-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
सरकार ने ऐलान किया है कि 80 साल से ऊपर के हर बुजुर्ग को हर महीने एक लाख रुपए की पेंशन मिलेगी। अब अचानक से सब लोगों के भीतर वृद्धों के प्रति प्रेम जाग गया है। अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ आए लोग अब विनती करके उन्हें वापस ला रहे हैं। जो कमल और गुलाब अपनी मां को पास नहीं रखना चाहते थे, अब उन्हें अपने-अपने पास रखने के लिए लड़ रहे हैं। दोनों बहुओं में तकरार हो रही है कि सास की ज़्यादा सेवा कौन करेगा। लेकिन सासू बा भी गजब हैं। इस नई पारी के खुल कर मज़े ले रही हैं। और तभी आता है एक ट्विस्ट…!
मनोरंजन के रैपर में लपेट कर मैसेज देने वाले लेखक-निर्देशक मनीष सैनी अपनी दो गुजराती फिल्मों ‘ढ’ और ‘गांधी एंड कंपनी’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके हैं। अब अपनी इस अगली गुजराती फिल्म ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ में भी वह तारीफें पाने लायक काम करते दिखे हैं।
अपने फ्लेवर में चुलबुली-सी लगती यह फिल्म असल में अपने घर के बूढ़ों के प्रति अधिक संवेदनशील बनने की बात कहती है। लेकिन इसे कहने के लिए मनीष ने उपदेशात्मक तरीका अपनाने की बजाय हास्य और व्यंग्य का रास्ता पकड़ा है। यही कारण है कि इस फिल्म के शुरू होते ही आपके होठों पर एक हल्की-सी मुस्कान आ जाती है जो पूरी फिल्म में बनी रहती है। बीच-बीच में कुछ एक ठहाके आकर मज़ा बढ़ाते हैं तो अंत के करीब पहुंच कर कब यह मुस्कान आपको गंभीर कर देती है, कब आपकी आंखों में एक हल्की-सी नमी आ जाती है, पता ही नहीं चलता। कई संवाद चुटीले हैं तो कुछ बेहद असरदार भी। वृद्धाश्रम में रह रही एक अकेली वृद्धा की मृत्यु पर वहां के केयरटेकर का यह कहना-‘मरती तो यह रोज़ थी, आज इसे मुक्ति मिली है’ भावुक करता है। सरकारी मुफ्त योजनाओं के प्रति लोगों की आसक्ति और सरकार की संवेदनहीनता पर भी यह फिल्म बात करती है।
मनीष सैनी का निर्देशन हमेशा की तरह प्रभावी रहा है। सिनेमाई शिल्प पर उनकी पकड़ लगातार मजबूत होती जा रही है। अपने कलाकारों से भी उन्होंने बढ़िया काम लिया है। मल्हार, टिक्कू तल्सानिया, व्योमा नंदी, वंदना पाठक, शेखर शुक्ला, उत्कर्ष मजूमदार, आर्यन प्रजापति, नीला मुल्हेरकर व एक सीन में आए खुद मनीष सैनी तक ने उम्दा काम किया है। भार्गव पुरोहित के गीत और अजय जयंति व पार्थ पारेख का संगीत कहानी में मिश्री-सा घुला लगता है।
फिल्म ‘जय माता जी-लैट्स रॉक’ का ट्रेलर इस लिंक पर क्लिक कर के देखिए…
लगभग दो घंटे की यह गुजराती फिल्म मज़ा, मस्ती और एक सार्थक मैसेज तो देती है लेकिन कहीं-कहीं ऐसा लगता है कि कुछ दृश्यों को थोड़ा और कसा जाता तो इसका मज़ा बढ़ सकता था, कुछ घटनाओं को और विस्तार दिया जाता तो इसकी मस्ती में इजाफा हो सकता था व कुछ और मारक संवाद होते तो इसका मैसेज अधिक गाढ़ा हो सकता था। बावजूद इसके यह फिल्म दर्शकों को मनोरंजन की खुराक के संग एक उम्दा संदेश देने के अपने उद्देश्य में सफल रही है।
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Release Date-9 May, 2025 in theaters
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)