–दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
साल में चार दिन उस कस्बे में पूजा होती है। इन्हीं चार दिनों में आती है एक भूतनी। जिस घर के बाहर ‘ओ स्त्री कल आना’ लिखा होता है, उसमें नहीं जाती। वरना रातों को मर्द उठा कर ले जाती है वह। सिर्फ मर्द, उनके कपड़े नहीं। कहते हैं कि ये भूतनी मर्दों की प्यासी है। जो उसकी आवाज़ पर पलटा, वह गायब। इसी कस्बे के तीन दोस्तों में से एक से पूजा के दिनों में मिलती है एक अनजान लड़की। न कोई नाम, न नंबर। अचानक आती है, अचानक गायब हो जाती है। कहीं यह लड़की ही वह ‘स्त्री’ तो नहीं…?
इस कहानी पर एक बेहद डरावनी, दहला देने वाली हॉरर फिल्म बन सकती थी जिसमें भरपूर डार्कनैस होती। कुछ वैसी ही जैसी ‘रागिनी एम.एम.एस.’ में थी। एक औरत जिसका कोई अतीत है, जिस पर कुछ अत्याचार हुआ और वो बन गई चुड़ैल। हॉरर फिल्में पसंद करने वाले लोग इस किस्म की फिल्म को सराहते भी। लेकिन इस फिल्म को पूरी तरह से हॉरर के रंग में नहीं रंगा गया है। इसे बनाने वाले जानते हैं कि हॉरर का स्वाद हर किसी की ज़ुबां पर नहीं चढ़ता। पैसे खर्च करके, तैयार-वैयार होकर थिएटरों में डरने के लिए जाने वाले लोग हिन्दी के बाज़ार में इतने ज़्यादा नहीं हैं कि किसी फिल्म को सिर्फ हॉरर के दम पर हिट कर दें। इसीलिए अपने यहां वो हॉरर फिल्में ज़्यादा चलती हैं जिनमें हॉरर के साथ रोमांस, म्यूज़िक, सैक्स, इमोशन जैसे मसालों को मिक्स किया जाए। विक्रम भट्ट और रामू की नींबू-मिर्ची वाली हॉरर फिल्मों को इनमें न ही गिनें तो बेहतर होगा। तो, इस फिल्म को लिखने-बनाने वालों ने भी अक्लमंदी की है और इस हॉरर फिल्म में कॉमेडी का ऐसा तड़का लगाया है कि आप हंसते रह जाते हैं और अचानक से कोई हॉरर-सीन आकर आपको चौंका भी जाता है।
इसकी कहानी दमदार है लेकिन राज-डी.के. की लिखी स्क्रिप्ट उसे उतने दमदार तरीके से बयान नहीं कर पाती। स्क्रीनप्ले में जो कॉमेडी और पंच डाले गए हैं वे इसे काफी चुटीला बनाते हैं और भरपूर मनोरंजन भी देते हैं लेकिन वे कहानी के अधखुले पन्नों को पूरी तरह से नहीं खोल पाते। यह (भूतनी) स्त्री प्यार और इज़्ज़त चाहती है, लेकिन इसकी बैकस्टोरी का पूरा किस्सा सामने न लाकर इसे उलझाया गया है। और भी बहुतेरी बातें हैं जिनके जवाब यह नहीं दे पाती। हालांकि एक मैसेज इसमें से निकलता है कि स्त्री जब बदला लेने पर आएगी तो मर्दों को डर कर घर में छुपना पड़ेगा, लेकिन यह मैसेज भी इसके कॉमिक फ्लेवर तले दबा-दबा सा रहता है। फिर अंत में आकर जिस तरह से कहानी को खत्म किया गया है, उसे समझने में तो बड़े-बड़ों के दिमाग के घोड़े खुल जाएंगे, यह तय है। निर्देशक अमर कौशिक ने पूरी फिल्म में प्रभावी निर्देशन देने के बाद सिर्फ सीक्वेल की संभावना खुली रखने के लिए क्लाइमैक्स को कन्फ्यूज़ कर दिया।
राजकुमार राव, अपारशक्ति खुराना, अभिषेक बैनर्जी, पंकज त्रिपाठी, विजय राज़, अतुल श्रीवास्तव जैसे कलाकारों की सधी हुई एक्टिंग के लिए भी यह फिल्म हमेशा याद की जाएगी। श्रद्धा कपूर प्यारी लगती हैं। फ्लोरा सैनी प्रभावी रही हैं।
अपने लुक, अपनी लोकेशन, किरदारों की बुनावट, कलाकारों की एक्टिंग, कॉमिक फ्लेवर, हॉरर की खुराक, चुटीले संवाद जैसी इसकी बातें इसे एक दर्शनीय फिल्म का दर्जा देती हैं। एक अलग अंदाज़ में ही सही, समाज की सलवटों को इस्त्री करने का काम यह ‘स्त्री’ बखूबी करती है जिसका स्वागत कल नहीं, आज होना चाहिए।
अपनी रेटिंग-साढ़े तीन स्टार
Release Date-31 August, 2018
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)