-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
2004 का बगदाद। इराक में अमेरिकी-ब्रिटिश सेना को घुसे हुए साल भर हो चुका है। राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पकड़े जाने के बावजूद ये लोग यहां जमे हुए हैं। यहां रह रहे ज़्यादातर भारतीय अपने देश को लौट चुके हैं मगर नेपाली पासपोर्ट पर यहां पहुंचे मदन तिवारी का परिवार यहीं फंसा हुआ है। बम धमाके, गोलीबारी इनके लिए आम है। मदन के बेटे चिंटू का आज बर्थडे है। सारी तैयारियां हो रही हैं कि तभी हो-हल्ला शुरू हो जाता है। एक बम फटता है और तफ्तीश के लिए दो फौजी इनके यहां घुस आते हैं।
अपने नाम से बच्चों की फिल्म होने का अहसास दे रही यह एक बहुत ही प्यारी, सादी और सरल फिल्म है। महज एक दिन के कुछ घंटों और एक घर के अंदर की इस कहानी में सनसनी, एक्शन, रोमांच और कड़वे राजनीतिक कमेंट्स की भरपूर गुंजाइश होने के बावजूद इसे लिखने वाले देवांशु और सत्यांशु सिंह ने इन चीज़ों से परहेज किया है। फिर भी इसमें अंडरकरंट पॉलिटिकल टच है। दो फौजियों का इनके घर में जबरन घुसना असल में अमेरिका की उस दादागिरी को दिखाता है जिसके चलते वह खुद ही दुनिया भर का ठेका उठा कर चौधरी बना फिरता है। उसे सबके घरों (देशों) के हालात ठीक करने हैं, भले ही कई बेकसूरों की जान चली जाए।
इस फिल्म की खासियत इसकी सादगी ही है। जन्मदिन मनाए जाने की तैयारियां, उन तैयारियों पर बार-बार फिरते पानी के बीच भी इनका अपनी हिम्मत बनाए रखना और हर पल बदलते हालात में खुद को आसानी से ढाल लेना असल में उस इंसानी जीवट को दिखाता है जो संकट के हर काल में इंसानी नस्ल के अंदर खुद-ब-खुद उभर आता है। कहानी का हर किरदार माकूल है। इन किरदारों की बॉडी लेंग्युएज ज़बर्दस्त है। और इन्हें दिए गए संवाद तो इस कदर विश्वसनीय हैं इन सब से मोहब्बत होने लगती है। इसके पीछे उन डायलॉग-कोच का भी बड़ा हाथ है जिन्होंने हर कलाकार को उसके संवाद सही से बोलने की ट्रेनिंग दी।
विनय पाठक इस किस्म के सीधे-सरल किरदारों में जान फूंकना अच्छे से जानते हैं। ‘भेजा फ्राई’ और ‘चलो दिल्ली’ की ही तरह वह यहां भी बाजी मारते हैं। तिलोत्तमा शोम और सीमा पाहवा भी भरपूर सहयोग देती हैं। छह बरस के चिंटू के किरदार में वेदांत छिब्बर और उसकी बड़ी बहन बनी बिशा चतुर्वेदी दोनों ही बेहद प्यारे लगे हैं। एक ही घर की लोकेशन होने के बावजूद इराक का माहौल विश्वसनीय ढंग से रचा गया है।
ज़ी-5 पर आई इस फिल्म की महज सवा घंटे की लंबाई इसे और सशक्त बनाती है। निर्देशक देवांशु और सत्यांशु की इस पहली फिल्म में कुछ भी अखरने लायक नहीं है। फिल्म बताती है कि दिल में सच्चाई और मोहब्बत हो तो आप किसी को भी जीत सकते हैं। इसे बच्चों की फिल्म समझ कर मिस मत कीजिएगा। ‘ओ.टी.टी. पर कुछ ढंग का नहीं आता’ वाली आपकी शिकायत को दूर करती है यह फिल्म।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-05 June, 2020
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)