-दीपक दुआ…
मुंबई का एक लुक्खा। सार्वजनिक शौचालय में बतौर मैनेजर काम करने वाला। हगने-मूतने के लिए आने वालों से दो-दो रुपए लेकर दिन भर बढ़िया मस्त बदबू सूंघने वाला। एक धंधे वाली पर मरने वाला। एक दिन इस लड़के को मिलता है एक वरदान और भविष्य में होने वाली घटनाओं की खबर उसे पहले ही अपने मोबाइल पर मिलने लग जाती है। इस वरदान का फायदा उठा कर यह बन जाता है करोड़पति। लेकिन कहते हैं न कि बड़ी ताकत के साथ बड़ी ज़िम्मेदारी भी आती है। तो क्या यह चिंदी चोर उस ज़िम्मेदारी को उठा पाया? इस वरदान को झेल पाया या बना दिया उसे श्राप?
इस कहानी के नायक वसंत गावड़े यानी वस्या का किरदार निभाया है भुवन बाम ने। यू-ट्यूब पर अपने कॉमेडी चैनल ‘बीबी की वाइन्स’ से भुवन ने खूब नाम कमाया है। अश्लील संदर्भों और गालियों के बावजूद उनके बनाए वीडियो युवा पीढ़ी में खासे पॉपुलर हैं। या कहें कि शायद युवा पीढ़ी ने इस अश्लीलता और गालियों को ही सो-कॉल्ड ‘कूल’ होना समझ लिया है। भुवन डिज़्नी-हॉटस्टार पर आई इस वेब-सीरिज़ के निर्माताओं में भी शामिल है। चूंकि ओ.टी.टी. पर कोई बंदिश तो है नहीं, सो इस सीरिज़ में भी इन्होंने जम कर अश्लीलता, गंदगी और गालियां परोसी हैं, सो-कॉल्ड ‘कूल’ लोगों के लिए।
कहानी का आवरण नया नहीं है। वेश्या पर मरने वाला गरीब युवक। उसी वेश्या पर मरने वाला कोई ताकतवर नेता, गुंडा टाइप आदमी। लेकिन गरीब कहता है कि एक दिन इसको इधर से लेकर जाऊंगा। वह ले भी गया और ताकतवर नेता, गुंडा कुछ कर ही नहीं पाया। कैसा ताकतवर है रे तू…? इस गरीब को वरदान मिला तो लगा कि यह कुछ बढ़िया करेगा, हट के करेगा लेकिन बहुत जल्दी लेखकों के हाथों में मेंहदी लग गई और उनकी कलम की स्याही बस क्रिकेट के सट्टे के इर्द-गिर्द ही सूख कर रह गई। कैसे लेखक हो भाई लोग, कुछ अच्छा नहीं लिख सके, कुछ हट के नहीं लिख सके…? स्क्रिप्ट में इतने लोचे तो कोई नौसिखिया भी नहीं डालता रे, तुम लोग तो खेले-खाए थे। डायलॉग के नाम पर अश्लीलता और गालियां, बस यही सूझा तुम्हें?
इस सीरिज़ की बड़ी कमी यह भी है कि लेखक मंडली किरदारों को कायदे से विकसित ही नहीं कर पाई। ज़्यादातर किरदारों की विशेषताएं विरोधाभासी रहीं, कभी कुछ तो कभी कुछ। ऊपर से निर्देशक हिमांक गौड़ भी कोई खास जलवा नहीं दिखा पाए। बस वही घिसी-पिटी फालतू की मच-मच। रही एक्टिंग की बात, तो भुवन बाम सधे हुए हैं ही, सो जंचे। काम तो श्रिया पिलगांवकर, शिल्पा शुक्ला, देवेन भोजानी, प्रथमेश परब, जे.डी. चक्रवर्ती, महेश मांजरेकर, मिथिलेश चतुर्वेदी वगैरह का भी सही रहा लेकिन किसी को दमदार भूमिका ही नहीं मिली। कभी ‘सत्या’ में सत्या बन कर आए चक्रवर्ती को बहुत ही निरीह किस्म का रोल दिया गया वहीं देवेन और महेश जैसे बड़े कद के अभिनेता भी लाचार दिखे। गाने-वाने बेकार ही डाले गए जो कहानी का प्रवाह रोकते रहे। लोकेशन, कैमरा आदि ठीक रहे। पर हां, इसे देखते हुए कुछ खाने-पीने की मत सोचिएगा, न जाने किस सीन में मूत्रालय-शौचालय दिख जाए।
जब कहानी कुछ ‘कह’ न पा रही हो, जब आधे-आधे घंटे के सिर्फ छह एपिसोड हों और बार-बार मन करे कि फॉरवर्ड करो यार, ये तो पका रेला है, तो समझ लीजिए कि कहानी का नाम भले ही आप ‘ताज़ा खबर’ रख दें, उसमें सिवाय सड़ांध के कुछ है नहीं।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-06 January, 2023 on Disney+Hotstar
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Salute to you sach aap k saath hain aur sach aap likhten ho
धन्यवाद…
Apka review hr bar nai khabr hota h
शुक्रिया…
बहुत कायदे का धोया है 😊
शुक्रिया
बेशक ताजा खबर सब बासा और घिसा पिटा है लेकिन आपका रिव्यू ताजगी और नई ऊर्जा से भरपूर होता है! बहुत ही तरीके से आप बदलते समाज की सोच और नजरिए पर भी कटाक्ष करते हैं जो की एक कटु सत्य है पता नहीं हम किस दिशा में जा रहे हैं? ये नए दौर की लेखक मंडली है जिन में रचनात्मकता और प्रतिभा का जबरदस्त अभाव है! तो सस्तापन और फुहड़ता के सिवा और क्या उम्मीद की जाए! आपके रिव्यू से कीमती समय की काफी बचत हुई! धन्यवाद
धन्यवाद