-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
बीती सदी की ब्रिटिश उपन्यास लेखिका अगाथा क्रिस्टी के जासूसी उपन्यासों से परिचित लोग जानते हैं कि किस तरह से वह अपनी कहानियों में रहस्य का ऐसा जाल बुना करती थीं कि पढ़ने वाला उसमें फंसता-धंसता चला जाता था। अगाथा की कहानियों पर भारत समेत दुनिया भर में फिल्में बनी हैं। सोनी लिव पर आई विशाल भारद्वाज की यह नई वेब सीरिज़ ‘चार्ली चोपड़ा एंड द मिस्ट्री ऑफ सोलांग वैली’ भी अगाथा के एक उपन्यास ‘द सिट्टाफोर्ड मिस्ट्री’ पर आधारित है।
एक बर्फीली रात में पुराने मनाली के एक बंगले में ब्रिगेडियर रावत का कत्ल हो जाता है। थोड़ी ही देर पहले ब्रिगेडियर का भानजा जिम्मी नौटियाल वहां से निकला है। पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है तो जिम्मी की पंजाबी मंगेतर चार्ली चोपड़ा आ धमकती है। खुद को जासूस मानने वाली जिम्मी तहकीकात शुरू करती है तो शक के दायरे में वे तमाम लोग आते हैं जो उस रात वहां से कुछ दूर सोलांग वैली में एक जगह इक्ट्ठे थे और किसी न किसी तरह न सिर्फ ब्रिगेडियर से जुड़े हुए हैं बल्कि सभी को ब्रिगेडियर की मौत से फायदा ही होने वाला है। ज़ाहिर है कि यह गुत्थी इतनी आसानी से नहीं सुलझेगी।
पुराने जासूसी लेखकों ने मर्डर-मिस्ट्री का यह एक फॉर्मूला-सा बना दिया है जिसमें किसी सुदूर, वीरान जगह पर कुछ लोगों के ग्रुप में एक कत्ल हो गया है और कातिल इन्हीं के बीच है। एक-एक कर के शक की सुई हर किसी की तरफ जाती है और अंत में कातिल वह निकलता है जिस पर सबसे कम शक होता है। याद कीजिए 1965 में आई मनोज कुमार वाली फिल्म ‘गुमनाम’ की कहानी भी ऐसी ही थी जिसमें एक वीरान टापू पर कुछ लोगों के बीच एक कत्ल होता है। वह फिल्म भी अगाथा क्रिस्टी के एक उपन्यास पर बनी थी। अब इस सीरिज़ में भी वैसी ही कहानी है जिसमें रोचकता का ज़िम्मा किरदारों ने उठाया है।
विशाल भारद्वाज को विदेशी कहानियों को देसी परिवेश में ढाल कर कहने का शौक है या उन्हें सिर्फ विदेशी कहानियां ही पसंद हैं यह तो वही जानें क्योंकि अगर जासूसी उपन्यास ही उठाने थे तो अपने यहां के सुरेंद्र मोहन पाठक, वेद प्रकाश शर्मा या वेद प्रकाश कांबोज के उपन्यास भी कोई कम नहीं हैं। खैर, इस कहानी को उन्होंने बड़ी ही खूबी से हिमाचल की पृष्ठभूमि में तब्दील किया है और उसी के मुताबिक किरदार भी गढ़े हैं व उनकी बैक-स्टोरी भी। इन किरदारों के बहाने से इंसानी फितरतों में भी बखूबी झांका गया है। यह अलग बात है कि रावत, नेगी, नौटियाल, बिष्ट जैसे सरनेम रखते समय लेखक लोग यह भूल गए कि ये सरनेम मनाली में नहीं बल्कि उत्तराखंड के गढ़वाल में होते हैं। दूसरी बात यह कि ज़्यादातर किरदारों की बैक-स्टोरी में गहराई नहीं है, है भी तो वह तब तक सामने नहीं आती जब तक कि वह खुद से उसे नहीं बताता। नसीरुद्दीन शाह, नीना गुप्ता, रत्ना पाठक शाह, विवान शाह, पाओली दाम, लारा दत्ता, ललित परिमू, गुलशन ग्रोवर, प्रियांशु पैन्यूली, चंदन रॉय सान्याल, ईमाद शाह आदि की मौजूदगी हो और किसी के हिस्से में खुल कर कुछ करने को न आए तो इसे लेखकों की ही नाकामी माना जाएगा। या तो नामी लोग लेने नहीं थे, लिए तो उन्हें खुल कर खेलने का मैदान तो देते।
इस किस्म की कहानियां अक्सर तनाव रचने लगती हैं लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ है। चार्ली व कुछ अन्य किरदारों के ज़रिए माहौल को हल्का-फुल्का बनाए रख कर मनोरंजन परोसने की कोशिश अच्छी है। खासतौर से चार्ली का अचानक से कैमरे (या दर्शकों) से बात करने लगना सुहाता है और हैरान भी करता है। लेकिन चार्ली का कई जगह गूढ़ पंजाबी बोलना मुमकिन है गैर-पंजाबियों को समझ न आए। हालांकि इससे संवादों में रंगत ही आई है। वैसे संवाद हैं भी जानदार। अंत तक सस्पैंस को बनाए रखना भी लुभाता है।
बर्फीली लोकेशन और कैमरा आंखों को भाते हैं तो विशाल का बैकग्राउंड म्यूज़िक कानों को। कानों के लिए तो दो शानदार गज़लें भी हैं। एक्टिंग लगभग सभी की बढ़िया है लेकिन चार्ली बनीं वामिका गब्बी ने तो कमाल का काम किया है। अधिकांश समय स्क्रीन अंधेरी, गहरे रंग वाली न रहती तो यह सीरिज़ और असरादार हो सकती थी। बहरहाल, इस कहानी में बहुत अधिक ऊंची चोटियां या गहरी घाटियां भले ही न हों लेकिन बर्फीले पहाड़ों से फिसलते हुए स्कीईंग करने में जो मज़ा आता है वही मज़ा इसे देखते हुए मिलता है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-27 September, 2023 on SonyLiv.
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
आपने मेरे पसंदीदा लेखक वेद प्रकाश शर्मा का नाम लिया मुझे बहुत अच्छा लगा। उनकी कहानियों में जो रोमांच था वो वाकई कमाल का था। बढ़िया लिखा आपने दीपक भाई हमेशा की तरह सही विश्लेषण।👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
धन्यवाद
A full & Detailed review in context to all respect. Appreciable…
Thanks