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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ज़ंग लगी ‘मशीन’

Deepak Dua by Deepak Dua
2017/03/17
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-ज़ंग लगी ‘मशीन’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

दो भाइयों ने मिल कर ढाबा खोला। दूसरों की रेसिपी चुरा-चुरा कर ये दोनों तरह-तरह की डिश बनाते। दाल तड़का, कड़ाही पनीर, चिली चिकन, मटन कोरमा, मसाला डोसा, हक्का नूडल्स, बाटी-चोखा, पिज्जा, ग्रिल सेंडविच… इन की बनाई लगभग हर डिश को लोगों ने पसंद किया, चटखारे लेकर खाया। कुछ साल बाद इनमें से एक का बेटा ढाबे पर आया और बोला-पापा, चाचा मेरे लिए भी कुछ बनाओ। जवाब मिला-क्यों नहीं बेटा, दुनिया को इतने मजे दिलवाए, तू तो अपना ही है। दोनों भाइयों ने मिल कर आंच पर पतीला चढ़ाया और उसमें दाल, पनीर, चिकन, मटन, डोसा, सांबर, नूडल्स, पिज्जा, और पता नहीं क्या-क्या डालने लगे। भई, अपने घर का बच्चा है, सारे स्वाद देने थे उसे। पर हुआ क्या। पतीला तो भर गया लेकिन जो डिश बन कर आई उसमें किसी किस्म का स्वाद ही नहीं था। अब मुश्किल आई कि इस डिश का नाम क्या रखें। बहुत दिमाग लगाया और जब कुछ नहीं सूझा तो इसका नाम रख दिया-मशीन।

अब बताइए, इस फिल्म की तारीफ में और क्या जानना चाहते हैं आप? फिल्म से पहले इसके निर्देशक बंधुओं अब्बास-मस्तान की तारीफ में ये जान लीजिए कि ढेरों हिट फिल्में देने वाली इस जोड़ी ने अपने ढाई दशक से भी ज्यादा लंबे कैरियर में करीब डेढ़ दर्जन फिल्में बनाईं मगर मुश्किल से इक्का-दुक्का ही किसी ओरिजनल कहानी पर थी वरना बाकी सब की कहानी किसी न किसी विदेशी फिल्म से उड़ाई गई थी। और जब अपने बेटे की बारी आई तो इन्होंने यह अक्लमंदी भी नहीं दिखाई और अपनी ही कई हिट फिल्मों का रस इसमें निचोड़ डाला। पर भाई लोग यह भूल गए कि बासे और बेतरतीब माल को दर्शक फौरन पहचान लेते हैं और दर्शकों की समझ को हल्का समझ कर उन्हें कुछ भी और कैसी भी चीज परोसने वाले निर्देशकों ने हमेशा धूल फांकी है।

फिल्म की कहानी का सिर कहीं तो पैर कहीं और है। पहले ही सीन से इसमें जो बनावटीपन झलकना शुरू होता है वह धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। फिल्म के हीरो मुस्तफा की यह पहली फिल्म है। वह अब्बास के बेटे हैं। लेकिन फिल्म देख कर लगता है कि इस कदर लचर स्क्रिप्ट पर कोई अपने घर के बच्चे को भला कैसे लांच कर सकता है? कहने को इस फिल्म में रोमांस, धोखा, छल-कपट, दोस्ती-दुश्मनी, डबल रोल, कार-रेस, नाच-गाना, मारधाड़ जैसे वे तमाम मसाले हैं जो हिन्दी फिल्मों में होते हैं लेकिन एक साथ इतना कुछ और वह भी इस कदर बचकाने अंदाज में? हैरानी होती है कि ये वही अब्बास-मस्तान हैं जो ढेरों शानदार थ्रिलर फिल्में दे चुके हैं। और तो और इन्हें अपनी फिल्म के लिए कोई कायदे का नाम तक नहीं मिला क्योंकि ‘मशीन’ टाइटल का फिल्म से कोई नाता नहीं है।

मुस्तफा में अभी काफी कच्चापन है। और किस जमाने में जी रहे हैं वे? इतने लंबे बाल अब कौन रखता है भला? कियारा आडवाणी साधारण रहीं और बाकी के तमाम कलाकार एकदम बेकार। आदित्य बने इशान शंकर को कसम खानी चाहिए कि वह दोबारा कैमरे के सामने नहीं आएंगे। मुस्तफा भी इससे मिलती-जुलती कोई कसम खा लें तो अच्छा होगा। और हां, एक कसम आप भी खाइए कि घटिया फिल्म नहीं देखेंगे चाहे आप के पास वक्त और पैसा फालतू ही क्यों न हो।

अपनी रेटिंग-डेढ़ स्टार

Release Date-24 March, 2017

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: abbas-mustankiara advanimachine reviewmustafa
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