-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
इसी दुनिया के किसी शहर में अंडरवर्ल्ड का बादशाह रॉय रहता है। एक डील के लिए वह मुंबई आता है और मारा जाता है। उसके बेटे को उसके कातिलों की तलाश है। वहीं कुछ लोग उसके बेटे को हटा कर उसकी कुर्सी पर बैठना चाहते हैं। इन सबको तलाश है एक ब्लैक-बॉक्स की जो मुंबई में कहीं है, ताकि उससे एक तिजोरी खोली जा सके। उधर मुंबई में एक चोर ने सबकी नाक में दम कर रखा है जिसे पकड़ने के लिए एक अंडरकवर अफसर को लाया जाता है। लेकिन ऐसी फिल्मों में जो दिखता है, वही सच नहीं होता। और ऐसी फिल्मों में लोग जैसे दिखते हैं, अक्सर वे उसके उलट होते हैं। तो बस, यहां भी एक-एक कर परतें खुलती हैं-कहानी की और लोगों की भी।
अब यह कोई नहीं कह सकता कि इस फिल्म में कहानी नहीं है। है, बाकायदा है और इतनी तगड़ी है कि यकीन नहीं होता कि यह अकेले सुजीत ने लिखी है। हो न हो, यह कहानी ज़रूर उनकी बरसों की तपस्या के बदले उन पर प्रकट हुई होगी। फिल्म शुरू होती है तो काफी देर यह पता ही नहीं चलता कि आखिर हो क्या रहा है। इस फिल्म की स्क्रिप्ट में इतने सारे ट्विस्ट हैं कि इसे लिखने वाले की अक्ल की तारीफ करने का मन होता है। कितना दिमागदार आदमी रहा होगा वह जिसने ऐसी स्क्रिप्ट लिखी जो पूरे ब्रह्मांड में सिवाय उसके किसी को समझ ही नहीं आ रही। दरअसल यहां सारी गलती दर्शकों की है। ये लोग थिएटर में जाते हैं कि आराम से पसर कर फिल्म देखेंगे, दिमाग को रिलेक्स करेंगे। पर उन्हें यह नहीं मालूम कि सामने पर्दे पर उनके दिमाग का इम्तिहान लेने के लिए फिल्म को खुला छोड़ दिया गया है। आधे-पौने घंटे बाद जब बंदा सैटल होता है तो पता चलता है कि अभी तक जो देखा, वो सिर के ऊपर से निकल गया और अब सिर के अंदर हल्का-हल्का दर्द होने लगा है। खैर, इंटरवल में बंदा कुछ गर्म खाकर और ठंडा पीकर सोचता है कि अब देखता हूं, कैसे समझ नहीं आती फिल्म। लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात। अरे भई, आप फिल्म को समझना ही क्यों चाहते हो? चुपचाप एन्जॉय करो न जो सामने दिख रहा है। प्रभास की बॉडी देखो, श्रद्धा कपूर की मासूमियत देखो, ढेर सारे विलेनों की कुटिल चालें देखो, वर्ल्ड क्लास से भी बढ़ कर एक्शन देखो, कार-बाइक की चेज़िंग देखो, बेहद शानदार स्पेशल इफैक्ट्स देखो, आंखों को भरमाने वाली लोकेशंस देखो, लेकिन नहीं, आपको तो कहानी चाहिए और वो भी ऐसी जो आपको समझ भी आए। धत्त्त…!
गलती सारी आप दर्शकों की ही है। वो आप ही थे न जिसने ‘धूम 3’ को सुपर-डुपर हिट बनाया था? वो भी आप ही थे जिसने ‘रेस 3’ को सिर पर बिठाया था, ‘बैंग बैंग’ को कामयाबी का स्वाद चखाया था, ‘ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान’ को भी आप ही ने पसंद किया था। हॉलीवुड से आने वाली ‘टर्मिनेटर’, ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’, ‘ट्रांस्पोर्टर’ वगैरह के लिए आप ही बावले होते हैं न? तो जब आप ऐसी कचरात्मक फिल्में पसंद करते हैं तो फिल्म वालों को लगता है कि आप को सिर्फ यही सब चाहिए और ऐसे में वे ‘साहो’ बना कर ले आते हैं तो उन बेचारों की क्या गलती? इस फिल्म का ठीक से हिन्दी भी न बोलने वाला हीरो पंजाबी गाना गा रहा है क्योंकि आप ही लोगों को हर फिल्म में पंजाबी गाना चाहिए। रही बात कलाकारों की एक्टिंग की, तो वो तब की जाए न जब उनमें से किसी को कोई कायदे का किरदार मिला हो। हां, सूट-बूट सबने ज़ोरदार पहने हैं।
दरअसल यह फिल्म आपको अच्छे दिनों की तरफ ले जाती है। आप फख्र कर सकते हैं कि अपने मुंबई में कोई चोर दो हज़ार करोड़ की चोरी कर सकता है। आप यह सोच कर सीना फुला सकते हैं कि हमारे यहां की पुलिस अति आधुनिक और अति अक्लमंद हो गई है। इस फिल्म का एक्शन और स्पेशल इफैक्ट्स देख कर आप चकाचौंध हो सकते है। और चाहें तो आप इस बात पर भी गर्व महसूस कर सकते हैं कि तीन सौ पचास करोड़ लगा कर करोड़ों लोगों को तीन घंटे तक कैसे चू… रन चटाया जा सकता है। और हां, एक बात फिर कहूंगा-जिस फिल्म के निर्देशक के पास अपनी फिल्म के लिए कायदे का नाम तक न हो तो समझ लीजिए उसे खुद ही नहीं पता कि वह क्या बना रहा है, किसके लिए बना रहा है। बचिए, ऐसे लोगों से, ऐसे लोगों की फिल्मों से। क्योंकि, ठग्स पूरे हिन्दोस्तान में हैं। और अगर फिर भी आपको यह फिल्म देखने जाना है तो चार दोस्त साथ लेकर जाइएगा ताकि, 1-वे आपको फिल्म समझा सकें और 2-यदि फिल्म के दौरान कुछ ‘ऐसा-वैसा’ हो जाए तो फिर चार कंधों की ज़रूरत तो हर किसी को पड़ती है। है न…!
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-30 August, 2019
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)