• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-चटनी चटाती ‘मेरे हस्बैंड की बीवी’

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/02/22
in फिल्म/वेब रिव्यू
9
रिव्यू-चटनी चटाती ‘मेरे हस्बैंड की बीवी’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

अंकुर चड्ढा और प्रभलीन ढिल्लों (जिसे फिल्म में ढिल्लों, ढिल्लोन, ढिल्लन भी कहा गया) का तलाक हो चुका है लेकिन प्रभलीन के साथ बिताए बुरे दिन अंकुर की यादों से नहीं निकल पा रहे हैं। उसे पुरानी दोस्त अंतरा खन्ना मिलती है, दोनों करीब आते हैं कि तभी प्रभलीन लौट आती है और अंकुर को वापस पाने की जुगत में लग जाती है। कौन जीतेगी इस रेस में? हस्बैंड को छोड़ चुकी बीवी या हस्बैंड की होने वाली बीवी?

(रिव्यू-भाग कर जाइए ‘हैप्पी’ हो जाइए)

अपने आकर्षक नाम और अपनी कहानी की रूपरेखा से लुभाती इस फिल्म को पति-पत्नी के रिश्ते की पेचीदगियों के इर्दगिर्द बुनी एक कॉमेडी फिल्म का कलेवर दिया गया है। फिल्म अपने फ्लेवर में है भी ऐसी जिससे हल्की-फुल्की कॉमेडी उपजती रहे और रिश्तों की संजीदगियों पर बात भी न हो। अपने ‘बॉलीवुड’ से आने वाली इस किस्म की फिल्में अक्सर यही तो करती आई हैं। आइए, देखिए, टाइमपास कीजिए और जाइए। जिसे कोई सीख लेनी हो ले ले, हम तो मसखरी दिखाएंगे।

(रिव्यू-‘हैप्पी’ की भागमभाग में चीनी हेराफेरी)

इस फिल्म की कहानी का मूल आइडिया ही खोखला है। तलाक के बाद भी ‘हम दोस्त बने रहेंगे’ वाला फॉर्मूला फिल्मों में चलता है या फिल्मी परिवारों में, आम इंसान तो तलाक के बाद एक-दूसरे का नाम तक ज़ुबान पर नहीं लाते। तलाक के दो साल बाद हुए एक्सीडैंट की खबर पहले वाले पति को नहीं दी जाती और न ही वह भागता हुआ आता है। आता भी है तो उसे फिर से अपने साथ नहीं चिपकाए रखता। लेकिन यह फिल्म है जनाब, लिखने वालों ने लॉजिक नहीं लगाया, आप देखते हुए क्यों लॉजिक भिड़ा रहे हैं? चलिए छोड़िए, हमें तो राइटर साहब बस इतना बता दीजिए कि जिस छोड़े गए पति के पीछे यह पत्नी हाथ-मुंह धोकर पड़ी हुई है उसके अंदर आखिर क्वालिटी क्या दिखाई है आपने? बंदा ढंग से बात नहीं कर पाता, फट्टू है, हड़बड़ाता रहता है, खुद का कोई वजूद तक नहीं और अपने बूढ़े मां-बाप से अलग रहता है। रही सिगरेट-शराब पीने की बात तो अब इसे हमारी फिल्मों में ‘ऐब’ नहीं बल्कि ‘गुण’ के तौर पर दिखाया जाता है, गोया जो नहीं पीता वह देश की अर्थव्यवस्था में योगदान नहीं करता। लगता है सैंसर बोर्ड को भी यह बात समझा दी गई है कि नशामुक्ति वाले विज्ञापन फिल्म से पहले और इंटरवल के बाद चलवा दो, बाकी पर्दे पर जो पिया जा रहा है, उसे एन्जॉय करो। फिल्म वाले भी पंजाबी परिवार दिखा कर ऐसे शराब बहाते हैं जैसे पंजाब के पांच दरिया पानी से नहीं शराब से भरे हों। इस फिल्म के मुख्य किरदार जब भी आपस में मिलते हैं, वह जगह कोई मयखाना ही होती है।

(रिव्यू-पति पत्नी और मसालेदार वो)

अपनी लिखाई में लड़खड़ाती इस फिल्म में न तो किरदारों को ठीक से खड़ा किया गया है और न ही उन्हें संवादों की ताकत सौंपी गई है। किरदारों की फौज ज़रूर है ताकि उनमें लिए गए सपोर्टिंग कलाकारों के सहारे फिल्म को दमदार बनाया जा सके। लेकिन जब शक्ति कपूर, कंवलजीत सिंह, अनीता राज, मुकेश ऋषि, आदित्य सील, दीनो मोरिया, टिक्कू तल्सानिया, अलका कौशल वगैरह को ढंग का रोल ही नहीं मिलेगा तो ये लोग सिर्फ भीड़ का हिस्सा लगेंगे, किरदार नहीं। बाकी, हीरो के दोस्त के किरदार को मुस्लिम दिखाना, उससे माइनोरिटी वाला संवाद बुलवाना, फिल्म में सिर्फ ईद का त्योहार दिखाना, यह चतुराई भी ‘बॉलीवुड’ न जाने कब से करता आया है।

