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Home फ़िल्म रिव्यू

रिव्यू-‘बेफिक्रे’ लव-स्टोरी नहीं लस्ट-स्टोरी है

Deepak Dua by Deepak Dua
2016/12/09
in फ़िल्म रिव्यू
0
रिव्यू-‘बेफिक्रे’ लव-स्टोरी नहीं लस्ट-स्टोरी है
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-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

एक मस्तमौला, बेफिक्रा, खिलंदड़, लफंडर-सा लड़का।

एक बोल्ड, बिंदास, आजाद-ख्याल लड़की।

दोनों का ही प्यार-इश्क-मोहब्बत-लव नाम की फालतू-सी चीज में कोई यकीन नहीं।

हां, काम-वासना-लस्ट-हवस के दोनों ही पुजारी। दोनों मिले। मिले तो जुड़े। जुड़े तो साथ रहने लगे। साथ रहे तो झगड़े हुए। झगड़े हुए तो अलग हो गए। अलग हुए तो कुछ समय बाद फिर दोस्त बन गए। दोस्त बने तो करीब आने लगे। करीब आने लगे कि तभी इन दोनों के बीच कोई तीसरा-चौथा आ गया। और तब जाकर इन्हें लगा कि यार, असल में तो इन दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो गया था। तो अब…?

अजी वही, जा सिमरन जा-जी ले अपनी जिंदगी टाइप का द एंड, और क्या…?

इस फिल्म के नायक-नायिका फिल्म में बार-बार एक-दूसरे को कोई बहुत मुश्किल काम करने की चुनौती देते हैं-‘आई डेयर यू’ कह कर। बतौर निर्देशक आदित्य चोपड़ा ने भी यह फिल्म शुरू करने से पहले खुद को कुछ ऐसा ही कहा होगा। वरना ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘मोहब्बतें’ और ‘रब ने बना दी जोड़ी’ जैसी लव-स्टोरी बनाने वाला शख्स यह ‘लस्ट-स्टोरी’ ने बनाता। चलिए, यह भी मान लिया कि चाशनी में पगी रोमांटिक और पारिवारिक फिल्में बनाने वाला बंदा आखिर कुछ और भी तो बना सकता है। भले ही इसके लिए उसे अपनी और अपने बैनर की साख का कचरा क्यों न करना पड़े। लेकिन भैये, पर्दे पर जो परोस रहे हो, उस कचरे का क्या?

फिल्म का नायक दिल्ली के करोल बाग से फ्रांस के पेरिस शहर में पहुंचा है एक क्लब में स्टैंडअप कॉमेडी करने। (हालांकि उसकी इस कॉमेडी से सिर्फ उस क्लब में बैठे दो दर्जन लोग ही हंस रहे हैं, इधर थिएटर में बैठे लोग नहीं) लेकिन उसकी हरकतें ऐसी हैं जैसे वह पेरिस की हर लड़की को अपने बिस्तर पर लाने के मिशन पर निकला हो। कभी खुद को हवस का पुजारी कहने वाला शख्स कैसे और कब प्यार के प्रति गंभीर हो जाता है, फिल्म सिर्फ बताती है, दिखाती या महसूस नहीं करवाती।

फिल्म यह कहना चाहती है कि लव, लस्ट से ऊपर होता है। इंसान संबंध तो किसी के साथ भी बना ले लेकिन साथ जिंदगी गुजारने के लिए उनके बीच समझदारी होना जरूरी है। लेकिन यह बात समझाने के लिए फिल्म लंबा समय लेती है, इतना लंबा कि आखिरी के आधे घंटे में यह बोर करने लगती है। नायक-नायिका के बीच प्यार पनप रहा है लेकिन वह दर्शक को नहीं दिखता तो कमी लिखने और बनाने वालों की है।

रणवीर सिंह जंचे हैं और उन्होंने काम भी जम कर किया है। उनके मुकाबले वाणी कपूर कहीं-कहीं फीकी-सी लगती हैं। नए चेहरे अरमान रल्हन में अभी तो कोई दम नहीं दिखता। जयदीप साहनी के लिखे गीतों को विशाल-शेखर ने कैची धुनें दी हैं लेकिन गाने बहुत ज्यादा हैं और दो-तीन को छोड़ बाकी गाने अखरते हैं।

पेरिस शहर को बड़े करीने से दिखाती है फिल्म। लेकिन सवाल भी उठाती है कि क्या पेरिस सचमुच सिर्फ कामुक और जिस्म के भूखे लोगों का शहर है?

यशराज की हर फिल्म के शुरू में लता मंगेशकर की आवाज में एक सुरीली सिग्नेचन ट्यून आती है। लेकिन इस फिल्म में वह नहीं है। सही भी है। ‘सॉफ्ट-पोर्न’ परोसने के लिए इतनी पवित्र आवाज का इस्तेमाल किया भी नहीं जाना चाहिए।

कह सकते हैं कि फिल्म युवा पीढ़ी को भाएगी क्योंकि उन्हें पर्दे पर प्यार-मोहब्बत और नैतिकता से ज्यादा जिस्मानी रिश्ते और अश्लील संदर्भ पसंद आते हैं। पर क्या यह सचमुच सही है? कायदे से तो यह फिल्म प्रेम के दीवानों के लिए नहीं बल्कि हवस के पुजारियों के लिए बनी है।

अपनी रेटिंग-दो स्टार

Release Date-09 December, 2016

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: aditya chopraarmaan ralhanbefikrebefikre reviewjaydeep sahniranveer singhvani kapoorvishal-shekharyashrajyashraj filmsबेफिक्रे
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