-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
जंगल में एक अधेड़ शख्स वीडियो बना कर खुद को गोली मार लेता है। वीडियो में वह बताता है कि 1985 में उसने अपने दो साथियों के साथ मिल कर इसी जगह पर एक लड़की को गाड़ा था। खुदाई में पुलिस को वहां एक लाश मिलती है। पता चलता है कि यह किसी रेखा नाम की लड़की की लाश है। मारने वालों को भी पुलिस पहचान लेती है। धीरे-धीरे पुलिस को यह भी पता चल जाता है कि रेखा को क्यों मारा गया। लेकिन एक रहस्य अंत तक बना रहता है कि रेखा आखिर थी कौन? कहां से आई थी रेखा? और क्या वह लाश सचमुच रेखा की ही थी?
हिन्दी वाले जो अक्सर छाती पीटते हैं न कि उनके पास अच्छी कहानियां नहीं होतीं, उन्हें साउथ की ऐसी फिल्में देखनी चाहिएं और गौर करना चाहिए कि क्यों साउथ वाले उनसे कंटेंट के स्तर पर चार कदम आगे खड़े होते हैं। सीखना चाहिए उनसे कि जब कोई थ्रिलर बनाओ तो उसमें थ्रिल पर फोकस करो, सस्पैंस रखो तो ऐसा रखो कि देखने वाला सिर के बाल नोच ले लेकिन उसे क्लू न मिले। यह नहीं कि पुलिस वाले हीरो की डिस्टर्ब लव-लाइफ दिखा दो, हीरो है तो मारधाड़ दिखा दो, बेमतलब का नाच-गाना दिखा दो, पर्दे पर हीरोइन आई नहीं कि उससे कोई ‘ऐसा-वैसा’ सीन करवा लो, जबरन कोई कॉमेडियन घुसेड़ दो। मतलब यह कि जब तक हिन्दी वाले अच्छी-भली कहानी के ऊपर बिना ज़रूरत के मसाले बुरकते रहेंगे, उनकी फिल्मों का रंग भले चोखा निकले, स्वाद बिगड़ा हुआ ही निकलेगा।
मूल रूप से मलयालम में बनी इस फिल्म ‘रेखाचित्रम’ की लिखाई इस कदर सधी हुई है कि एक-आध हल्की-फुल्की लचक को छोड़ कर शायद ही कोई कमी इसमें दिखे। आमतौर पर ऐसी फिल्मों में सारी मिस्ट्री कातिल की तलाश के इर्दगिर्द बुनी जाती है। लेकिन यहां कातिल सामने है लेकिन कत्ल की वजह और लाश की पहचान नहीं मिल रही है। यह एक नए किस्म का लेखन है जो आपको पहले ही सीन से कस कर बांधता है और धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत करता चला जाता है। इस कहानी का आइडिया सोचने वाले रामू सुनील की कल्पनाशीलता की दाद देनी चाहिए जिन्होंने इसे 1985 के साल की एक वास्तविक घटना से जोड़ कर इस कदर विश्वसनीय बना दिया कि यह काल्पनिक नहीं बल्कि सच लगने लगती है। फिल्म यह संदेश भी देती है कि इंसान के अच्छे-बुरे कर्म एक न एक दिन फलित ज़रूर होते हैं। पुलिस वालों के ईमानदार और समर्पित प्रयासों को भी यह फिल्म सराहती है।
जोफिन टी. चाको ने अपने निर्देशन की धार ऐसी पैनी रखी है कि इस रहस्य गाथा का रहस्य हर पल गहराता चला जाता है। कलाकारों से उम्दा काम निकलवाना हो या सटीक लोकेशन का कायदे से इस्तेमाल, उन्होंने सब कुछ बेहद सधे हुए ढंग से किया है। आसिफ अली, अनस्वरा राजन व सभी कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को कायदे से पकड़ कर शानदार काम किया है।
9 जनवरी को थिएटरों में रिलीज़ हुई यह फिल्म इस साल की अभी तक की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली मलयालम फिल्म है। अब 7 मार्च को यह सोनी लिव पर हिन्दी समेत अन्य भाषाओं में डब होकर आई है।
शुरू से अंत तक कमाल का रहस्यमयी जाल बुनते हुए यह फिल्म सस्पैंस और थ्रिल से भरपूर अद्भुत मनोरंजन परोसती है। इसे देखना शुरू करेंगे तो बीच में नहीं छोड़ पाएंगे।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-9 January, 2025 in theaters. 7 March, 2025 on SonyLiv in Hindi
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
Waah .. mai Theater me jaakar origenal language me dekhna chaati thi.. par jaa na saki.
Aapka review padhke mazaa aa gayaa. Aaj hi dekhi jaaegi
Hello Sir,
It was nice have you in our college. Your thoughts and jist of movie were mind blowing.
We hope you liked our event organized by our department . Hope to have you soon with a more bigger event.
Thank you
Regards
Thanks a lot dear