती है तो पिता को कोई जवाब नहीं सूझता। देखा जाए तो यही रास्ता अपना कर हमारा आज का समाज भी दूसरी जात वालों को अपना रहा है। वरना कुछ समय पहले तक जहां अलग-अलग जाति के लड़का-लड़की घर से भाग कर शादी करते थे वहीं आज ऐसी बहुत सारी शादियां दोनों परिवारों की रज़ामंदी से होने लगी हैं ताकि दोनों तरफ का ऑनर बचा रहे।

दिल्ली में साथ पढ़े-लिखे, साथ नौकरी कर रहे और एक ही घर में साथ रह रहे बिहार के लड़के और राजस्थान की लड़की को पता है कि जात-बिरादरी को नाक पर रखने वाले उनके घरवाले इस शादी के लिए राज़ी नहीं होंगे। सो, वे दोनों किराए के मां-बाप ले आते हैं। एक बार लड़के के घर में शादी होती है और दूसरी बार लड़की के घर में। हो गए न 7 और 7 यानी 14 फेरे? लेकिन क्या यह सब होना इतना आसान है? और क्या सच कभी सामने नहीं आएगा?

‘मेरे बाबूजी नहीं मानेंगे’ या ‘मेरे पापा तो मुझे मार ही डालेंगे’ किस्म की बातें कहते-सुनते नई पीढ़ी वाले चाहते हैं कि कोई रास्ता निकल आए। पर पुरानी पीढ़ी उस रास्ते को माने तब न। यह फिल्म जो राह दिखाती है वह भले ही ‘फिल्मी’ हो लेकिन गलत नहीं लगती। लड़का-लड़की भागने की बजाय हालात का सामना करते हैं। नकली मां-बाप के ज़रिए फिल्म हमारे समाज की उस सोच पर भी प्रहार करती है जहां असली मां-बाप अपने बच्चों की खुशी से ज़्यादा ‘लोग क्या कहेंगे’ को तवज्जो देने लगते हैं। मनोज कलवानी अपने लेखन से संतुष्ट करते हैं। हां, हास्य की डोज़ थोड़ी और बढ़ा कर वह इस फिल्म को ज़्यादा रोचक बना सकते थे।

देवांशु सिंह के निर्देशन में परिपक्वता है। कई जगह उन्होंने बेहतरीन तरीके से सीन संभाले हैं। लोकेशन असरदार हैं और गीत-संगीत फिल्म के माहौल के अनुकूल रहा है। संवाद पैने हैं। भोजपुरी और राजस्थानी बोलियों का इस्तेमाल फिल्म को असरदार बनाता है। एक्टिंग सभी की उम्दा है। विक्रांत मैस्सी तो छंटे हुए अभिनेता हैं ही, कृति खरबंदा भी उनका पूरा साथ निभाती हैं। हीरो की मां के किरदार में यामिनी दास असर छोड़ती हैं। बहू के स्वागत वाले सीन में उनके हावभाव और बैकग्राउंड में रेखा भारद्वाज की आवाज़ में बजता ‘राम सीता संग द्वारे पे खड़े हैं आओ सखी…’ देख कर कानों में शहद घुलता है तो आंखों में समुंदर उमड़ता है। विनीत कुमार, मनोज बक्शी, जमील खान, गौहर खान, प्रियांशु सिंह, गोविंद पांडेय, सुमित सूरी, भूपेश सिंह जैसे कलाकार दम भर साथ निभाते हैं।

सही है कि ज़ी-5 पर आई यह फिल्म बहुत पैनी नहीं बन पाई है। कहीं लेखन हल्का रहा तो कहीं निर्देशन। कुछ और कसावट, कुछ और सजावट, कुछ और बुनावट इस फिल्म को उम्दा बना सकती थी। लेकिन यह फिल्म बुरी नहीं है। यह साफ संदेश दे जाती है कि जात-बिरादरी और अपने कथित ‘ऑनर’ के नाम पर अगर पुरानी पीढ़ी लीक पीटेगी तो नई पीढ़ी के पास अपनाने को झूठ का रास्ता ही बचेगा। सामाजिक गांठों को खोलने की ऐसी कोशिशें होती रहनी चाहिएं।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-23 July, 2021

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: ‘14 फेरे’14 Phere reviewbhupesh singhgauhar khangovind pandeyjameel khankriti kharbandamanoj bakshipriyanshu singhrekha bhardwajsumit surivikrant masseyvineet kumaryamini dasZEE5
ADVERTISEMENT
Previous Post

बुक रिव्यू-हॉलीवुड की किसी फिल्म सरीखी ‘पानी की दुनिया’

Next Post

यादें : मिलना नुसरत साहब से, आफरीन आफरीन…

Related Posts

वेब-रिव्यू : किस का पाप है ‘पॉप कौन’…?
CineYatra

वेब-रिव्यू : किस का पाप है ‘पॉप कौन’…?

रिव्यू-दमदार नहीं है ‘मिसेज़ चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ का केस
CineYatra

रिव्यू-दमदार नहीं है ‘मिसेज़ चटर्जी वर्सेस नॉर्वे’ का केस

रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’
CineYatra

रिव्यू-रंगीन चश्मा लगा कर देखिए ‘तू झूठी मैं मक्कार’

रिव्यू : सैल्फ-गोल कर गई ‘सैल्फी’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू : सैल्फ-गोल कर गई ‘सैल्फी’

रिव्यू : सांबर-भटूरे, छोले-इडली परोसने आया ‘शहज़ादा’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू : सांबर-भटूरे, छोले-इडली परोसने आया ‘शहज़ादा’

रिव्यू-उलझे हुए सच की तलाश में खोई ‘लॉस्ट’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-उलझे हुए सच की तलाश में खोई ‘लॉस्ट’

Next Post
यादें : मिलना नुसरत साहब से, आफरीन आफरीन…

यादें : मिलना नुसरत साहब से, आफरीन आफरीन...

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.