-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई। एक समय की बात है। ‘बॉम्बे’ पुलिस के एक बेहद ‘ईमानदार’ पुलिस हवलदार का बेटा गरीबी और शोषण का शिकार होकर गलत रास्ते पर चल निकला। पुलिस ने उसे अपने मतलब के लिए शह दी और देखते ही देखते वह इस शहर का शहंशाह बन बैठा। लेकिन जब उस मजलूम पर जुल्म हुए तो वह बेचारा अपनी पहली मोहब्बत ‘बंबई’ को बिलखता छोड़ कर दुबई चला गया। साथ ही चले गए उसके सारे रिश्तेदार क्योंकि उन पर भी भारी अत्याचार हो रहे थे। बस, पीछे रह गई तो उसकी गरीब, मासूम बहन जिस पर शहर की पुलिस उंगलियां उठाती रही क्योंकि वह एक ‘देशद्रोही’ की बहन थी। ऐसा मोस्ट वांटेड, जिसने इस शहर की बहनों की भेजी एक चिट्ठी को दिल पर लेकर शहर में कुछ एक जगह बम फोड़ कर उनकी रक्षा की थी। लोगों के बर्ताव से तंग आकर इस अबला बहन ने भी ताकत बटोरनी शुरू की। लोगों ने उसे इज्जत बख्शी, उसने कबूल की और वह बन बैठी इस शहर की ‘आपा’। उसी महान वीरांगना की ही दर्दभरी दास्तान है इस फिल्म में।
सो, मिस्टर अपूर्व लखिया, चार घटिया और एक औसत गैंग्स्टर फिल्म ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’ बनाने के बाद, माना कि आप इस फिल्म में दाउद इब्राहीम को सिस्टम का सताया हुआ और हसीना आपा को बेचारी मजबूर औरत के तौर पर दर्शाना चाहते हैं। जरूर दर्शाइए। किसी लेखक या फिल्मकार की सोच की आलोचना नहीं की जा सकती। लेकिन जो आप कहना, दिखाना चाहते थे उसके लिए कायदे की स्क्रिप्ट तो गढ़ लेते। मतलब, आप इस कदर पैदल, सड़कछाप पटकथा लेंगे और उसे इस घटिया, कल्पनाविहीन तरीके से फिल्माएंगे…? यार, अपना नहीं तो कम से कम उस बंदे के स्टेटस का ख्याल तो रख लेते जिस पर फिल्म बना रहे थे। दाउद दुबई में ब्लैक एंड व्हाइट टी.वी. देखता है, जज हसीना से बात करते हुए बेवजह मुस्कुराता है, मतलब कुछ भी…!
चलो, वह न सही, कुछ कायदे के एक्टर ही ले लेते। श्रद्धा कपूर इस रोल में कहां से फिट लगीं आपको। हालांकि बंदी ने मेहनत खूब की। और श्रद्धा के भाई सिद्धांत कपूर को पर्दे पर आया अब तक का सबसे घटिया दाउद कह सकते हैं। फिल्म में अंडरवर्ल्ड से जुड़े ज्यादातर नाम नहीं बदले गए यानी जाहिर है कि कहीं न कहीं उन लोगों की सहमति थी इस फिल्म के साथ। हां, हसीना के खिलाफ एफ.आई.आर. करने वाले विनाद अवलानी को फिल्म अदवानी कर देती है। (यह अदवानी क्या होता है? अब भारत में अडवाणी या आडवाणी सरनेम भी अनोखा है क्या?)
इस फिल्म में कुछ नहीं है। कुछ भी नहीं। कहानी, पटकथा, निर्देशन, एक्शन, म्यूजिक, हास्य, भावनाएं, मैसेज, मनोरंजन…! सच तो यह है कि यह फिल्म आपा के नाम पर स्यापा करती नजर आती है जिसे एक शब्द में ‘क्यूटियापा’ (समझ तो गए होंगे) ही कहें तो बेहतर होगा।
अपनी रेटिंग-एक स्टार
Release Date-22 September, 2017
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)