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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-एक्शन इमोशन की फिल्मी घेराबंदी ‘टैंपल अटैक’ में

Deepak Dua by Deepak Dua
2021/07/11
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-एक्शन इमोशन की फिल्मी घेराबंदी ‘टैंपल अटैक’ में
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 -दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

अहमदाबाद के एक मंदिर में चार आतंकी घुस आए हैं। उन्होंने कइयों को मार दिया है और कइयों को बंधक बना लिया है। उनकी मांग है कि जेल में बंद उनके एक साथी को रिहा किया जाए। एन.एस.जी. कमांडो आकर मोर्चा संभालते हैं और आतंकियों को मार गिराते हैं।

2002 में गुजरात के गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमले से प्रेरित इस कहानी में नया या अनोखा कुछ नहीं है। किसी जगह पर आतंकियों के घुसने, लोगों को बंधक बनाने और कमांडो कार्रवाई के बाद सब सही हो जाने की कहानियां अब फिल्मी पर्दों के लिए पुरानी पड़ चुकी हैं। ओ.टी.टी. के मंच पर भी ऐसा काफी कुछ आ चुका है। इसलिए यह सब अब चौंकाता या दहलाता नहीं है। हां, ललचाता ज़रूर है। मन करता है कि देखें, कमांडो आखिर कैसे सब सही करते हैं। लेकिन ज़ी 5 पर आई यह फिल्म ‘स्टेट ऑफ सीज-टैंपल अटैक’ एक रुटीन फ्लेवर की कहानी को उतने ही रुटीन अंदाज़ में परोसती है और इसीलिए ज़्यादा कस कर नहीं बांध पाती है।

कहानी की शुरूआत कश्मीर में मेजर हनुत सिंह (अक्षय खन्ना) की टीम के एक मिशन से होती है जिसमें मेजर एक साथी को खोकर खुद घायल हो गया था। ठीक होने के बाद उसका निशाना चूकने लगा है। तभी उसे गुजरात जाने का मौका मिलता है। वहां मंदिर में फंसे लोगों को बचाने के मिशन के ज़रिए वह खुद पर लगे दाग को भी धो देना चाहता है।

इस कहानी में एकरसता तो है ही, इसकी स्क्रिप्ट में भी काफी हल्कापन है जो बार-बार सामने आता रहता है। बस, एक एक्शन ही है जो देखने वालों को बांधे रखता है। लेकिन उसमें भी बेवजह का खून-खराबा दिखाया गया है जो खटकता है। इस किस्म की कहानी के लिए पटकथा में कसावट के साथ-साथ निर्देशन में जो पैनापन होना चाहिए, वह भी यहां कम झलकता है। केन घोष अभी तक अलग तरह की फिल्में बनाते आए हैं। उन्होंने कोशिश तो बहुतेरी की, लेकिन इस विषय को पूरी तरह से साधने में वह चूके हैं।

अक्षय खन्ना कहीं-कहीं बहुत प्रभावी तो ज़्यादातर जगहों पर साधारण रहे। उम्र उनके चेहरे पर झलकने लगी है। उन्हें यह भी समझना होगा कि टेढ़े-मेढ़े मुंह बना कर संवाद बोलने से असर नहीं बढ़ता है। बाकी के तमाम कलाकारों (अभिमन्यु सिंह, गौतम रोडे, विवेक दहिया, मंजरी फड़णीस, अक्षय ओबेरॉय, प्रवीण डबास, समीर सोनी, मीर सरवर, चंदन रॉय, रोहन वर्मा आदि) को हल्के और छोटे किरदार मिले, जिन्हें उन्होंने सही तरह से निभा दिया। कैमरागिरी अच्छी है।

फिल्म खत्म होती है तो मंदिर के स्वामी जी कहते हैं-‘लोगों को यह समझना होगा कि हिंसा से सौ प्रश्न खड़े तो हो सकते हैं लेकिन हिंसा किसी एक प्रश्न का उत्तर नहीं हो सकती।’ बस, यही इस फिल्म का हासिल है जो दिखाती है कि कैसे कुछ लोग (आतंकवादी) ऊपर वाले के नाम पर हिंसा को जायज समझते हैं और कैसे कुछ लोग (सैनिक) नीचे वालों की रक्षा के लिए जायज हिंसा करते हैं। एक साधारण विषय को भले ही फिल्मी ढंग से उठाती हो यह फिल्म लेकिन इसे देखा जा सकता है। टाइमपास कह लें, या वन टाइम वॉच, आपकी मर्ज़ी।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-09 July, 2021

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: ‘टैंपल अटैक’abhimanyu singhakshaye khannachandan roygautam rodeken ghoshmanjari fadnnismir sarwarparvin dabassamir soniState of Siege Temple Attack reviewvivek dahiya
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