• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

‘बेगम जान’ से लौट रहे हैं ‘असली वाले’ महेश भट्ट

CineYatra by CineYatra
2021/05/31
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ…

25 दिसंबर, 1998 को महेश भट्ट ने ‘ज़ख्म’ की रिलीज के बाद निर्देशन छोड़ दिया था। इस फिल्म के आने से करीब दो महीने पहले 29 अक्टूबर, 1998 को दिल्ली के पीवीआर अनुपम-4 सिनेमा में मीडिया के हम चुनिंदा लोगों को यह फिल्म दिखाई गई। तब तक इस फिल्म को सेंसर सर्टिफिकेट नहीं मिला था और मिलने में दिक्कतें भी आ रही थीं। महेश भट्ट ने योजना बनाई कि मीडिया के जरिए फिल्म के पक्ष में माहौल बनाया जाए। उस शाम वहां शो के बाद महेश भट्ट, पूजा भट्ट और लेखिका तनुजा चंद्रा के साथ ‘ज़ख्म’ को लेकर काफी लंबी और संजीदा बातें हुईं जो ‘चित्रलेखा’ में ‘ज़ख्म देकर जा रहे हैं महेश भट्ट’ शीर्षक से प्रकाशित हुई थीं।

इसके बाद महेश भट्ट भले ही निर्देशन से दूर चले गए लेकिन सिनेमा से उनका जुड़ाव लगातार कायम है। हालांकि पिछले कुछ साल से वह अपने भाई मुकेश भट्ट के साथ मिल कर ‘राज’, ‘जन्नत’, ‘जिस्म’, ‘मर्डर’ किस्म की जो फिल्में बना रहे हैं उनसे वह पैसे भले ही कमा रहे हों लेकिन उनके चाहने वालों को ‘असली वाले’ महेश भट्ट की कमी खटकती रही है।

पर अब भट्ट साहब (इंडस्ट्री में उन्हें इसी नाम से संबोधित किया जाता है) पुराने वाले ट्रैक पर लौट रहे हैं। उनके बैनर से श्रीजित मुखर्जी के निर्देशन में 14 अप्रैल को ‘बेगम जान’ रिलीज होने जा रही है जो श्रीजित की ही बांग्ला फिल्म ‘राजकहिनी’ का हिन्दी रूपांतरण है। विद्या बालन की शीर्षक भूमिका वाली यह फिल्म 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय की एक अनोखी कहानी है जिसमें बंटवारे की लकीर बेगम जान के कोठे के अंदर से होकर गुजरनी है मगर वह अपना घर खाली करने की बजाय सरकार के खिलाफ उठ खड़ी होती है।


हाल ही में महेश भट्ट दिल्ली में थे जहां उन्होंने चंद फिल्म पत्रकारों को इस फिल्म के अंश दिखा कर इस पर बातचीत की। ऐसा करने की वजह, इस फिल्म का निर्माण करने के पीछे के कारण और इस फिल्म को लेकर अपनी सोच और उम्मीदों को उन्होंने इस बातचीत में बखूबी बयान किया। प्रस्तुत हैं वे बातें, उन्हीं की जुबानी-

‘जब मैंने ‘अर्थ’ बनाई थी तब भी मैंने यही किया था। वह फिल्म बिक नहीं रही थी तो मैंने अपने प्रोड्यूसर से कहा कि मुझे इस फिल्म की कुछ तस्वीरें दे दीजिए जो मैंने मीडिया को दिखाऊंगा और फिल्म के बारे में बताऊंगा। उन्हें अगर सही लगेगा तो वे इस पर लिखेंगे। उसके बाद मैं मीडिया के चुनिंदा लोगों के साथ बैठा और उस फिल्म पर बातें कीं। उससे हुआ यह कि मुझे मीडिया का जबर्दस्त सपोर्ट मिला। उन्होंने जो लिखा उससे फिल्म के बारे में लोगों को पता चलना शुरू हुआ और आप यकीन नहीं करेंगे कि जब फिल्म रिलीज हुई तो पहले ही दिन थिएटरों में हाऊसफुल के बोर्ड लगे हुए थे। तो ‘बेगम जान’ में मुझे वही बात नजर आई जो ‘अर्थ’ में थी या जो ‘जख्म’ में थी। और यही वजह है कि हमने इस फिल्म को प्रोड्यूस करने के साथ-साथ इसे अलग तरीके से लोगों के बीच पहुंचाने का इरादा किया।’



