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Home फ़िल्म रिव्यू

रिव्यू-‘जोजी’ मज़बूत सही मक़बूल नहीं

Deepak Dua by Deepak Dua
2021/04/13
in फ़िल्म रिव्यू
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रिव्यू-‘जोजी’ मज़बूत सही मक़बूल नहीं
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 -दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

शेक्सपियर के रचे ने फिल्मकारों को हमेशा से लुभाया है। खासतौर से उनके ‘मैक्बेथ’ के प्रति तो दुनिया भर के फिल्मकारों में आसक्ति रही है। फिर चाहे वह जापान के अकीरा कुरोसावा की ‘थ्रोन ऑफ ब्लड’ (1957) हो या विशाल भारद्वाज की ‘मक़बूल’ (2004), इस नाटक का पर्दे पर किया गया चित्रण हर बार कुछ अलग, कुछ गहरा ही रहा है। लेकिन हाल ही में अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ हुई मलयालम फिल्म ‘जोजी’ में निर्देशक दिलीश पोथान हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। एक ऐसी दुनिया, कि अगर बताया न जाए तो इसमें ‘मैक्बेथ’ की कहानी को पकड़ पाना मुश्किल हो सकता है। दरअसल दिलीश ने मूल कहानी के सार को लेते हुए उसमें अपने डाले किरदारों, उन किरदारों की विशेषताओं, उनकी पृष्ठभूमि और परिस्थितियों के ज़रिए अपनी बात कही है।

केरल के किसी गांव में अपने लंबे-चौड़े बागान में बने घर में पानक्कल परिवार रहता है। पिता कुट्टप्पन का राज चलता है इस घर में। ऐसा राज जिसके सामने किसी की नहीं चलती। हर कोई न चाहते हुए भी उनसे दबता है। पिता बीमार होकर बिस्तर पकड़ता है तो घर वाले बोलने लगते हैं, चहकने लगते हैं, सपने देखने लगते हैं। कुट्टप्पन का तीसरा बेटा जोजी नाकारा है। पैसे और आज़ादी पाने के लालच में वह एक जुर्म करता है, फिर दूसरा।

अंग्रेज़ी सब-टाइटिल के साथ यह फिल्म दरअसल इंसान के उस लालची मन को दिखाती है जो कुछ पाने के लिए अपनों और रिश्तों की कद्र भी नहीं करता। एक तरफ जोजी, उसके भाई, भाभी या भतीजे का लालच उचित भी लगता है क्योंकि कुट्टप्पन उन्हें दबा कर रखता है। एक सीन में जब वह चिल्ला कर पूछता है-कौन है वहां? तो उधर से जोजी कहता भी है-आपके रियासत की प्रजा। लेकिन यदि इसी कहानी को कुट्टप्पन के नज़रिए से देखें तो यह सही भी लगती है कि वह भला क्यों अपनी मेहनत के पैसे नाकारा औलादों पर खर्च करे। ‘मैक्बेथ’ की मूल कहानी से परे यहां कई किरदार नहीं हैं और चर्च के पादरी या डॉक्टर जैसे कई दूसरे किरदार भी हैं जो इस फिल्म को समृद्ध करते हैं। लेडी मैक्बेथ यहां पत्नी नहीं बल्कि कुट्टप्पन के दूसरे बेटे की पत्नी बिन्सी है। हालांकि वह जोजी के अपराध में शामिल तो नहीं लेकिन उसकी मूक दृष्टि उसे भी कम दोषी नहीं ठहराती। फिल्म का अंत प्रभावी है और बताता है कि लालच में अंधा इंसान अंत तक उम्मीद नहीं छोड़ता।

फिल्म की एक बड़ी खासियत इसका मौजूदा समय यानी कोरोना-काल में फिल्मांकन भी है। कहानी का समय-काल मार्च-अप्रैल, 2021 का है जहां सब लोग मास्क लगाए रहते हैं। कह सकते हैं कि इससे भी कहानी बलशाली हुई है जहां मास्क (मुखौटा) इंसानी फितरत को छुपाने का हथियार बन कर सामने आया है। स्याम पुष्करण की कहानी कई जगह सपाट और रूखी भले लगती हो लेकिन दिलीश के निर्देशन में परिपक्वता है। उन्होंने अपने किरदारों से ज़्यादा संवाद न बुलवाते हुए भी उनके अंतस में सफलता से झांका है। पादरी के किरदार के ज़रिए दूसरों की सोच और कृत्यों पर कब्जा करने की कोशिश एक रूपक के तौर पर सामने आती है। वहीं बिना मछलियों वाले तालाब में कांटा डाले बैठे रहने वाले जोजी के ज़रिए वह इंसान के लालच की थाह लेते हैं। फिल्म की लोकेशन, बैकग्राउंड म्यूज़िक और फोटोग्राफी इसे गहराई देते हैं। ट्रेलर देखना हो तो यहां देखें।

जोजी के किरदार में फहाद फासिल उम्दा रहे हैं। बिन्सी बनीं उन्नीमाया प्रसाद बिना ज़्यादा बोले बेहतरीन काम करती हैं। दरअसल काम तो हर कलाकार का अच्छा ही रहा है। विशाल भारद्वाज की ‘मक़बूल’ सरीखी न होते हुए भी यह फिल्म मज़बूत है, उम्दा है और देखने लायक भी।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-07 April, 2021

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: amazon primeBhavana StudiosDileesh PothanFahadh FaasilJojiJoji malayalam reviewMacbethUnnimaya Prasadजोजी
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