-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
खबर है ‘कट्टी बट्टी’ देखने के बाद इस फिल्म के हीरो इमरान खान के मामा आमिर खान फफक-फफक कर रो पड़े थे। यकीन मानिए अगर आपने यह फिल्म देखी तो शायद आपके साथ भी ऐसा ही हो, भले ही इसके पीछे की वजह कुछ और हो। और वह वजह है इस फिल्म का बेहद खराब टेस्ट जो इसे एक ऐसी थकी हुई फिल्म के तौर पर पेश करता है जो आपको न सिर्फ रुलाती है बल्कि सुलाती भी है।
नए ज़माने की खुली सोच वाली आधुनिक पीढ़ी के आपसी रिश्तों की पेचीदगियों पर इधर काफी फिल्में आई हैं। यह फिल्म भी वैसी ही है जिसमें पांच साल तक मुंबई जैसे शहर में लिव-इन में रहने के बाद लड़की, लड़के को छोड़ जाती है और वह उसे वापस पाने की ज़िद में लगातार ऊल-जुलूल हरकतें किए जा रहा है।
फिल्म की कहानी बेहद हल्की है और स्क्रिप्ट काफी खराब। अभी पिछले ही हफ्ते ‘हीरो’ जैसी बेहद थकी हुई फिल्म देने वाले डायरेक्टर निखिल आडवाणी की यह एक और खराब फिल्म है। निखिल को समझ ही नहीं आया कि कहानी के किस सिरे को पहले पकड़ना है और किस को बाद में। जिस तरह के फ्लैशबैक का इसमें इस्तेमाल किया गया वह लुभाता कम और खिजाता ज़्यादा है। फिल्म की बेहद सुस्त रफ्तार आपको सुलाने में मदद कर सकती है। आखीर के 10-15 मिनट में जाकर फिल्म संभलती है लेकिन तब तक आपका सब्र जवाब दे चुका होता है।
इमरान काफी खराब एक्टिंग करते हुए नजर आए हैं। कंगना रानौत अगर बड़े नाम वाले बैनर के झांसे में आने की बजाय कायदे की कहानियों पर ध्यान देंगी तो उनके लिए बेहतर होगा।
यह फिल्म दरअसल बड़े शहरों के मल्टीप्लेक्स थिएटरों में ऊंचे दामों पर टिकट खरीद कर जाने वाले उन कपल्स के लिए है जो थिएटरों में फिल्म देखने से ज़्यादा ‘किसी और’ मकसद से जाते हैं।
अपनी रेटिंग-2 स्टार
(नोट-18 सितंबर, 2015 को इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)
Release Date-18 September, 2015
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)