(रिव्यू-‘खेल खेल में’ दे गई एंटरटेनमैंट)

मुदस्सर अज़ीज़ को शादी और रिश्तों के इर्दगिर्द घूमती फिल्में बनानी आती हैं। या यह भी कह सकते हैं कि उन्हें सिर्फ इसी किस्म की फिल्में ही बनानी आती हैं। बतौर निर्देशक उनकी ‘हैप्पी भाग जाएगी’ ने खूब मनोरंजन किया था तो उसके सीक्वेल ने पकाया भी था। लेकिन ‘पति पत्नी और वो’ और ‘खेल खेल में’ ठीक बनी थीं। हालांकि इस बार भी उन्होंने अपने निदेशन को साधे रखा है लेकिन असली दिक्कत फिल्म की लिखाई के स्तर पर ही आई है जब सब कुछ जबरन घुसेड़ा हुआ और बनावटी-सा लगने लगता है। दिल्ली की कहानी है, पंजाबी परिवार हैं लेकिन कई शब्द मुंबईया हैं। बाद में जबरन विदेश भी जाना है ताकि सब्सिडी ली जा सके।

अर्जुन कपूर अपनी अधिकांश फिल्मों जैसे ही रहे हैं-औसत। भूमि पेडनेकर बहुत आर्टिफिशियल लगती हैं। कुछ एक जगह ही उनका मेकअप और काम ठीक रहा है वरना ज़्यादातर मौकों पर वह लाउड बनी रहीं और कई बार तो बहुत भद्दी लगीं। अपनी ‘शारीरिक संपदा’ दिखा कर भरपाई करने की उनकी कोशिश भी व्यर्थ रही। रकुलप्रीत प्यारी लगीं, सुंदर लगीं और काम भी बढ़िया कर गईं। अर्जुन के दोस्त बने हर्ष गुजराल घिसे-पिटे वन लाइनर मारते रहे। गाने-वाने यूं ही रहे। अजीब किस्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक डाल कर फिल्म को फनी लुक देने की कोशिश की गई।

इस किस्म की फिल्में असल में चटनी की तरह होती हैं। किसी बासे पकौड़े पर भी डाल दो तो कुछ पल के लिए उसकी रंगत और स्वाद को बढ़ा देती हैं। पता तो बाद में चलता है जब हाज़मा खराब होता है। अपना ‘बॉलीवुड’ बरसों से यही करता आया है। दर्शक न संभले तो आगे भी यही करता रहेगा।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-21 February, 2025 in theaters

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

Tags: alka kaushalanita rajbhumi pednekarharsh gujralkanwaljit singhMere Husband Ki BiwiMere Husband Ki Biwi reviewMudassar Azizmukesh rishirakul preet singhshakti kapoortiku talsaniavashu bhagnani
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-शेर नहीं ‘छावा’ है यह फिल्म

Next Post

रिव्यू-गहरे नहीं उतर पाते ‘सुपरबॉयज़ ऑफ मालेगांव’

Next Post
रिव्यू-गहरे नहीं उतर पाते ‘सुपरबॉयज़ ऑफ मालेगांव’

रिव्यू-गहरे नहीं उतर पाते ‘सुपरबॉयज़ ऑफ मालेगांव’

Comments 9

  1. Renu Goel says:
    8 months ago

    Bhut hi tikhi nazar se likha gya h
    Apke review ki bat hi alag h
    👏👏👏

    Reply
    • CineYatra says:
      8 months ago

      धन्यवाद…

      Reply
  2. Shilpi rastogi says:
    8 months ago

    हर बार की तरह बढ़िया रिव्यू ..फिल्म तो जैसी है वैसी है लेकिन रिव्यू मसालेदार है 👌👌

    Reply
    • CineYatra says:
      8 months ago

      शुक्रिया…

      Reply
  3. sohail ali jafri says:
    8 months ago

    aapke review me chatni toh he majedar vaali
    pad kar chatni ka test aagya

    Reply
    • CineYatra says:
      8 months ago

      धन्यवाद…

      Reply
  4. NAFEES AHMED says:
    8 months ago

    एकदम कड़क -सडक रिव्यु…..

    मुस्लिम दीपावली या होली. मनाये…. या कोई गैर मुस्लिम ईद मनाये ये तो. बड़प्पन है बॉलीवुड वालों का. कि .. ये कुछेक दिखाते हैँ कि ये हिंदुस्तान है औऱ यहाँ आपस में सभी धर्म क़े. लोग भाईचारे क़े साथ रहते हैँ…..औऱ एक दूसरे क़े त्यौहार मनाते हैँ…. जो वाकई हिंदुस्तान है.

    रही…कलाकारों की भीड़.. तो वो तो सिर्फ एक कतार मात्र है…. जो. लाइन में तो सब लगे हैँ लेकिन सोच रहे हैँ कि मेरा नंबर कब आएगा साहिब….

    Reply
  5. B S BHARDWAJ says:
    8 months ago

    बहुत सटीक समीक्षा दीपक जी 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

    Reply
    • CineYatra says:
      8 months ago

      धन्यवाद भाई साहब…

      Reply

Leave a Reply to NAFEES AHMED Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment