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Home फ़िल्म रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-सपनों के पीछे दौड़ती ‘फरारी की सवारी’

Deepak Dua by Deepak Dua
2012/06/15
in फ़िल्म रिव्यू
0
ओल्ड रिव्यू-सपनों के पीछे दौड़ती ‘फरारी की सवारी’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

बच्चे सपने देखें तो बड़ों का फर्ज हो जाता है कि वे उनके सपनों मे यकीन करें और उन्हें सच करने में मदद भी। यह फिल्म भी कुछ ऐसी ही कहानी दिखाती है। यह कहानी है एक ऐसे ईमानदार पिता की जिसका बेटा बहुत अच्छा क्रिकेट खेलता है और पिता बस किसी तरह से उसके खर्चे उठाता है। बेटे का सलैक्शन लंदन के एक कैंप में हो जाता है जिसके लिए डेढ़ लाख रुपए की फीस भरनी है। हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि पिता को न चाहते हुए भी सचिन तेंदुलकर की फरारी कार लेकर एक शादी में जाना पड़ता है ताकि उसके बदले में उसे डेढ़ लाख रुपए मिल सकें।

फिल्म की कहानी अच्छी है और इसकी स्क्रिप्ट की खासियत यह है कि इसमें कॉमेडी और ड्रामा दोनों हैं और कुल मिला कर संतुलित मात्रा में हैं। फिल्म यह संदेश देती है कि बड़े सपने देखने और उन्हें सच करने की कोशिशें नहीं छोड़नी चाहिएं। फिल्म यह भी कहती है कि ईमानदारी और टेलेंट से भी मंज़िलें हासिल की जा सकती हैं। लेकिन यह फिल्म मध्यवर्गीय सपनों का मज़ाक भी उड़ाती नज़र आती है। तार्किक रूप से तो यही सबसे बड़ी गलती दिखाई गई है कि आज की तारीख में किसी सरकारी दफ्तर का हैड क्लर्क अपनी तनख्वाह से सिर्फ तीन लोगों का खर्चा भी न उठा पा रहा हो और महज 2800 का बैट खरीदने के लिए उसे घर के तमाम कोने खंगालने पड़ते हों। क्या सिर्फ इसलिए कि वह ईमानदार है, सच्चा है और नियम-कानून मानता है? फिल्म के साथ यह दिक्कत भी है कि यह कई जगह काफी स्लो है और नेता के बेटे की शादी से जुड़ी कई सारी चीज़ें जबरन ठूंसी गई लगती हैं।

एक्टिंग सभी कलाकारों की बहुत अच्छी है। शरमन जोशी पारसी पिता के रोल में जंचे हैं। बाल-कलाकार ऋत्विक सहोर का काम यकीन के काबिल है। बोमन ईरानी, परेश रावल व अन्य सभी भी अच्छे रहे। फिल्म का म्यूज़िक हालांकि ज़्यादा बढ़िया नहीं है। विद्या बालन वाला आइटम नंबर ज़रूर बढ़िया है। राजेश मापुस्कर के निर्देशन में कोई महानता भले ही न हो, कहानी कहने का हुनर मालूम है उन्हें। फिल्म के संवादों में याद रखने लायक कुछ खास नहीं है।

एक बात और, यह फिल्म बच्चों के लिए नहीं बल्कि उनके बारे में है। सो, मुमकिन है कि छोटी उम्र के बच्चे इसे ज़्यादा एन्जॉय न कर पाएं लेकिन उन पेरेंट्स को यह देखनी चाहिए जो अपने बच्चों और उनके सपनों में यकीन रखते हैं।

अपनी रेटिंग-ढाई स्टार

(नोट-इस फिल्म की रिलीज़ के समय मेरा यह रिव्यू किसी अन्य पोर्टल पर छपा था)

Release Date-15 June, 2012

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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