‘पिछले करीब दो दशक से हम लोग ‘मर्डर’, ‘राज’ या ‘जन्नत’ जैसी फिल्में ही बना रहे हैं। ‘जख्म’ के बाद जान-बूझ कर हम इस रास्ते पर चले और हमें कोई शर्म भी नहीं है कि हम क्या बना रहे हैं क्योंकि ‘सारांश’ या ‘जख्म’ जैसा सिनेमा आपको पुरस्कार और तारीफें भले ही दिलवाता हो, पैसा नहीं देता। लोग अगर फिल्म देखेंगे ही नहीं तो कैसे चलेगा। नेशनल अवार्ड का बिल्ला तीन महीने में काला हो जाता है और हमने कोई ठेका तो ले नहीं रखा है कि भैया, हम सिर्फ अच्छी-अच्छी संजीदा फिल्में ही बनाएंगे चाहे हमें घर से पैसा लगाना पड़े। हमने कभी सरकार से पैसा नहीं लिया, एन.एफ.डी.सी. से पैसा नहीं लिया तो बड़ा मुश्किल होता था अपने हिसाब की फिल्म बना कर उस पर लगाए पैसे को वापस पाना। लेकिन ‘राजकहिनी’ देख कर मैं बहुत प्रभावित हुआ और हमें लगा कि इस किस्म के सिनेमा की तरफ भी हमें फिर से बढ़ना चाहिए। अब ‘बेगम जान’ के ट्रेलर को जिस तरह से दो दिन में सवा करोड़ लोगों ने यू-ट्यूब पर देखा है और जो माहौल बन रहा है तो उससे हमें उम्मीद है कि यह फिल्म पसंद की जाएगी, पैसे कमाएगी तो हम आगे भी जरूर इस तरह की फिल्में बनाएंगे। आप चाहें तो कह सकते हैं कि यह महेश भट्ट की वापसी है, उस महेश भट्ट की जिसे लोग ‘सारांश’, ‘अर्थ’ या ‘जख्म’ के लिए जानते हैं।’

‘बेगम जान’ में कोई ठूंसा गया गाना नहीं है, आइटम नहीं है, मसाले नहीं हैं, सिर्फ कहानी है और बहुत अच्छी कहानी है। मुझे उम्मीद ही नहीं बल्कि यकीन है कि लोग इस फिल्म को देख कर न सिर्फ तारीफ करेंगे बल्कि कुछ सोचने पर भी मजबूर होंगे।’

‘इस फिल्म में बोल्ड शब्द हैं, गालियां हैं और सेंसर बोर्ड को जब हमने यह फिल्म दिखाई तो उन पर एतराज भी किया गया लेकिन हम उन्हें यह समझा पाने में कामयाब हुए कि ये चीजें फिल्म में क्यों जरूरी हैं। ‘ए’ सर्टिफिकेट के साथ इस फिल्म को सेंसर ने पास किया है और इस पर हमें कोई आपत्ति नहीं हैं।’



‘साहिर लुधियानवी साहब ने एक गीत लिखा था ‘वो सुबह कभी तो आएगी…।’ लेकिन कैसे आएगी वह सुबह? क्या आसमान से कोई फरिश्ता उतरेगा या कोई करिश्मा होगा? बहुत कम लोग जानते हैं कि साहिर साहब ने इसी गीत का एक और अंतरा लिखा था कि ‘वो सुबह हमीं से आएगी…।’ मेरे लिए यह फिल्म ‘बेगम जान’ जो है वह ‘वो सुबह कभी तो आएगी…’ से लेकर ‘वो सुबह हमीं से आएगी…’ तक की कहानी है जिसमें बेगम जान और उसके साथी उठ खड़े होते हैं और अपने हक की लड़ाई को बिना दूसरों पर निर्भर हुए खुद लड़ते हैं। बुद्ध ने कहा था-स्वयं प्रकाशः स्वयं प्रमाणः। बाहर का सूरज चाहे कितना ही प्रकाशमान क्यों न हो, जब डूबता है, अंधेरा हो जाता है जबकि जब अंदर रोशनी हो जाती है तो फिर बाहर के प्रकाश की जरूरत ही नहीं पड़ती। बेगम जान जब तक दूसरों की ताकत पर निर्भर रहती है, अपाहिज रहती है। जब तक वह मर्दों पर निर्भर रहती है उसकी जुबान और तौर-तरीके तवायफों वाले ही रहते हैं कि हुजूर क्या पेश करूं? क्योंकि उसे पता है कि उसका वजूद इन मर्दों की वजह से ही है। पर जब वह इस बैसाखी से हट जाती है तब उसे अपने अंदर की शक्ति का अहसास होता है और यही है सफर इस फिल्म का।’


(इस बातचीत के अंश ‘हरिभूमि’ में 2 अप्रैल, 2017 को प्रकाशित हुए हैं।)

Tags: begum jaanmahesh bhattshrijit mukherjividya balanvishesh films
ADVERTISEMENT
Previous Post

‘बेगम जान’ इतिहास को वर्तमान से जोड़ती है—श्रीजित मुखर्जी

Next Post

वो लारा लप्पा वाला संगीतकार… विनोद

Related Posts

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’
CineYatra

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’
CineYatra

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’
CineYatra

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’
CineYatra

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं
CineYatra

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं

वेब-रिव्यू : सड़ांध मारती ‘ताज़ा खबर’
फिल्म/वेब रिव्यू

वेब-रिव्यू : सड़ांध मारती ‘ताज़ा खबर’

Next Post

वो लारा लप्पा वाला संगीतकार... विनोद

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.