-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
ओ.टी.टी. के आने से बहुत सारी डॉक्यूमैंट्री फिल्मों को भी आम लोगों तक पहुंचने के रास्ते दिखने लगे हैं जिन्हें पहले इक्का-दुक्का टी.वी. चैनलों और फिल्म समारोहों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। डिस्कवरी प्लस ओ.टी.टी. ऐसे कई विषयों पर डॉक्यूमैंट्री लाता रहता है जिनके बारे में जानने की ख्वाहिश तो दर्शक रखते हैं लेकिन उस जानकारी को पाने का कोई खास जरिया उन्हें नजर नहीं आता। ताजा मिसाल है 4 अगस्त को रिलीज़ हुई ‘सीक्रेट्स ऑफ द कोह-ए-नूर’।
नाम से ही ज़ाहिर है कि यह डॉक्यूमैंट्री कोह-ए-नूर या कोहिनूर यानी रोशनी का पर्वत कहे जाने उस चमकदार हीरे के बारे में है जिसे दुनिया के सबसे बड़े हीरों में गिना जाता है और जिसकी कीमत का अंदाज़ा लगा पाना इंसानी कुव्वत के बस के बाहर है। ‘ए वैडनस डे’, ‘स्पेशल 26’, ‘बेबी’ जैसी कई फिल्में बना चुके प्रख्यात निर्देशक नीरज पांडेय की बनाई यह डॉक्यूमैंट्री दर्शकों को कोहिनूर की रहस्यमयी, चमकीली, अद्भुत और अनोखी यात्रा पर ले जाती है जिसमें सारथी यानी सूत्रधार की भूमिका निभाते हैं प्रतिभाशाली अभिनेता मनोज वाजपेयी। 45-45 मिनट के दो एपिसोड में मनोज हमें दक्षिण भारत के गोलकुंडा की खान से करीब एक हजार साल पहले निकले दुनिया के इस सबसे बड़े हीरे के अब तक के सफर पर हमें अपने साथ रखते हुए हमें इन दस सदियों के इतिहास का दौरा भी करवाते हैं।
दक्षिण भारत के गोलकुंडा की एक खदान से निकल कर आंध्रप्रदेश के भद्रकाली मंदिर में देवी की आंख में जड़े इस हीरो को अलाउद्दीन खिलजी के सिपहसालार मलिक काफूर द्वारा लूट कर दिल्ली लाए जाने से शुरू हुई यह कहानी बताती है कि यह हीरा कभी भी खरीदा या बेचा नहीं गया बल्कि इसे हर बार या तो तलवार के दम पर हासिल किया गया या फिर तोहफे के तौर पर। लेकिन अपने अंतिम पड़ाव यानी ब्रिटिश हुकूमत ने इसे पंजाब के महाराजा दिलीप सिंह से छल द्वारा हासिल किया। इस हीरे के साथ मिथक जुड़ते चले गए कि यह जिस-जिस के के पास रहा, उसे बर्बाद कर गया। इन हजार सालों में यह कई बार लोगों और इतिहास की नजरों से ओझल भी हुआ और वह भी एक-दो नहीं बल्कि सौ, दो सौ वर्षों के लिए। इस हीरे को हमेशा प्रतिष्ठा के तौर पर देखा गया और कोई इसकी कीमत नहीं आंक सका। एक बार तो इसे एक मौलाना ने पेपर वेट की तरह भी इस्तेमाल किया था। 793 कैरेट के शुरूआती वजन का यह हीरा सदियों के इस सफर में आज 105.6 कैरेट का होकर लंदन के एक संग्रहालय में रखा हुआ है और इस पर भारत के अलावा पाकिस्तान, ईरान और यहां तक कि अफगानिस्तान के तालिबान तक अपना हक जताते हैं।
कोहिनूर के सफर की कोई वीडियो फुटेज या फोटो आदि उपलब्ध न होने के बावजूद नीरज पांडेय ने इस डॉक्यूमैंट्री को नीरस नहीं होने दिया है। हर जगह इतिहास के पन्ने दिखाने के लिए उन्नत किस्म के एनिमेशन का इस्तेमाल इसे दर्शनीय बनाता है और शानदार हिन्दी में अपनी अदाओं के साथ मनोज वाजपेयी का नैरेशन इसे रोचक। साथ ही बहुत सारे लोगों, इतिहासकारों के साक्षात्कार कोहिनूर की इस कहानी में दर्शक को बांधे रखते हैं। इतिहासकारों में के.के. मुहम्मद, फरहत नसरीन, मानवेंद्र के. पुंढीर, इरफान हबीब, बर्लिन के माइल्स टेलर, कनाडा की डेनियल किन्से, लेखिका एड्रियन म्यूनिख, सांसद शशि थरूर, राजदूत रहे नवतेज सरना, लेखक जे. साईं दीपक, इस हीरे को तराशने वाली कंपनी से जुड़ी पॉलिन विलेम्से आदि के इंटरव्यू इस पूरी डॉक्यूमैंट्री में कदम-कदम पर ज्ञान बढ़ाते हैं। अंत में मनोज का यह कहना दिलचस्प लगता है कि कोहिनूर की अब तक की कहानी भले ही खत्म हुई हो उसका सफर अभी खत्म नहीं हुआ है। यह फिल्म खत्म होते-होते यह सवाल भी छोड़ जाती है कि हम भारतीयों के लिए कोहिनूर के मायने क्या हैं-सदियों की विरासत, गौरवशाली इतिहास, भारत की पहचान, बेशकीमती रत्न, शापित हीरा या सिर्फ एक चमकता पत्थर?
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि डॉक्यूमैंट्री कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-04 August, 2022
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
प्रिय दीपक दुआ जी, “”सीक्रेट्स ऑफ द कोह ए नूर का रिव्यू बहुत ही शानदार है आपकी कलम से निकला एक एक शब्द फिल्म को देखने के लिए प्रेरित करता है नीरज पांडेय की अथक परिश्रम ने इसे दर्शनीय बनाया है और आपकी समीक्षा पढ़ कर ही ये जिज्ञासा और भी बढ़ गई हैं! धन्यवाद
धन्यवाद
महाराजा दिलीप सिंह हीरे के अंतिम वारिस थे 😊