-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
‘थायराइड जैसा लग रहा है। आपको पांच दिन का दवा देते हैं, अगर ठीक हो गया तो समझिए थायराइड ही था, नहीं तो फिर सोचेंगे।’
अमेज़न प्राइम पर आई इस वेब-सीरिज़ ‘ग्राम चिकित्सालय’ का एक झोला छाप डॉक्टर जब एक मरीज से यह कहता है तो लगता है कि इस सीरिज़ को बनाने वाले भी हमसे यही कहना चाहते हैं कि यह वाली सीरिज़ हमारी ही बनाई ‘पंचायत’ जैसी लग रही हैं। पांच एपिसोड देखिए, पसंद आई तो ठीक, नहीं तो फिर सोचेंगे।’
‘ग्राम चिकित्सालय’ का ट्रेलर देखिए तो आप एकदम से गमक उठेंगे कि वाह, यह तो ‘पंचायत’ जैसी है। वही स्वाद, वही खुशबू तो ज़ाहिर है कि मज़ा भी वैसा ही होगा। लेकिन ऐसा है नहीं। यूं इस सीरिज़ की कहानी का ढांचा ‘पंचायत’ सरीखा ही है। वहां गांव में नए पंचायत सचिव आए थे, यहां गांव के ग्राम चिकित्सालय में नए डॉक्टर साहब आए हैं। चिकित्सालय में कम्पाउंडर है, वॉर्ड बॉय है, नर्स है, स्वीपर भी है। बस नहीं है तो चिकित्सालय में जाने का रास्ता और न ही कोई मरीज़। चिकित्सालय के स्टाफ समेत पूरे गांव को भरोसा है कि यह वाला डॉक्टर भी यहां दो दिन से ज़्यादा नहीं टिकेगा। लेकिन दिल्ली से आए डॉक्टर प्रभात के इरादे कुछ और ही हैं।
(वेब-रिव्यू : किस्सों से जम गई ‘पंचायत)
इस कहानी में गांव है, वहां के अतरंगी लोग हैं, वहां की सतरंगी घटनाएं हैं और कुल मिला कर मामला ‘पंचायत’ वाला ही है। लेकिन ‘पंचायत’ से परे यहां की कहानी में ज़मीनी जुड़ाव नही है। बल्कि यह कहना ज़्यादा सही होगा कि यहां कहानी में एक सीधी सड़क ही नहीं है जो दर्शकों को एक मकाम से दूसरे मकाम तक ले जाए। हालांकि ‘पंचायत’ के पहले सीज़न में भी कहानी नहीं किस्से थे मगर वहां एक पगडंडी ज़रूर थी जो आगे के सीज़न में पक्की सड़क में बदल गई थी। मुमकिन है कि ‘ग्राम चिकित्सालय’ के अगले सीज़न में भी ऐसा कुछ हो लेकिन इस पहले सीज़न के पांच एपिसोड तो बेचारे पानी मांगते रह गए। इसमें दिखाई गई घटनाएं बिखरी हुई हैं और कहानी अचानक से पटरी बदल कर कहीं भी निकल लेती है जिससे तारतम्य टूटता है और धागे छूटने लगते हैं।
बड़ी दिक्कत इसकी स्क्रिप्ट के साथ है। ऐसा बहुत कुछ है जो पहली नज़र में खटकता है। डॉक्टर के आने के पहले दिन चिकित्सालय भुतहा है जो अगली सुबह ही चमक उठता है। चिकित्सालय के बाहर लिखा समय ‘सुबह 8 से शाम 7 बजे तक’ व्यावहारिक ही नहीं है जबकि डॉक्टर खुद कहता है कि मैं यहां 7 से 5 बैठता हूं और यह समय भी गलत है। डॉक्टर भी कैसा जो खुद को डॉक्टर नहीं कहता और गांव भी कैसा जहां पी.एच.सी. (प्राइमरी हैल्थ सैंटर) व एम.ओ. (मेडिकल ऑफिसर) जैसे शब्द हर कोई आराम से समझ लेता है। हज़ारों की दवाई बिक गई, लाखों की वैक्सीन खो गई, कोई एक्शन नहीं। ऐसा लगता है कि लिखने वालों ने ठीक से रिसर्च नहीं किया है। गांव में नया डॉक्टर आया लेकिन न तो उससे गांव का कोई ज़िम्मेदार आदमी मिलने आया न किसी ने उसका स्वागत किया, उलटे सब उसे दुश्मन मान कर उस झोला छाप के यहां लाइन लगाए बैठे हैं जो तगड़ी फीस लेता है।
राहुल पांडेय का निर्देशन हालांकि सधा हुआ है। उन्हें जैसी स्क्रिप्ट मिली, उस पर उन्होंने बढ़िया सीन बनाए हैं। इस सीरिज़ के ट्रेलर को देख कर जो आनंद आता है वह आनंद इस सीरिज़ में टुकड़ों-टुकड़ों में और दूर-दूर बिखरा हुआ है। सीरिज़ कई जगहों पर खिंची हुई लगती है और बार-बार बोर करती है। कॉमेडी, इमोशन्स, तनाव, जैसे रस कहीं-कहीं और हल्के-हल्के ही छलके हैं। कई संवाद अच्छे हैं, असर छोड़ते हैं। संवादों के लहज़े पर गहराई से काम किया गया है। कुछ किरदार बेवजह हैं और कुछ सही से खड़े ही नहीं किए गए। सीरिज़ का केंद्रीय पात्र डॉक्टर प्रभात ही सबसे कमज़ोर है। दिल्ली से आए जिस गोल्ड मैडलिस्ट डॉक्टर को चतुर, सयाना (भले ही फ्रैश है, सीधा है, शरीफ है) होना चाहिए था, वह लल्लू-सा लगता है। इस किरदार के लिए अमोल पराशर खराब चॉयस लगे। उनमें किरदार में दम नहीं दिखा और न ही उनके काम में। हां, बाकी के लगभग सभी कलाकारों ने बेमिसाल काम किया। विनय पाठक, आनंदेश्वर द्विवेदी, आकाश मखीजा, आकांक्षा रंजन कपूर, गरिमा विक्रांत सिंह, कार्तिकेय राज व अन्य सभी खूब जंचे। गीत-संगीत कहीं ज़रूरत के मुताबिक था तो कहीं गैर-ज़रूरी, लेकिन गाने अच्छे लिखे व बनाए-गाए गए। गीतकार सागर पर्दे पर भी दिखे।
झारखंड की लोकेशन विश्वसनीय लगीं। हालांकि जो झारखंड सरकार को यह पता होना चाहिए कि यह सीरिज़ उनके राज्य की स्वास्थ्य व शिक्षा व्यवस्था को बेहद लचर बता-दिखा रही है।
ज़मीन से जुड़ी कहानियों को कहने के लिए जिस तरह से ज़मीन की गुड़ाई, बुवाई और निराई की जाती है, उसकी कमी का शिकार होकर यह एक साधारण-सी सीरिज़ बन कर रह गई है। और तो और इसका नाम ‘ग्राम चिकित्सालय’ भी बनावटी लगता है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-9 May, 2025 on Amazon Prime
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)