• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-मर्दानगी पर पड़ा ‘थप्पड़’

Deepak Dua by Deepak Dua
2020/02/27
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-मर्दानगी पर पड़ा ‘थप्पड़’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

अमृता और विक्रम खुशहाल हैं। विक्रम अपनी नौकरी में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। लंदन वाले ऑफिस का ज़िम्मा उसे मिलने वाला है। अमृता सुबह की चाय से लेकर उसकी हर सुख-सुविधा का ख्याल रखती है। वह आदेश देता है और अमृता खुशी-खुशी उसे फर्ज़ समझ कर मानती जाती है। कहीं, कोई दिक्कत नहीं। लेकिन एक पार्टी में अपने सीनियर से झगड़ते हुए विक्रम उसे खींच रही अमृता पर हाथ उठा बैठता है। ‘सिर्फ एक थप्पड़। लेकिन नहीं मार सकता।’ अमृता अपनी वकील से कहती है।

यह फिल्म घरेलू हिंसा की बात नहीं करती। हालांकि इसमें यह भी दिखाई गई है। अमृता की नौकरानी सुनीता रोज़ाना अपने पति से पिटती है। उसका मानना है कि किसी दिन उसके पति ने उसे बाहर कर दिया तो वो कहां जाएगी। लेकिन अमृता के पास जाने के लिए अपने पिता का घर है। हालांकि उसकी सास, मां, भाई वगैरह का यही मानना है कि एक थप्पड़ ही तो है। औरतों को बर्दाश्त करना सीखना चाहिए। दरअसल यह फिल्म मर्द की उस दंभ भरी मर्दानगी की बात करती है जिसकी नज़र में उसका अपनी बीवी पर हावी रहना जायज़ है। विक्रम का कहना है कि छोड़ो भी, जो हो गया, हो गया। लेकिन अमृता नहीं छोड़ती। वह विक्रम से नफरत नहीं करती। लेकिन अब वह उससे प्यार भी नहीं करती।

निर्देशक अनुभव सिन्हा अब सिनेमाई एक्टिविस्ट हो चुके हैं। ‘मुल्क’ और ‘आर्टिकल 15’ में हमारे आसपास की दो समस्याओं को उठाने के बाद इस फिल्म में उन्होंने हमारे घरों में झांका है। फिल्म बहुत ही मजबूती से इस बात को उठाती है कि औरत पर हाथ उठाने का हक मर्द को कत्तई नहीं है। इस किस्म के ‘सूखे’ विषय को उठाना बॉक्स-ऑफिस के लिहाज से जोखिम भरा होता है। लिहाजा इस फिल्म को बनाने वाले सचमुच सराहना के हकदार हैं। मगर क्या यह फिल्म आपके अंदर बैठे दर्शक की भूख को भी मिटाती है?

फिल्म की रफ्तार बेहद सुस्त है। दृश्यों का दोहराव इसकी सुस्ती को और बढ़ाता है। थप्पड़ वाले सीन के बाद भी इसकी चाल में फर्क नहीं आता। न ही यह एग्रेसिव होती है। इंटरवल के बहुत बाद जाकर कहीं यह मुद्दे पर आती है। दर्शक के मन में सवाल उठता है कि जिस तरह से थप्पड़ मारा गया वह क्षणिक आवेश में उठ गया (उठाया गया नहीं) कदम था। बाद में विक्रम का लगातार यह कहना कि-जाने दो, छोड़ो भी… अजीब लगता है। दर्शक का मन कहता है कि यह शख्स बीवी को आई एम सॉरी बोल कर बात खत्म क्यों नहीं करता? लेकिन तब फिल्म नहीं बनती न!

तापसी पन्नू उम्दा अदाकारी करती हैं। दिया मिर्ज़ा, तन्वी आज़मी, रत्ना पाठक शाह, कुमुद मिश्रा, राम कपूर, मानव कौल जैसे सभी कलाकार जंचते हैं। सबसे ज़्यादा असर छोड़ते हैं विक्रम बने पवैल गुलाटी, वकील बनी माया सराओ और सुनीता के रोल में गीतिका विद्या। गीत-संगीत अच्छा है। बैकग्राउंड म्यूज़िक असरदार।

फिल्म संदेश देती है कि अपनी बेटियों को बर्दाश्त करना सिखाने वाले मां-बाप गलत हैं। अपने बेटों को हावी रहना सिखाने वाले मां-बाप भी गलत हैं। इस संदेश के लिए यह फिल्म देखने लायक है। हां, मनोरंजन की चाह रखने वाले आम दर्शक इसे नहीं पचा पाएंगे।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-28 February, 2020

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: anubhav sinhadia mirzageetika vidyakumud mishramaya saraomrunmayee lagoopavail gulatiram kapoorratna pathak shahtaapsee pannutanvi azmithappad review
ADVERTISEMENT
Previous Post

मिलिए हॉस्पिटल के सामने फू-फू करते नंदू से

Next Post

वेब-रिव्यू : इंसानी मन के अंधेरों को दिखाती ‘असुर’

Related Posts

रिव्यू-मन में उजाला करते ‘सितारे ज़मीन पर’
CineYatra

रिव्यू-मन में उजाला करते ‘सितारे ज़मीन पर’

रिव्यू-खोदा पहाड़ निकला ‘डिटेक्टिव शेरदिल’
CineYatra

रिव्यू-खोदा पहाड़ निकला ‘डिटेक्टिव शेरदिल’

रिव्यू-चैनसुख और नैनसुख देती ‘हाउसफुल 5’
CineYatra

रिव्यू-चैनसुख और नैनसुख देती ‘हाउसफुल 5’

रिव्यू-भव्यता से ठगती है ‘ठग लाइफ’
CineYatra

रिव्यू-भव्यता से ठगती है ‘ठग लाइफ’

रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…
CineYatra

रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…

रिव्यू-सपनों के घोंसले में ख्वाहिशों की ‘चिड़िया’
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-सपनों के घोंसले में ख्वाहिशों की ‘चिड़िया’

Next Post
वेब-रिव्यू : इंसानी मन के अंधेरों को दिखाती ‘असुर’

वेब-रिव्यू : इंसानी मन के अंधेरों को दिखाती ‘असुर’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment