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Home फिल्म/वेब रिव्यू

डॉक्यूमैंट्री रिव्यू-चौंकाती, दहलाती ‘द मिडवाइफ्स कन्फैशन’

Deepak Dua by Deepak Dua
2024/10/16
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
डॉक्यूमैंट्री रिव्यू-चौंकाती, दहलाती ‘द मिडवाइफ्स कन्फैशन’
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-दीपक दुआ…

‘लड़की के मुंह में नमक डाल कर मुंह दबा देते थे, या फिर यूरिया खाद डाल देते थे, कई बार गर्दन पकड़ कर भी मरोड़ देते थे तो बच्ची मर जाती थी।’

बिहार के गांवों में दाई का काम करने वाली महिलाएं जब यह कहती हैं तो सुन कर दिल दहल जाता है।

सच तो यह है कि बी.बी.सी. के यू-ट्यूब चैनल पर आई एक घंटे की डॉक्यूमैंट्री ‘द मिडवाइफ्स कन्फैशन’ (The Midwife’s Confession) देखते हुए दिल एक बार नहीं, कई बार दहलता है, बेचैन होता है, चौंकता है, उछलता है और डूबने भी लगता है।

अपने नाम और विषय से यह डॉक्यूमैंट्री (The Midwife’s Confession) भले ही उन दाइयों द्वारा किए गए पापों की स्वीकारोक्ति की बात करती हो जिन्होंने बरसों पहले बिहार में कई लड़कियों को उनके जन्म के बाद उनके परिवार वालों के दबाव में आकर मार डाला, लेकिन असल में यह डॉक्यूमैंट्री उससे कहीं आगे दर्शकों को एक ऐसी यात्रा पर ले जाती है जो इसे बनाने वाले वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ पराशर ने करीब 30 साल के लंबे अर्से में पूरी की।

यह डॉक्यूमैंट्री (The Midwife’s Confession) बताती है कि कैसे दशकों पहले अमिताभ ने इन दाइयों से यह सच कबूलवाया था कि किसी लड़की के जन्म लेने पर कई बार उसके परिवार वाले उन पर यह दबाव बनाते थे कि वे उन बच्चियों को मार दें। इसके पीछे की एक बड़ी वजह भी सामने आती है कि यह सब दहेज के उस बोझ से बचने के लिए किया जाता था जो इनके परिवारों पर भविष्य में पड़ सकता था। यह डॉक्यूमैंट्री आगे हमें एक संस्था के ऐसे लोगों से मिलवाती है जिन्होंने उन दाइयों को समझाया कि उनका काम जीवन बचाना है और उन्हें यह पाप कर्म नहीं करना चाहिए और यदि उन्हें किसी बच्ची को मारने के लिए कहा जाए तो उसे अनाथाश्रम में दे देना चाहिए। किसी इमोशनल फिल्म की तरह कहानी तब रोचक मोड़ लेती है जब अमिताभ पराशर बरसों पहले एक दाई द्वारा बचा कर अनाथालय को दी गई एक ऐसी ही बच्ची को दूर किसी शहर में खोज निकालते हैं जो अब एक युवती बन चुकी है। वह इस युवती को उस संस्था के लोगों से ही नहीं बल्कि उस दाई तक से मिलवाते हैं जिसने उसे बचाया था।

डॉक्यूमैंट्री फिल्मों के तय कर दिए गए चंद ढर्रों से अलग यह वाली डॉक्यूमैंट्री (The Midwife’s Confession) एक अलग किस्म का कलेवर बुनती है। पत्रकार अमिताभ पराशर इसकी धुरी बन कर तीन दशक का चक्र पूरा करते हैं। एक तरफ यह डॉक्यूमैंट्री जहां इस बात से निराश करती है कि बच्चियों को त्यागने की प्रवृति जहां हमारे समाज में अभी भी है वहीं एक बचाई गई बच्ची के समाज में सिर उठा कर जीने की कहानी से यह आशाएं भी जगाती है। निराशा और आशा के ये पल पर्दे पर जब-जब अमिताभ को भावुक करते हैं, सामने बैठा दर्शक भी भावुक होता है। उसकी आंखें भी अमिताभ की आंखों के साथ नम होती हैं। यहां आकर यह डॉक्यूमैंट्री अपने होने को सार्थक कर जाती है। अपने विषय, रिसर्च, निर्देशन, संपादन, कैमरा और तमाम दूसरे तकनीकी पक्षों के ज़रिए यह डॉक्यूमैंट्री दर्शनीय हो उठती है और इसीलिए इसे बनाने वाली पूरी टीम प्रशंसा की हकदार है।

(यू-ट्यूब पर इस डॉक्यूमैंट्री को हिन्दी में देखने के लिए यहां क्लिक करें। वैसे यह अंग्रेज़ी, तमिल, तेलुगू, मराठी, पंजाबी व गुजराती में भी उपलब्ध है।)

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-11 September, 2024 on YouTube

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

 

Tags: amitabh parasharbbcdocumentarydocumentary reviewThe Midwife's ConfessionThe Midwife's Confession documentaryThe Midwife's Confession documentary reviewThe Midwife's Confession reviewyoutube
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