-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
सात दोस्त एक शादी में मिले। तीन कपल और एक सिंगल। सभी की ज़िंदगी में हल्की-फुल्की उठा-पटक चल रही है। रात को पीते-पीते ये लोग एक खेल खेलते हैं कि सभी के फोन टेबल पर रहेंगे और किसी के भी फोन पर आने वाली कॉल, मैसेज, ई-मेल को सब के सामने सुना, पढ़ा जाएगा। खेल शुरू होता है। धीरे-धीरे कई राज़ खुलने लगते हैं और उनके ज़रिए होने वाला सच का सामना इनकी ज़िंदगियों की उठा-पटक को उथल-पुथल में बदल देता है। इनमें से कोई मरने पर उतारू हो जाता है तो कोई मारने पर। उसके बाद…!!!
कहानी दिलचस्प है और यह इस बात से भी ज़ाहिर होता है कि 2016 में आई जिस इटेलियन फिल्म का यह रीमेक है उसके पूरी दुनिया में दो दर्जन से भी ज़्यादा रीमेक बन चुके हैं। भारत में ही उस फिल्म के तीन रीमेक (एक कन्नड़, दो मलयालम) बन चुके हैं। साफ है कि कहानी का दम देख कर ही इतने सारे फिल्ममेकर ऐसा कर रहे होंगे। लेकिन ऐसी कहानी में तो गंभीरता ज़्यादा होगी न? रिश्तों की ऊंच-नीच सामने आएगी तो रोना-धोना ज़्यादा होगा न? वाजिब सवाल हैं। लेकिन मूल इटेलियन फिल्म को लिखने वालों ने उसे जो कॉमिक फ्लेवर दिया था उसके चलते वह ज़्यादा पसंद की गई थी और इस फिल्म को लिखने वालों ने भी शुरू से ही इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि दर्शक बोर न हो और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट व बीच-बीच में ठहाकों की गुंजाइश बनी रहे।
सभी किरदारों को एक जगह जुटाने के लिए भारतीय माहौल में शादी वाले घर से बेहतर जगह नहीं हो सकती। यहां जयपुर के एक आलीशान होटल में ये लोग मिले हैं। इधर फिल्मों में दिखाई दे रही रंग-बिरंगी शादियों वाली शुरुआती तड़क-भड़क के बाद फिल्म सीधे अपने असली ट्रैक पर आ जाती है और लगातार उस पर बनी भी रहती है। इस फिल्म की पहली खूबी यही है कि इसे कायदे से लिखा गया है। स्क्रिप्ट की रवानगी संवादों की संगत में और ज़्यादा निखर उठती है। फिर जिस किस्म के किरदार गढ़े गए हैं वे भी इसे दर्शनीय बनाते हैं। ‘हैप्पी भाग जाएगी’, ‘पति पत्नी और वो’ जैसी अपनी फिल्मों से निर्देशक मुदस्सर अज़ीज़ बता चुके हैं कि उन्हें कहानी में कॉमेडी का तड़का लगाना बखूबी आता है। यहां भी वह इस तड़के को सलीके से लगा कर फिल्म को अधिक स्वादिष्ट बनाने में कामयाब रहे हैं।
(रिव्यू-भाग कर जाइए ‘हैप्पी’ हो जाइए)
कहानी और निर्देशन को कलाकारों का भी पूरा साथ मिला है। अक्षय कुमार चुटीली बातें करने वाले मस्तमौला इंसान के रोल में हमेशा जंचते आए हैं। यहां भी मजमा उन्होंने ही लूटा है। तापसी पन्नू अपनी प्रभावी अदाकारी से असर छोड़ती हैं। आश्चर्यजनक तौर पर वाणी कपूर भी अच्छी लगी हैं। प्रज्ञा जायसवाल, आदित्य सील, चित्रांगदा सिंह आदि ठीक रहे। फरदीन खान को चिल्लाने वाले संवादों में देख कर समझ आता है कि उनका कैरियर लंबा क्यों नहीं चल पाया। वैसे बाकी दृश्यों में उनका काम बढ़िया है। एम्मी विर्क पर ऐसे भोले, फट्टू किस्म के किरदार अच्छे लगते हैं। गीत-संगीत अच्छा है, लोकेशन प्यारी। बस, शादी वाले दिन सबको सफेद कपड़े पहना कर रंगत थोड़ी कम कर दी कॉस्ट्यूम वालों ने।
(रिव्यू-पति पत्नी और मसालेदार वो)
आपसी रिश्तों के बीच की छुपन-छुपाई और खोखलेपन पर कायदे से बात करती यह फिल्म कुछ गंभीर मैसेज तो देती ही है, दर्शकों को एंटरटेनमैंट भी परोसती है। इसे देखने के बाद आप किसी महफिल में एक नया खेल भी खेल सकते हैं, दम हो तो।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-15 August, 2024 in theaters
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Review ko dekh kr lagta h movie dekhna jaruri sa ho gya h