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रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/05/01
in CineYatra, फिल्म/वेब रिव्यू
2
रिव्यू-अरमानों पर पड़ी ‘रेड 2’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

कोई फिल्म आकर दिल-दिमाग में जगह बना ले तो मन करता है कि इस जैसी और कहानियां भी आएं ताकि सिनेमा दर्शकों को न सिर्फ मनोरंजन देता रहे बल्कि उन्हें मसालों में लिपटे पलायनवादी सिनेमा से परे ऐसी कहानियां भी परोसे जो हमें खुद से मिलवाती हैं। सात साल पहले जब राजकुमार गुप्ता के निर्देशन में अजय देवगन वाली ‘रेड’ आई थी तो यही उम्मीद जगी थी कि अपने देश में तो इन्कम टैक्स वालों के हैरतअंगेज़ छापों की ढेरों मिसालें हैं सो बहुत जल्द किसी न किसी रेड की कहानी पर्दे पर आ ही जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब सात साल बाद ‘रेड 2’ आई तो मन में अरमान जगे कि ज़रूर इन लोगों के हाथ फिर कोई ज़बर्दस्त कहानी लगी होगी वरना ये लोग इतनी देर नहीं लगाते। मगर क्या ‘रेड 2’ उन अरमानों को पूरा कर पाती है? आइए जानते हैं कि क्या इस फिल्म में वह बात है जो ‘रेड’ में थी, जिसे देख कर मैंने लिखा था कि ऐसी ‘रेड’ ज़रूर पड़े, बार-बार पड़े।

(रिव्यू-ऐसी ‘रेड’ ज़रूर पड़े, बार-बार पड़े)

इन्कम टैक्स कमिश्नर अमय पटनायक को आदत हो चुकी है ईमानदारी से काम करने के बदले ट्रांस्फर झेलने की। वह जहां जाता है वहां किसी न किसी बड़े टैक्स चोर की जड़ें खोद डालता है। लेकिन इस बार हुए उसके 74वें ट्रांस्फर की वजह कुछ और है। और नई जगह पर अमय का सामना एक ऐसे नेता से है जो बेहद क्लीन है, लोगों के दिलों पर राज करता है, एक पैसे का भी हेरफेर नहीं करता और जिसके दरवाज़े व खज़ाने आम लोगों के लिए हमेशा खुले रहते हैं। लेकिन अमय उसके लिए ऐसा चक्रव्यूह रचता है कि वह बेचारा अपने-आप उसमें फंसता चला जाता है।

एक तरफ ईमानदार और दबंग सरकारी अफसर और दूसरी तरफ भ्रष्ट सांसद के घर की दीवारों, छतों से निकलते करोड़ों रुपए व सोने के भंडार को देख कर हम लोग पिछली बार बहुत आनंदित हुए थे। वह कहानी असल में थी भी दमदार, जिसने पहले ही सीन से ज़रूरी तनाव रचते हुए हमें अपने आगोश में ले लिया था। ‘फिल्मीपना’ उसमें भी था लेकिन आटे में नमक बराबर। कहानी का मिज़ाज इस बार भी वही है लेकिन इस बार आटे में नमक की मात्रा इतनी ज़्यादा है कि उसका खारापन साफ महसूस होता है। फिल्मी फॉर्मूलों की इस बार भरमार है जिसके चलते कहानी का प्रवाह सहज नहीं लगता। एक तरफ जहां पटकथा में उलझाव बहुत सारे हैं वहीं संयोग भी ढेरों डाले गए हैं। चलिए, यह सब भी बर्दाश्त कर लिया जाए यदि ईमानदार नायक और भ्रष्ट खलनायक की आमने-सामने की टक्कर हो, चूहे-बिल्ली का खेल हो, दमदार संवादों की बौछार हो और पल-पल चौंकाते दृश्यों की भरमार हो। मगर यह फिल्म इन मोर्चों पर कमज़ोर रहते हुए दर्शकों को उलझाती है। यह उलझन फिल्म देखते समय कुछ हद तक जंचती भी है लेकिन बाद में जब आप इसके बारे में सोचते हैं तो मामला पिलपिला ज़्यादा महसूस होता है।

राजकुमार गुप्ता ने फिल्म को ‘भरा-पूरा’ बनाने में काफी ज़ोर लगाया है। लेकिन अगर वह ‘ज़ोर’ सौरभ शुक्ला जैसे अभिनेता को जबरन ठूंसा हुआ दिखाए, गोविंद नामदेव जैसे अभिनेता को दो हल्के दृश्यों तक सीमित कर दे, जबरन घुसेड़े गए आइटम नंबर में तमन्ना भाटिया का देहदर्शन करवाए और अंत में हनी सिंह व जैक्लिन फर्नांडीज़ का बेमतलब वाला गाना दिखा कर ललचाए तो समझिए कि इस बार केक कच्चा बना है इसीलिए ऊपर ज़्यादा सजावट की जा रही है।

अजय देवगन ऐसे किरदारों में प्रभावित करते हैं, इस बार भी किया है। लेकिन उनके भीतर इस बार न तो ‘रेड’ वाली आग दिखी है न ही ‘दृश्यम’ वाली गहराई। रितेश देशमुख दमदार रहे हैं। अजय की पत्नी के किरदार में वाणी कपूर ने फिल्म में हीरोइन रखे जाने की रस्म भर निभाई है। सौरभ शुक्ला, बृजेंद्र काला, यशपाल शर्मा, गोविंद नामदेव, रजत कपूर, सुप्रिया पाठक जैसे सधे हुए कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों के साथ भरपूर न्याय किया। कमाल का काम तो किया अमित स्याल ने। लोकेशन प्रभावी चुनी गईं लेकिन इस बार प्रोडक्शन वालों का रिसर्च कमज़ोर रहा। गाड़ियों की नंबर-प्लेटों के रंग गलत दिखाए गए, 1989-90 में सार्वजनिक टेलीफोन पर कॉल की दर एक रुपए प्रति मिनट नहीं बल्कि तीन मिनट हुआ करती थी। सांसद साहब उस ज़माने में अपनी कार में बैठे कौन-सा फोन इस्तेमाल कर रहे थे, यह भी डायरेक्टर साहब खुल कर नहीं बता पाए।

पिछली वाली ‘रेड’ अपने सशक्त लेखन के चलते दमदार बनी थी जिसमें प्रेमचंद की कहानी ‘नमक का दारोगा’ तक का जिक्र था लेकिन ‘रेड 2’ में कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा वाले स्टाइल में जो कुनबा जोड़ा गया है वह आंखों और दिमाग को कुछ पल के लिए चकाचौंध भले ही कर ले लेकिन अंदर से उतना सशक्त है नहीं। फिल्मी फॉर्मूलों का घोल बना कर आप दर्शकों को समय बिताने का ज़रिया तो दे देंगे, समय की सीमाओं से परे जाकर दिलों में कब्जा करने वाला सिनेमा नहीं दे पाएंगे, यह तय है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-1 May, 2025 in theaters

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

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Comments 2

  1. Bharat Kumar says:
    2 weeks ago

    इस बार ऐसा लग रहा है कि ज्यादा से ज्यादा पैसे बटोरने की कोशिश करी गई है😲

    Reply
  2. NAFEESH AHMED says:
    2 weeks ago

    एकदम झक्कास… सुपर्ब

    Reply

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