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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ईमानदारी की कीमत चुकाती ‘कॉस्ताव’

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/04/30
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-ईमानदारी की कीमत चुकाती ‘कॉस्ताव’
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

गोआ कस्टम में एक अफसर हुआ करते थे-कॉस्ताव फर्नांडीज़। बेहद बहादुर, साहसी और ईमानदार। लेकिन ये तीनों गुण इंसान से अपनी कीमत मांगते हैं। कॉस्ताव को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी। एक रेड के दौरान उनके हाथों से एक आदमी मारा गया और उन पर लग गया उसके कत्ल का इल्ज़ाम। क्या कॉस्ताव इस आरोप से बरी हो पाए? क्या कीमत चुकानी पड़ी उन्हें अपनी ईमानदारी की? यह फिल्म (Costao) उन्हीं कॉस्ताव फर्नांडीज़ की कहानी दिखाती है।

एक गुमनाम-से कस्टम अफसर की कहानी में ऐसा क्या हो सकता है कि कोई उस पर फिल्म बनाए? ज़ाहिर है कि किसी भी फिल्म की सबसे ज़रूरी चीज़ होती है उससे मिलने वाला मनोरंजन और मैसेज, जिसे नाटकीय घटनाओं के ज़रिए दर्शकों तक पहुंचाया जाता है। इस फिल्म में भी ये कोशिशें हुई हैं। लेखक भावेश मंडालिया और मेघना श्रीवास्तव ने कॉस्ताव (Costao) की ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव दिखाते हुए इस बात के भरसक प्रयत्न किए है कि वे उन्हें रोचक बना सकें और दर्शकों को बांध सकें। लेकिन वे इसमें पूरी तरह से कामयाब नहीं हो पाए हैं। इस किस्म की कहानी जिसमें ज़बर्दस्त थ्रिल हो सकता है, ईमानदार नायक की भ्रष्ट लोगों के साथ तगड़ी भिड़ंत हो सकती है, देश और फर्ज़ के प्रति उसके जुड़ाव से भावनाओं का बहाव हो सकता है, वह अगर काफी हद तक ‘रूखी’ और ‘ठंडी’ निकले तो कसूर लेखकों का ही माना जाएगा। बायोपिक बनाते समय तथ्यात्मक तौर पर ईमानदार होना ठीक है लेकिन सिनेमा की भाषा, शिल्प और शैली को समझते हुए फिल्म वालों को नाटकीय होना पड़ेगा, फिल्म बना रहे हैं तो ड्रामा डालना पड़ेगा, नहीं तो नतीजा वही होगा जो इस फिल्म (Costao) का हुआ है-रूखा, ठंडा, हल्का।

ज़ी-5 पर आई इस फिल्म (Costao) में सेजल शाह का निर्देशन साधारण रहा है। कॉस्ताव की कहानी को उनकी बेटी के नज़रिए से दिखाने-सुनाने की क्या ज़रूरत थी? फिल्म में ऐसा एक भी सीन नहीं दिखा जो निर्देशक के लिए वाहवाही करवा सके। उलटे ऐसे कई सीन मिल गए जो उनकी कल्पनाशीलता की कमज़ोरी दर्शा गए। कलाकारों का धीमे-धीमे और शब्दों को चबा कर बोलना दर्शकों के कानों पर ज़ोर डालेगा, यह भी क्यों नहीं सोचा गया?

नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी प्रभावी अभिनेता हैं, अपने किरदारों में असर पैदा करना उन्हें आता है। लेकिन इस फिल्म (Costao) में उन्हें देख कर लगा कि वह खुद को दोहरा रहे हैं। अभिनय में एकरसता आ जाए तो अभिनेता सिमटने लगता है। किशोर भी ठंडे-ठंडे से ही लगे। प्रिया बापट का काम अच्छा रहा। बाकी लोग ठीक-ठाक काम कर गए। गाने साधारण रहे और आकर कहानी में खलल ही डालते रहे। नब्बे के दशक का माहौल अच्छे से रचा गया।

समाज के नायकों पर फिल्में आनी चाहिएं ताकि लोग उन्हें देखें और समझ सकें कि होते हैं कुछ सरफिरे लोग जिनके लिए देश पहले होता है, बाकी सब बाद में। लेकिन ये फिल्में इस अंदाज़ में नहीं आनी चाहिएं कि उनकी कहानी का सार तत्व ही खत्म कर दें। दर्शक को जब दो घंटे की फिल्म भी भारी लगने लगे तो समझिए कि बनाने वालों ने मेहनत भले की हो, जान नहीं झोंकी है। और हां, जिस फिल्म को लिखने-बनाने वालों को उसके लिए एक ठीक-सा शीर्षक तक न सूझा हो तो यह भी समझ जाइए कि उनके भीतर झोंकने लायक जान थी भी नहीं।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-1 May, 2025 on ZEE5

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

Tags: bhavesh mandaliacostaocostao fernandescostao moviecostao movie reviewcostao reviewhussain dalalkishoremeghna srivastavaNawazuddin Siddiquipriya bapatsejal shah
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