• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-अपनों और सपनों के बीच भागती दुल्हनिया

Deepak Dua by Deepak Dua
2017/03/11
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-अपनों और सपनों के बीच भागती दुल्हनिया
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
खालिस मसाला फिल्मों का जमाना गया। अब तो मसाले के साथ मैसेज परोसने का दौर है। यह फिल्म (बद्रीनाथ की दुल्हनिया) भी यही कर रही है। दहेज के खिलाफ लंबा-चैड़ा डिस्क्लेमर देती है, नारी-मुक्ति की बात करती है, लड़कियों को सपने देखने और उड़ान भरने को कहती है, साथ ही मनोरंजन भी करती है। मगर अफसोस, यह सब छोटे-छोटे टुकड़ों में है और ये टुकड़े ज्यादा दमदार भी नहीं हैं।

इधर हिन्दी सिनेमा में हिन्दी पट्टी के छोटे शहरों के किरदार दिखाए जाने का चलन बढ़ा है। खुद निर्देशक शशांक खेतान अपनी पिछली और पहली फिल्म ‘हंपटी शर्मा की दुल्हनिया’ में अंबाला से दिल्ली आई नायिका के नायक से प्यार करने की कहानी कह रहे थे। इस फिल्म में उन्होंने झांसी से एक शादी में कोटा गए नायक के वहां नायिका के इश्क कर बैठने की कहानी दिखाई है। समस्या यह है कि नायक के पिता के लिए दहेज ही सब कुछ है तो वहीं नायिका का बाप दो बेटियों का बोझ उठाए बैठा है। इस फिल्म के प्रोमो बता रहे थे कि कैसे हीरो अपनी हीरोइन का दिल जीतता है। लेकिन ये सब इंटरवल तक खत्म हो जाता है। उसके बाद कहानी में आया ट्विस्ट इसे एक मैच्योर कथा में तब्दील करता है लेकिन अचानक आप कहानी की बजाय सिंगापुर-दर्शन और वहां भी सिल्क एयर का प्रचार देखने लग जाते हैं।

इस फिल्म के साथ दिक्कत यही है कि यह जो कहना चाहती है, खुल कर कहती है लेकिन उसे जायज ठहराने के लिए संजीदा संवाद या दृश्य नहीं दे पाती। यह दहेज को गलत बताती है लेकिन उसे रोक नहीं पाती। हीरो का कहना है कि वह हीरोइन को प्यार करता है, उसका ‘सम्मान’ करता है लेकिन हद यह है कि वह उसकी एक नहीं सुनता और लगातार उसके करीब जाकर छिछोरी हरकतें करता रहता है।

फिल्म की एडिटिंग में भी दिक्कत है। कई सीन बेवजह ठूंसे गए लगते हैं। किरदारों की जुबान भी झांसी-कोटा की नहीं लगती। कास्टिंग भी इस बार गड़बड़ है। रितुराज सिंह कहीं से भी दो जवान बेटों के पिता नहीं लगते। और उन जैसा करोड़पति ऐसी खिचड़ी दाढ़ी क्यों रखता है? ‘मकड़ी’ वाली बाल-अदाकारा श्वेता बासु प्रसाद को हिन्दी फिल्मों में हीरोइन बन कर आने के लिए इससे बेहतर मौके मिल सकते थे। चुप रहने वाली भाभी बन कर उन्होंने अपना ही नुकसान किया है। स्वानंद किरकिरे की प्रतिभा को ज़ाया किया गया। और हां, लड़की वाले शुक्ला, त्रिवेदी और लड़के वाले बंसल…! यह क्रांतिकारी आइडिया किसका था भई? परंपरा, प्रतिष्ठा की दुहाई देने वाले बनिये बंसल साहब पंडितों की बेटियों को बहू क्यों बना रहे हैं?

वरुण धवन के किरदार में वैरायटी है और उन्होंने इसका भरपूर फायदा उठाते हुए जम कर प्रभावित किया। आलिया भट्ट तो ‘जॉली एलएलबी 2’ में जज बने सौरभ शुक्ला की उस बात को फिर सही साबित करती नजर आईं कि वह ‘सारांश’ के बाद महेश भट्ट की बैस्ट क्रिएशन हैं। जिक्र जरूरी है साहिल वैद का। पिछली फिल्म का पोपलू इस बार हीरो के दोस्त सोमदेव की भूमिका में पर्दे को जीवंत बनाए रखता है। आलिया से ज्यादा वक्त तक पर्दे पर दिखे साहिल ने कहीं लाउड, कहीं सहज तो कहीं हीरो को उभारने के लिए अंडरप्ले करके अपने किरदार को विश्वसनीय और सराहनीय बनाए रखा। थोड़े दुबले होकर अवार्ड-शवार्ड लेने की तैयारी कर लो साहिल।

गीत-संगीत अच्छा है और आइटमनुमा होने के बावजूद सुनने-देखने में लुभाता है।

हमारे समाज में दोनों किस्म की लड़कियां मौजूद हैं। सपनों के लिए अपनों को छोड़ने वाली भी और अपनों के लिए सपनों को ताक पर रखने वाली भी। फिल्म इन दोनों ही को बागी या निरीह बताने की बजाय नायिका के तौर पर उभारती है। बस, लेखक-निर्देशक शशांक खेतान अगर अपनी कलम और कैमरे को थोड़ा और कस लेते तो फिल्म यूं हल्की होने से बच सकती थी। मगर यह बोर नहीं करती है और अगर टाइम-पास के लिए देखी जाए तो बुरी भी नहीं है।

अपनी रेटिंग-ढाई स्टार

Release Date-10 March, 2017

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Alia BhattBadrinath Ki Dulhania reviewsahil vaidshashank khaitanshweta basu prasadVarun Dhawan
ADVERTISEMENT
Previous Post

मिलिए ‘अनारकली’ के फकीर निर्देशक अविनाश दास से

Next Post

Sanjay Dutt’s weird shoes in film ‘Bhoomi’ Press Conference Agra

Related Posts

वेब-रिव्यू : मार्निंग शो वाले सिनेमा का सेलिब्रेशन ‘मरते दम तक’
CineYatra

वेब-रिव्यू : मार्निंग शो वाले सिनेमा का सेलिब्रेशन ‘मरते दम तक’

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’
CineYatra

रिव्यू-मसालेदार मज़ा देता है ‘पठान’

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’
CineYatra

रिव्यू-क्रांति और भ्रांति के बीच फंसी ‘छतरीवाली’

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’
CineYatra

रिव्यू-बिना वर्दी वाले जवानों का ‘मिशन मजनू’

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’
CineYatra

वेब-रिव्यू : उस मनहूस दिन के बाद का संघर्ष दिखाती ‘ट्रायल बाय फायर’

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं
फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-इस हमाम में सब ‘कुत्ते’ हैं

Next Post
Sanjay Dutt’s weird shoes in film ‘Bhoomi’ Press Conference Agra

Sanjay Dutt's weird shoes in film 'Bhoomi' Press Conference Agra

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – [email protected]

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment.