• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-सिनेमाई खज़ाने की चाबी है ‘तुम्बाड’

Deepak Dua by Deepak Dua
2018/10/15
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-सिनेमाई खज़ाने की चाबी है ‘तुम्बाड’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

‘दुनिया में हर एक की ज़रूरत पूरी करने का सामान है, लेकिन किसी का लालच पूरा करने का नहीं।’ महात्मा गांधी के इस कथन से शुरू होने वाली यह फिल्म अपने पहले ही सीन से आपको एक ऐसी अनोखी दुनिया में ले चलती है जो इससे पहले किसी हिन्दी फिल्म में तो क्या, शायद किसी भारतीय फिल्म में भी कभी नहीं दिखी होगी। महाराष्ट्र का एक वीरान गांव-तुम्बाड, जहां हर वक्त बारिश होती रहती है क्योंकि देवता क्रोधित हैं। इसलिए कि पूरी धरती को अपनी कोख से जन्म देने वाली देवी ने अपनी सबसे पहली संतान हस्तर को उनके हाथों मरने से बचा लिया था। वही लालची हस्तर, जो देवी के एक हाथ से बरसते सोने को तो ले गया लेकिन देवताओं ने उसे दूसरे हाथ से बरसते अनाज को नहीं ले जाने दिया। उसी हस्तर के मंदिर के पुजारियों के परिवार में भी दो तरह की संतानें हुईं-लालची और संतुष्ट। 1913 के साल में ये लोग यहां से चले तो गए लेकिन लालची विनायक लौटता रहा और हस्तर के खज़ाने से अपनी जेबें भर-भर ले जाता रहा। उसने अपने बेटे को भी सिखाया कि यह खज़ाना कैसे हाथ लगता है। लेकिन विनायक अपनी दादी की कही यह बात भूल गया कि-‘विरासत में मिली हुई हर चीज़ पर दावा नहीं करना चाहिए।’

अपने ट्रेलर से एक हॉरर-फिल्म होने का आभास कराती यह फिल्म कई मायने में अनोखी है। यह कोई हॉरर फिल्म नहीं है। यह डर, रहस्य और परालौकिकता के आवरण में लिपटी एक कहानी कहती है जो इंसानी मन की उलझनों और महत्वाकांक्षाओं की बात करती है। हमारे यहां अव्वल तो इस फ्लेवर की फिल्में होती ही नहीं हैं, होती भी हैं तो उनमें तंतर-मंतर, नींबू-मिरची हावी रहता है। कह सकते हैं कि जैसे हॉलीवुड से ‘द ममी’ सीरिज़ वाली फिल्में आई हैं जिनमें खज़ाना खोजने वाली एक कहानी के चारों तरफ डर, रहस्य, परालौकिकता, हास्य, प्यार, एक्शन आदि का आवरण होता है, जिनमें पूरी तार्किकता के साथ उन कहानियों में मिस्र के पिरामिडों से जुड़ी हमुनात्रा जैसी एक ऐसी काल्पनिक दुनिया खड़ी की जाती है जिस के न होने का यकीन होते हुए भी वह आपको सच्ची लगती है। ठीक उसी तरह से महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के एक गांव तुम्बाड की कहानी दिखाती यह फिल्म आपको अपनी बातों से विश्वसनीय लगने लगती है कि ज़रूर देवी ने यहीं दुनिया को अपने गर्भ में रखा होगा, ज़रूर यहीं पर हस्तर का मंदिर होगा जिसमें देवी के गर्भ में अभी भी हस्तर का खज़ाना होगा आदि-आदि।

