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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-एंटरटेनमैंट की पिच पर चला ट्रैक्टर-‘द ज़ोया फैक्टर’

Deepak Dua by Deepak Dua
2019/09/20
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-एंटरटेनमैंट की पिच पर चला ट्रैक्टर-‘द ज़ोया फैक्टर’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

25 जून, 1983-इंडियन टीम ने क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता और ठीक उसी दिन सोलंकी परिवार में एक लड़की ज़ोया जन्मी। क्रिकेट के दीवाने पिता ने उसे लकी-चार्म मान लिया। बड़ी हुई तो काम के सिलसिले में यह लड़की इंडियन क्रिकेटर्स से मिली और हारती हुई टीम जीतने लगी। सबने मान लिया कि ज़ोया का लक-फैक्टर ही टीम को जिता रहा है। पर क्या सचमुच ऐसा है…?

कहानी दिलचस्प है, हट कर है, और शायद इसीलिए 2008 में आया अनुजा चौहान का लिखा अंग्रेज़ी उपन्यास ‘द ज़ोया फैक्टर’ (अंग्रेज़ीदां पाठकों ने) काफी पसंद किया था। बरसों तक विज्ञापनों की दुनिया में काम करने और क्रिकेटर्स के अजीबोगरीब अंधविश्वासों को करीब से देखने वाली अनुजा ने इस उपन्यास में यह सवाल उठाया था कि क्या महज़ किसी एक शख्स के लक-फैक्टर से टीम इंडिया की परफॉर्मेंस बदली जा सकती है? साथ ही हर चमत्कार को नमस्कार करने की आम लोगों की प्रवृत्ति को भी उन्होंने कटघरे में खड़ा किया था। पर क्या यह ज़रूरी है कि किसी बेस्टसेलर उपन्यास पर बनी फिल्म भी उतनी ही उम्दा और बेस्ट हो…?

‘तेरे बिन लादेन’ और ‘परमाणु-द स्टोरी ऑफ पोखरण’ बना चुके डायरेक्टर अभिषेक शर्मा को कहानी कहने का हुनर आता है-बशर्ते कि उन्हें कायदे की कहानी दी जाए। यहां पर कहानी तो उन्हें ठीक मिली लेकिन उस कहानी को ‘फिल्मी’ बनाने के लिए जो स्क्रिप्ट रची गई उसने सारी पिच ही खोद दी। कहने को यह एक रॉम-कॉम यानी रोमांटिक-कॉमेडी है लेकिन रॉम-कॉम के नाम पर इसने कहानी का जो राम-नाम सत्य किया है उससे फिल्म का सत्यानाश ही हुआ है। फिल्म में रोमांस है लेकिन उसकी न तो महक आती है न उष्मा। फिल्म में कॉमेडी है लेकिन न तो वह हंसा पाती है न गुदगुदा। फिल्म के किरदार भावुक होते हैं, रोते हैं, गुस्सा करते हैं लेकिन उनकी भावनाएं, दर्द या गुस्सा आपको छू तक नहीं पाता। और तो और क्रिकेट के शैदाइयों के इस देश में बनी इस फिल्म में जो क्रिकेट है, अगर वह भी आपके मन को नहीं हिलोर पाए तो समझिए कि कमी आप के अंदर नहीं, फिल्म में है।

इस फिल्म की बहुत बड़ी कमी इसका बनावटीपन है। किरदारों को गढ़ने से लेकर, सैट और मेकअप तक में इतनी ज़्यादा कृत्रिमता है कि शुरू होने के चंद ही मिनटों में यह फिल्म आपको किसी दूसरे ग्रह की कहानी लगने लगती है जिसके अंदर के किरदारों के बीच आपस में बहुत कुछ हो रहा है लेकिन आप उससे खुद को जोड़ ही नहीं पा रहे हैं। आखिरी के आधे घंटे में यह कुछ संभलती है लेकिन तब तक तो आपके दिल-दिमाग से सारा मैच ही धुल चुका होता है। संवाद कहीं-कहीं अच्छे हैं। लेकिन वर्ल्ड कप के क्रिकेट मैच में ‘पा जी-पा जी’ बोल कर पंजाबी नुमा हिन्दी में कमेंटरी भला कौन करता है? और विज्ञापनों की दुनिया से आए लोगों को यह भी समझना चाहिए कि फिल्म के भीतर इतने सारे ब्रांड-प्रोमोशन ठूंस देने से वह फिल्म नहीं, विज्ञापन लगने लगती है जो उन्हें पैसे भले ही दिलवा दे, इज़्ज़त नहीं दिलवा सकती। अपनी टीम वर्ल्ड कप 2011 में लाई थी और फिल्म देख कर लगता भी है कि यह 2011 की कहानी कह रही है लेकिन कमेंटरी में ‘बाहुबली’ और कटप्पा का ज़िक्र इसे 2015 में ले आता है। हंसिए मत, तरस खाइए इसे लिखने वालों पर। वे इसी के हकदार हैं।

दुलकर सलमान अच्छे अभिनेता है लेकिन क्रिकेट टीम के कप्तान के इस रोल में वह बिल्कुल नहीं जंचे। सोनम कपूर (जो अब सोनम के. आहूजा हो गई हैं) ज़रूर ऐसे किरदारों में अच्छी लगती हैं लेकिन उनका मेकअप… यक्क…! संजय कपूर, सिकंदर खेर को इतना निठल्ला शायद ही कभी दिखाया गया हो। और अनिल कपूर गैस्ट रोल में करने क्या आए थे? सच तो यह है कि पूरी फिल्म में प्रभावित कर सकने वाला न तो कोई किरदार है और न ही किसी की एक्टिंग। गाने-वाने ज़रूर कहीं-कहीं ठीक लगते हैं।

फिल्म में ज़ोया को उसका भाई हमेशा झाड़ू कह कर पुकारता है। सच तो यह है कि असली झाड़ू यह फिल्म हमारे दिमाग और जेबों पर फेरने की फिराक में है। वैसे इस किस्म की फिल्मों का आना भी ज़रूरी है। ये दरअसल दर्शकों के सब्र का इम्तिहान लेने आती हैं। इन्हें बिना किसी शिकायत के देखने वालों को खुद को योगी-फकीर मान लेना चाहिए।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-20 September, 2019

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: abhishek sharmaAngad BediAnil KapoorAnuja ChauhanDulquer Salmaanfox star studiosmanu rishisanjay kapoorsikander khersonam kapoorThe Zoya Factor review
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