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Home फ़िल्म रिव्यू

तीन दो पांच’ में मस्तियां और इमोशंस

CineYatra by CineYatra
2021/06/05
in फ़िल्म रिव्यू
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बच्चे गोद लेने चाहिएं या नहीं? और लेने के बाद अगर अपने बच्चे हो जाएं तो क्या उन्हें वापस छोड़ आना चाहिए? यह फिल्म इसी सवाल के इर्द-गिर्द घूमती एक परिवार की ज़िंदगी को दिखाती है। जी हां, है तो यह पौने दो घंटे की एक फिल्म ही लेकिन थिएटर बंद हैं सो इसे डिज़्नी हॉटस्टार पर रिलीज़ किया गया है और फिल्मों की हालत इन दिनों मंद है सो इसे छोटे-छोटे 13 एपिसोड में काट कर बांटा गया है।


शादी के सात साल तक भी संतान नहीं हुई तो पत्नी प्रियंका के कहने पर विशाल अनाथाश्रम से चार साल की एक बच्ची को गोद लेने पर राज़ी हो गया। लेकिन इस बच्ची के दो और हमउम्र भाई भी हैं। असल में ये तीनों ट्रिप्लेट्स हैं और अनाथाश्रम वालों की शर्त है कि तीनों को एक ही परिवार में भेजेंगे ताकि भाई-बहन जुदा न हों। सो, अब ये तीनों विशाल-प्रियंका के बच्चे हैं। प्रियंका खुश है लेकिन विशाल परेशान। तभी पता चलता है कि प्रियंका मां बनने वाली है। तो क्या इन्हें वापस छोड़ आएं…?


कहानी अलग है, दिलचस्प है, भावनाओं से लबरेज़ है लेकिन इसे फैलाते हुए यह बार-बार लेखकों के हाथ से फिसली है, गिरी है और इसी वजह से इस पर पड़े हुए डेंट साफ दिखाई देते हैं। तीन बच्चों के परिवार में आ जाने के बाद जिस किस्म की शरारतें, मस्तियां, परेशानियां आनी चाहिए थीं, लेखक उन्हें खुल कर नहीं दिखा सके। यह तो निर्देशक अमिताभ वर्मा की कुशलता रही कि उन्होंने कहीं बोर नहीं होने दिया और जैसे-तैसे सीन संभालते चले गए। अंत आते-आते फिल्म इमोशनल करती है और इसका अंत जल्दबाज़ी का नतीजा लगने के बावजूद अच्छा लगता है।


किरदारों को गढ़ने में लेखकों ने मेहनत की है। संवाद कई जगह बहुत अच्छे हैं। खासतौर से हीरो के दोस्त कार्तिक का किरदार और उसमें शांतनु अनम की एक्टिंग, दोनों लाजवाब रहे हैं। श्रेयस तलपड़े और बिदिता बाग ने अपने किरदारों को जी भर कर रियल बनाया है। अंत में तो ये दोनों ही अपनी अदाकारी से खासा प्रभावित करते हैं। कुछ देर

को आने वाले अखिलेंद्र मिश्र, लवलीन मिश्र, शीबा चड्ढा, बृजेंद्र काला, गुरपाल सिंह, आकाशदीप अरोड़ा आदि कायदे से सपोर्ट करते हैं। गीत-संगीत थोड़ा और मज़बूत होना चाहिए था।

Tags: तीन दो पांच
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