मराठी में रहस्यमयी कहानियां लिखने वाले नारायण धारप (1925-2008) की एक कहानी पर आधारित इस फिल्म का नाम मराठी उपन्यासकार श्रीपद नारायण पेंडसे (1913-2007) के उपन्यास ‘तुम्बाडचे खोत’ से लिया गया। इस फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने के लिए की गई मितेश शाह, आदेश प्रसाद, राही अनिल बर्वे और आनंद गांधी की मेहनत इसमें साफ दिखती है। अपनी मूल कहानी कहने के साथ-साथ यह तत्कालीन समाज की रिवायतों को भी दिखाती चलती है। आज़ादी से पहले के मराठी समाज में औरतों की दशा, पुरुषों का वर्चस्व, जातिवाद, अंग्रेज़ी राज के बारे में लोगों की सोच के साथ-साथ उस दौर के रंग-रूप को दिखाने के लिए की गई आर्ट डायरेक्टर प्रवीण चौधरी की काबलियत भी इसमें झलकती है। इस कदर यथार्थ की अनुभूति देता सैट अपने यहां कम ही नज़र आता है। फिर लोकेशन, बारिश, रोशनी, अंधेरा मिल कर इस अनुभूति को और गाढ़ा करते हैं। पंकज कुमार का अद्भुत कैमरावर्क इसके असर को चरम पर ले जाता है तो वहीं दुनिया के अच्छे से अच्छे स्पेशल इफेक्ट्स को भी टक्कर देती है यह फिल्म। बैकग्राउंड म्यूज़िक प्रभावी रहा है और गीत-संगीत जितना और जहां ज़रूरी था, बस उतना ही है। सोहम शाह समेत सभी का अभिनय बढ़िया रहा। राही अनिल बर्वे, आनंद गांधी और आदेश प्रसाद का निर्देशन सधा हुआ है। हां, अंत हल्का है, थोड़ा उलझा हुआ है और लगता है जल्दी से सब निबट गया। शुरूआत में थोड़ी और नैरेशन दी जाती तो किरदारों के रिश्ते समझने में भी थोड़ी आसानी हो जाती। यादगार संवाद और थोड़ा हास्य का पुट इसे और बेहतर बना सकता था। लेकिन दो घंटे से भी कम की यह फिल्म आपको बांधे रखती है और सीक्वेल की संभावना के साथ खत्म होती है।

फिल्म देखते हुए एक और बात गौर करने लायक है कि यह 1913 के उस साल से शुरू होती है जब पहली भारतीय फिल्म रिलीज़ हुई थी। फिर बीच में 1931 का वो साल आता है जब पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ आई थी और एक दृश्य में दीवार पर ‘आलमआरा’ का विज्ञापन भी दिखता है। असल में यह फिल्म भारतीय सिनेमा के सफर में एक ऐसा मील का पत्थर है जहां से हमारे फिल्मकार चाहें तो एक नई राह पकड़ सकते हैं। एक ऐसी राह जिसमें कहानियों के खज़ाने हैं और थोड़ी सी सूझबूझ व मेहनत से उन खज़ानों से अपनी फिल्मों के लिए ढेरों अद्भुत कहानियां खोजी जा सकती हैं।

अपनी रेटिंग-चार स्टार

Release Date-12 October, 2018

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Aanand L Raiadesh prasadAnand Gandhinarayan dharpRahi Anil Barveshripad narayan pendsesohum shahtumbbadTumbbad review
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-रहस्य और रोमांच में लिपटी संगीतमय ‘अंधाधुन’

Next Post

रिव्यू-‘बधाई हो’, बढ़िया फिल्म हुई है…!

Related Posts

रिव्यू : मसालों संग उपदेश की दुकान-‘जवान’
CineYatra

रिव्यू : मसालों संग उपदेश की दुकान-‘जवान’

रिव्यू-न मांस न मज्जा सिर्फ ‘हड्डी’
CineYatra

रिव्यू-न मांस न मज्जा सिर्फ ‘हड्डी’

रिव्यू-शटल से अटल बनने की सीख देती ‘लव ऑल’
CineYatra

रिव्यू-शटल से अटल बनने की सीख देती ‘लव ऑल’

रिव्यू-किसी झील का कंवल ‘ड्रीमगर्ल 2’
CineYatra

रिव्यू-किसी झील का कंवल ‘ड्रीमगर्ल 2’

रिव्यू-यह फिल्म तो ‘अकेली’ पड़ गई
CineYatra

रिव्यू-यह फिल्म तो ‘अकेली’ पड़ गई

रिव्यू: प्रेरणा देती-‘घूमर’-देती प्रेरणा
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू: प्रेरणा देती-‘घूमर’-देती प्रेरणा

Next Post
रिव्यू-‘बधाई हो’, बढ़िया फिल्म हुई है…!

रिव्यू-‘बधाई हो’, बढ़िया फिल्म हुई है...!

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.