• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-रायता बनाना सिखाती है ‘नानू की जानू’

Deepak Dua by Deepak Dua
2018/04/21
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-रायता बनाना सिखाती है ‘नानू की जानू’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

लड़की का पिता आलू के परांठे बना रहा था। वह दही लेने घर से निकली। एक्सीडेंट हुआ। मर गई। जिस लड़के ने उसे अस्पताल पहुंचाया, उसी के घर भूतनी बन कर पहुंच गई। लड़का गुंडागर्दी करता था। अब वह बदलने लगा। धमकाने की बजाय मिमियाने लगा। लड़की को हिट करने वाले को तलाशने लगा। राज़ खुला कि लड़की की आत्मा क्यों भटक रही थी। अंत में उसे मुक्ति मिल गई।

यह फिल्म देखने के बाद ख्याल आता है कि लड़की दही ले आती तो बाप-बेटी परांठे-दही खा लेते। न कोई बवाल मचता, न यह फिल्म बनती। मगर नहीं। लड़की दही लेकर नहीं लौटी और रायता बन गया-कहानी का भी और फिल्म का भी।

कॉमेडी फिल्में लगभग हर किसी को पसंद आती हैं। हॉरर फिल्मों के दीवानों की गिनती भी बहुत है। लेकिन इन दोनों स्वादों को मिला कर हॉरर-कॉमेडी बनाना कोई हंसी-खेल नहीं। सतीश कौशिक जैसा निर्देशक ‘गैंग ऑफ घोस्ट्स’ में मात खा चुका है। अनुष्का शर्मा वाली ‘फिल्लौरी’ भी हॉरर और कॉमेडी के घालमेल में कुछ ठोस नहीं कह पाई थी। यही दिक्कत इस फिल्म के साथ भी है। पहली प्रॉब्लम तो इसके नाम के साथ है। सुन कर लगता है कि किसी नाना और उसकी दोहती की कहानी कहती बच्चों की फिल्म होगी। वह भी होती तो सही था। यहां तो बचकानी फिल्म निकली। हीरो का नाम नानू है। तुक मिलाने के लिए साथ में जानू जोड़ दिया है जबकि लव-शव वाला कोई चक्कर न तो दिखता है, न समझ में आता है।

वैसे यह एक तमिल फिल्म का रीमेक है। इसकी कहानी को उस फिल्म से अलग करने के लिए मनु ऋषि ने मेहनत भी की है लेकिन नतीजा औसत से ऊपर नहीं आ पाया है। स्क्रिप्ट में मुद्दे की बातें कम हैं, बिखरी हुई हैं और ज्यादा प्रभावी भी नहीं हैं। अब कहने को यह फिल्म बहुत कुछ कहती है। किसी का मकान किराए पर लेकर उसे कब्जाने और मकान-मालिक को धमका कर उसे बेचने पर मजबूर करने का ‘बिजनेस’ सिखाती है। ड्राइविंग के समय मोबाइल के इस्तेमाल न करने, स्कूटर चलाते समय हेलमेट पहनने, सड़क-हादसे में दूसरों की मदद करने, पड़ोस की बच्ची के लिए चॉकलेट लाने, घरेलू हिंसा को न सहने, सिगरेट-शराब न पीने, तंतर-मंतर करने वालों पर भरोसा न करने, माता के जागरण में ढोंग से बचने… जैसी चार सौ छप्पन बातें हैं इस फिल्म में। कहीं-कहीं हल्का-सा हॉरर और थोड़ी-बहुत कॉमेडी भी है। बस, नहीं है तो उम्दा मनोरंजन। नहीं है तो कोई ठोस बात। नहीं है तो वह पकड़ जो आपको बांधे रख सके। अब नहीं है, तो नहीं है।

अभय देओल उम्दा रहे हैं। नायिका पत्रलेखा ठंडी लगीं। भूतनी बनने के बाद हरा-काला, डरावना मेकअप क्या जरूरी हो जाता है? प्यारी लड़की बन कर भी तो वह हीरो से प्यार कर सकती थी न। राजेश शर्मा, हिमानी शिवपुरी, बृजेंद्र काला, मनोज पाहवा, जैसे उम्दा कलाकारों को कायदे के मौके ही नहीं मिले। मनु ऋषि का रोल भी बढ़िया है, काम भी। गाने साधारण हैं। डांस के नाम पर अपने शरीर को कामुक मुद्राओं में हिलाने वाली हरियाणवी डांसर सपना चौधरी वाला गाना तो जबरन ठूंसा हुआ लगता है। ‘वॉर छोड़ न यार’ बना चुके निर्देशक फराज़ हैदर ने इस फिल्म में सब कुछ डालने की कोशिश की है। पता नहीं किसी को क्या भा जाए। लेकिन इस चक्कर में जो रायता फैला है, उसे समेटना वह भूल गए। भुगतना दर्शकों को पड़ रहा है।

अपनी रेटिंग-डेढ़ स्टार

Release Date-20 April, 2018

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: manoj pahwamanu rishinanu ki jaanu reviewpatralekharajesh sharmasapna chaudhary
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-उम्मीदों का मौसम ‘अक्टूबर’

Next Post

रिव्यू-सरकार, यह ‘देव’ तो ‘दास’ निकला

Related Posts

वेब-रिव्यू : मार्निंग शो वाले सिनेमा का सेलिब्रेशन ‘मरते दम तक’
CineYatra

वेब-रिव्यू : मार्निंग शो वाले सिनेमा का सेलिब्रेशन ‘मरते दम तक’

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’
CineYatra

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’
CineYatra

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’
CineYatra

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’
CineYatra

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं

Next Post
रिव्यू-सरकार, यह ‘देव’ तो ‘दास’ निकला

रिव्यू-सरकार, यह ‘देव’ तो ‘दास’ निकला

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.