-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
धारा नाम की एक बच्ची ऊटी में अपने पापा और नाना के साथ रहती है। कमाल का डांस करती है सो ‘इंडियाज़ सुपरस्टार डांसर’ नामक शो में भाग लेने के लिए मुंबई जाना चाहती है। पापा मना करते हैं तो डांस-टीचर उन्हें समझाती है कि पेरेंट्स दो तरह के होते हैं-एक वो जिनके बच्चे उनके ड्रीम्स जीते हैं और दूसरे वो जो अपने बच्चों के ड्रीम्स जीते हैं। बात पापा को लग जाती है और ये लोग पहुंच जाते हैं मुंबई। लेकिन यहां कुछ ऐसा होता है कि सारे ड्रीम्स एक तरफ हो जाते हैं। तब पापा कहता है कि मैंने धारा को कभी गिरने नहीं दिया है, आज भी गिरने नहीं दूंगा।
कहानी बढ़िया है। एक बच्ची, उसका ड्रीम, कभी आड़े आया पिता जो आज उसके साथ है। यह धुकधुकी कि अब उसका सपना सच होगा या नहीं…! लेकिन यह कहानी एक पैराग्राफ में ही बढ़िया लगती है क्योंकि फिल्म कहानी पर नहीं, उस पर फैलाई गई स्क्रिप्ट पर बनती है और इस फिल्म (Be Happy) की स्क्रिप्ट न सिर्फ ढीली व कमज़ोर है बल्कि इसमें से वह भावनाओं और संवेदनाओं की खुशबू भी लापता है जो इस किस्म की फिल्मों की जान होती है। वह खुशबू, जो दर्शकों के नथुनों से भीतर जाकर उसके ज़ेहन में जगह बनाती है, उसे उद्वेलित करती है और अंत में भावुक करते हुए उसे भिगो जाती है। इस फिल्म (Be Happy) में यह खुशबू बस कहने भर को है जो एक-आध दफा महसूस होती है और फिर हवा हो जाती है।
(रिव्यू-‘ए फ्लाईंग जट्ट’ पासे हट)
इस फिल्म (Be Happy) की लिखावट में वह कसावट नहीं है जो देखने वालों को बांध कर रख सके। शुरू से ही एक अजीब-सा बनावटीपन इसमें दिखता है। फिर इसकी कहानी का अवसादपूर्ण ट्रीटमैंट भी बोर करता है। पहले तो मन होता है कि इसे फॉरवर्ड करते हुए देखा जाए और फिर मन पूछता है कि इसे देखा ही क्यों जाए? यह फिल्म इसे लिखने वालों की नाकामी का नमूना है जिन्होंने बीच-बीच में पापा और डांस-टीचर, नाना और नातिन के हल्के-फुल्के दृश्यों के अलावा जबरन घुसेड़े गए बिल्डिंग के चौकीदार के सीन भी डाल कर माहौल को हल्का बनाने की कोशिशें कीं लेकिन वे अपनी इन कोशिशों का उथलापन छुपा न सके। इन्होंने किरदार भी दिलचस्प नहीं गढ़े और उन्हें संवाद भी जानदार नहीं दिए। छोटी बच्ची से जो बड़ों वाले संवाद बुलवाए गए वे बताते हैं कि हमारे फिल्मी लेखक बच्चों की संवेदनाओं को पकड़ पाने में किस कदर नाकाम रह जाते हैं।
(रिव्यू-मकसद में कामयाब ‘स्ट्रीट डांसर 3डी’)
निर्देशक रेमो डिसूज़ा अच्छे कोरियोग्राफर हैं लेकिन उन्हें अपने मन से यह वहम निकाल देना चाहिए कि वह अच्छे फिल्म निर्देशक भी हैं। हालांकि उन्होंने ‘ए.बी.सी.डी.’ सीरिज़ में कामयाब फिल्में दी हैं लेकिन उन फिल्मों में भी उनका ग्राफ धीरे-धीरे नीचे ही आया। फिर ‘ए फ्लाईंग जट्ट’ व ‘रेस 3’ जैसे कलंक तो उनके माथे पर हैं ही। ‘बी हैप्पी’ (Be Happy) में तो वह डांस वाले अपने सेफ-ज़ोन में ही थे लेकिन जब कथा-पटकथा ही साथ न दे पा रही हो तो डायरेक्टर बेचारा मुंह से तो गुब्बारा फुलाने से रहा।
धारा बनी बेबी इनायत वर्मा का काम हमेशा की तरह उम्दा रहा है। अभिषेक ऐसे संजीदा किरदारों में जंचते हैं लेकिन उनकी बॉडी लेंग्युएज में एक अजीब किस्म का कड़ापन है जिसके चलते मूवमैंट वाले दृश्यों में उनकी पोल खुल जाती है। नोरा फतेही को ‘देखा’ जा सकता है। नासिर तो खैर अच्छा काम करते ही हैं लेकिन उनके किरदार में ही दम नहीं था। ऐसी फिल्म में जिस ऊंचाई का गीत-संगीत होना चाहिए, वह भी इसमें नहीं है। एक-दो गाने ही छू पाते हैं। हां, कोरियोग्राफी अच्छी है।
फिल्म ‘बी हैप्पी’ (Be Happy) के नाम का इसकी थीम से कोई सीधा वास्ता नहीं दिखता। बरसों पहले ‘तूफान’ में अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज़ में एक गाना गाया था जिसके बोल थे-‘डोन्ट वरी बी हैप्पी…।’ काश, अभिषेक की इस फिल्म को देख कर भी यही कहा जा सकता। फिलहाल तो अमेज़न प्राइम वीडियो पर आई इस फिल्म को लेकर अपनी यह सलाह मानिए कि डोन्ट वॉच एंड बी हैप्पी।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-14 March, 2025 on Amazon Prime Video
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
Review …. Sab kuchh Khol kar rakh diya hai… Good and Bad…. Good Review