-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
एक लड़की का रेप के बाद कत्ल हो जाता है। कातिल पकड़ा जा चुका है और उसे फांसी की सज़ा भी सुनाई जा चुकी है। लेकिन कोई है जो चाहता है कि शहर की मशहूर वकील इस कातिल को छुड़ाए। इसके लिए वह वकील की बेटी को किडनैप कर लेता है। कौन है यह शख्स और क्यों वह ऐसा चाहता है? क्या वह वकील ऐसा कर पाती है? कैसे? फिर क्या होता है? ऐसे ढेरों सवालों के जवाब यह फिल्म देती है मगर तसल्ली से और क्लाइमैक्स में जाकर।
एक सस्पैंस थ्रिलर फिल्म की खासियत ही यह होती है कि वह अपने सस्पैंस को जब तक बरकरार रख सके, रखे और अपने थ्रिल को जितना पैना कर सके, करे। यह फिल्म पहले मोर्चे पर तो पूरी तरह से जीत हासिल करती है और रोमांच का पैनापन भले ही तीखा न हो मगर जितना भी है, वह कम नहीं है। अब क्या होगा, कैसे होगा की उत्सुकता लगातार बनी रहे और जो जवाब सामने आएं, वे दर्शक को संतुष्ट भी करें तो समझिए, फिल्म अपने मकसद में कामयाब है।
कहानी अच्छी है और उसे सलीके से फैलाया व समेटा भी गया है। संजय गुप्ता की फिल्मों की खासियत होती है कैमरा एंगल्स और डार्क कलर्स का सही इस्तेमाल और कसी हुई एडिटिंग। और यह फिल्म यहां भी जीत हासिल करती है। सिर्फ दो घंटे की फिल्म है जो आपको हिलने तक नहीं देती। यह बात अलग है कि इसमें ऊपर से छिड़के गए वे मसाले साफ सूंघे जा सकते हैं जो दर्शकों को लुभाने के लिए डाले जाते हैं। मुमकिन है इस किस्म की सेंसिबल फिल्म में ये मसाले थोड़े अखरें लेकिन यह भी सच है कि फिल्म का फ्लेवर बनाए रखने के लिए ये मददगार ही साबित हुए हैं। मसलन इरफान को दिया गया एंग्री यंगमैन वाला लुक और फिल्मी लगने वाले डायलॉग्स जो तालियां बटोरते हैं और इरफान जब भी पर्दे पर होते हैं तो होठों पर खुद ही मुस्कान आ जाती है। ऐश्वर्या राय बच्चन की पांच बरस बाद एक पुख्ता किरदार से वापसी हुई है और उन्होंने इसे अच्छे से निभाया भी है। हां, खुद को ज़रूरत से ज्यादा फिट एंड ब्यूटीफुल दिखाने का मोह वह कम कर पातीं तो अपने किरदार में और गहराई से उतर सकती थीं। आखिरी सीन में इरफान के साथ गार्डन में टहलते हुए वह कैटवॉक करती दिखाई देती हैं।
फिल्म में गाने कम हैं और जो हैं, अच्छे हैं। कुल मिला कर अपने स्वाद को बरकरार रखते हुए यह फिल्म एक उम्दा मनोरंजन देती है जिसे देखा जा सकता है।
अपनी रेटिंग-3 स्टार
Release Date-09 October, 2015
(नोट-मेरा यह रिव्यू इस फिल्म की रिलीज़ के समय किसी पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)