-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
मई, 2017 की बात है। एक पाकिस्तानी जोड़ा भारत का वीज़ा लेने के लिए पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास पहुंचा। काउंटर पर पहुंच कर उस लड़की उज़्मा अहमद ने कहा कि मैं भारतीय हूं और यहां फंस गई हूं, कृपया मेरी मदद कीजिए। भारतीय डिप्लोमेट जे.पी. सिंह ने मामले की नज़ाकत को समझते हुए उस लड़की को दूतावास में शरण दी। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान की धरती पर एक पेचीदा कानूनी लड़ाई लड़ने और उसमें जीतने के बाद उस लड़की को वापस भारत लाने में कामयाबी पाई। इस लड़ाई में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री (स्वर्गीय) सुषमा स्वराज की महती भूमिका रही जिन्होंने न सिर्फ उस लड़की को बेफिक्र किया बल्कि राजनयिक जे.पी. सिंह की पीठ भी थपथपाई। यह फिल्म ‘द डिप्लोमेट’ (The Diplomat) उसी कहानी को दिखाती है, बहुत सारी विश्वसनीयता के साथ, थोड़े फिल्मीपने के साथ।
किसी सच्ची घटना पर फिल्में अपने यहां हमेशा से बनती आई हैं। हाल के बरसों में यह रफ्तार थोड़ी तेज़ हुई है तो उसकी प्रमुख वजह यह है कि दर्शकों में ऐसी कहानियों को देखने व सराहने के प्रति जागरूकता बढ़ी है। ऐसे में यदि फिल्म वाले चुन-चुन कर ऐसी कहानियां सामने ला रहे हैं जो सच की कोख से निकली हैं और दर्शकों को छू पा रही हैं तो उनकी सराहना होनी चाहिए। खासतौर से तब, जब उन कहानियों को परोसा भी सलीके से गया हो। यह फिल्म यही करती है।
लेखक रितेश शाह ने वास्तविक घटना के ज़्यादातर तथ्यों को वैसा ही रखते हुए कहीं-कहीं ज़रूरी बदलाव किए हैं जो अखरते नहीं हैं। इस फिल्म की लिखाई इसलिए भी सराहना की हकदार है कि इसमें कहीं लाउडनैस नहीं है। ऐसी फिल्मों में देशभक्ति का बुखार, नारेबाज़ी, चीखते-चिल्लाते संवाद देखते आए लोगों को इस फिल्म (The Diplomat) की सहजता शुरू में भले ही सपाट लगे लेकिन धीरे-धीरे यह हमें अपनी गिरफ्त में ले लेती है और बताती है कि कैसे एक ‘सूखी’ कहानी भी अपनी प्रस्तुति से हमें भिगो सकती है।
यह फिल्म दिखाती है कि कैसे पड़ोसी देश का एक युवक मलेशिया में एक भारतीय लड़की का दोस्त बना और झूठ बोल कर उससे नज़दीकियां हासिल कीं। लेकिन जब वह उससे मिलने पाकिस्तान पहुंची तो उसका वहशी रूप देख कर दंग रह गई। बावजूद इसके उसने समझदारी दिखाते हुए भारतीय दूतावास से मदद मांगी और कैसे एक डिप्लोमेट ने साहस दिखाते हुए भारत की इस बेटी को सुरक्षित उसके देश पहुंचाने का ज़िम्मा उठाया। 2017 में भारत लौट कर उज़्मा ने पाकिस्तान को ‘मौत का कुआं’ बताया था। फिल्म वहां के अंदरूनी हालात और वहां की औरतों की दुर्दशा दिखा कर इस बात को सही साबित करती है। यह फिल्म (The Diplomat) इस बात को भी बताती है कि विदेशी धरती पर डिप्लोमेट्स असल में नौकरी नहीं कर रहे होते बल्कि अक्सर मौत के कुएं में फर्ज़ निभा रहे होते हैं-अपने देश के प्रति, अपने देशवासियों के प्रति। फिल्म यह भी बताती है कि यदि उनके पीछे उनके नेता पूरी दृढ़ता के साथ खड़े हों तो ही ये लोग अपने फर्ज़ पर टिके रह सकते हैं। इस बहाने से यह फिल्म उन नेताओं को भी सलाम करती है जो कठिन समय में अपने देश की संतानों के पीछे अभिभावक बन कर खड़े रहते हैं। फिल्म (The Diplomat) में कुलभूषण जाधव व सरबजीत का ज़िक्र इस बात को प्रासंगिक बनाता है। यह अलग बात है कि इस फिल्म में दिखाई गई बहुत सारी बातें देसी-विदेशी धरती पर मौजूद बहुतेरे लोगों को चुभ सकती हैं और इसीलिए फिल्म शुरू होने से पहले एक बहुत लंबा डिस्क्लेमर आकर ऐसे लोगों को बताता है कि सुलगने के लिए तैयार हो जाइए।
(रिव्यू-अपनों ने ही मारा ‘सरबजीत’ को)
शिवम नायर ने अपने निदेशन की धार पैनी रखने की बजाय सहज रखी है। शायद यह इस कहानी की ज़रूरत भी थी। इससे फिल्म (The Diplomat) की लुक गहरी और विश्वसनीय बन पाई है तो वहीं कहीं-कहीं इसका ‘रूखापन’ भी उभर कर दिखा है। अंत के दृश्यों में ज़रूरी तनाव रच कर उन्होंने इसे ऊंचाई दी है। जॉन अब्राहम चूंकि एक डिप्लोमेट बने हैं तो उनसे एक्शन या गुस्से का एक भी सीन न करवा कर समझदारी दिखाई गई है। जॉन ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। उज़्मा बनीं सादिया खतीब और उसके पति ताहिर की भूमिका में आए जगजीत संधू अपने-अपने किरदारों को जी भर कर जीते हैं। रेवती, कुमुद मिश्रा, शारिब हाशमी जैसे अन्य कलाकार भी सटीक काम करते हैं। शारिब की भूमिका में और ट्विस्ट होते तो मज़ा बढ़ जाता। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. के अफसर बने अश्वत्थ भट्ट अपने काम से असर छोड़ते हैं। लोकेशन विश्वसनीय रही हैं। गीत-संगीत की ज़रूरत महसूस ही नहीं होती।
एक वास्तविक घटना को विश्वसनीय चित्रण के साथ परोसती इस फिल्म (The Diplomat) को किसी देश, किसी धर्म का चश्मा हटा कर देखें तो यह अच्छी लगेगी, सच्ची लगेगी।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-14 March, 2025 in theaters
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
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