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Home फ़िल्म रिव्यू

रिव्यू-जीत का परचम लहराती ‘83’

Deepak Dua by Deepak Dua
2021/12/22
in फ़िल्म रिव्यू
14
रिव्यू-जीत का परचम लहराती ‘83’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

1983 में जब कपिल देव की अगुआई में भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप जीता था तो न सिर्फ क्रिकेट जगत में बल्कि खुद भारत में भी अपनी टीम की क्षमता पर हर किसी को संदेह था। यहां तक कि टीम के ज़्यादातर सदस्य भी इंग्लैंड सिर्फ ‘खेलने’ गए थे ‘जीतने’ नहीं। लेकिन किसी चमत्कार की तरह उसी टीम ने हर एक बाधा को पार कर विश्व कप को चूमा था। संजय पूरण सिंह चौहान की लिखी यह फिल्म अपनी टीम की उसी जर्नी को दिखाती है-करीब से, बारीकी से, गहराई से।

संजय पूरण सिंह…? जी हां, अपनी पहली फिल्म ‘लाहौर’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले लेखक-निर्देशक संजय ने ही छह-सात बरस पहले इस विषय पर फिल्म बनाने का ऐलान किया था। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें किनारे कर दिया गया और कमान निर्देशक कबीर खान के साथ लेखक वासन बाला व सुमित अरोड़ा ने संभाल ली। खैर, न कहानी में कोई कमी है, न स्क्रिप्ट और संवादों में। थोड़े-सा फिल्मी ड्रामा ज़रूर कहीं-कहीं ज़्यादा हो गया लेकिन उससे भी फिल्म का असर गाढ़ा ही हुआ, हल्का नहीं।

शुरूआत वहां से होती है जब भारतीय टीम इंग्लैंड पहुंची है। हर किसी को लगता है कि ये लोग तो फाइनल से पहले ही लौट जाएंगे। वापसी की टिकटें तक बुक हैं। लेकिन कप्तान कपिल देव को जीत का भरोसा है। यह फिल्म कपिल के इस भरोसे की ही कहानी दिखाती है कि किस तरह से एक नवेला कप्तान, जिसकी टीम के सात सदस्य उससे सीनियर है, जिसे ठीक से अपनी बात तक रखनी नहीं आती, अंग्रेज़ी में जिसका हाथ ज़बर्दस्त तंग है, अपने साथियों के अंदर उस जोश और जज़्बे का संचार कर देता है कि वे लोग शिखर छू लेते हैं।

कबीर खान का निर्देशन सधा हुआ है। वह न तो कहीं भटके हैं, न ही अटके हैं। दंगे वाला सीक्वेंस आता है तो लगता है कि गाड़ी पटरी से उतरेगी, लेकिन ऐसा नहीं होता और फिल्म यह संदेश दे पाने में भी सफल होती है कि क्रिकेट की खुमारी आपसी नफरतें तक खत्म करा सकती हैं। लेखकों ने अपनी कलम से कई बेहतरीन सीक्वेंस रचे हैं और कई संवाद तालियां बजवाते हैं। तालियां तो तब भी बजती हैं, अपने-आप, जब पर्दे पर कपिल देव पल भर को दिखाई देते हैं।

फिल्म लिखने वालों की मेहनत किरदारों को गढ़ने में और उनसे जुड़ी छोटी-छोटी बातों को सामने लाने में नज़र आती है तो कास्टिंग टीम भी तारीफों की हकदार है जिसने चुन-चुन कर ऐसे कलाकार लिए जो हर खिलाड़ी के पात्र को जीवंत कर गए। हर कोई उम्दा, हर कोई लाजवाब लेकिन रणवीर सिंह के भीतर तो जैसे कपिल देव की आत्मा ही प्रवेश कर गई हो। लुक, मेकअप तो छोड़िए, स्टाइल और आवाज़ तक हूबहू। भई वाह, रणवीर दा जवाब नहीं! और दीपिका पादुकोण… पूछिए मत, कितनी प्यारी लगी हैं वह और कितनी प्यारी लगी है रणबीर के साथ उनकी जोड़ी। कलाकार तो बाकी के भी शानदार रहे चाहे वह कमेंटरी बॉक्स में बैठे बोमन ईरानी रहे हों या कपिल की मां बनीं नीना गुप्ता। टीम मैनेजर बने पंकज त्रिपाठी छाता बन चुके हैं। जहां आते हैं, छा जाते हैं। गाने फिल्म के स्वाद के मुताबिक हैं, अच्छे हैं। ‘परचम लहरा दो…’ उम्दा है।

टीम के हर खिलाड़ी की निजी और प्रोफेशनल ज़िंदगी में ज़रूरत भर झांकती यह फिल्म भले ही हर वक्त खेल और खेल का मैदान दिखाती है लेकिन न तो यह ड्रामा से अछूती है, न कॉमेडी से, न रोमांस से और न ही एक्शन से। इसीलिए इसे देखते हुए कभी आप भावुक होते हैं, कभी हंसते हैं, कभी यह आपके रोंगेटे खड़े करती है तो कभी आपको बेचैन भी कर देती है। एक संपूर्ण मनोरंजक फिल्म के सारे तत्व हैं इस फिल्म में। जिन्हें देख कर कभी आपकी आंखें नम होती हैं, कभी शरीर में झुरझुरी होने लगती है तो कभी आपकी मुठ्ठियां भिंच उठती हैं। उन भिंची हुई मुठ्ठियों में पसीना आता है। और जब ऐसा होता है न, तो सिनेमा आपकी रगों में दौड़ता है। दौड़ने दीजिए… देख डालिए इसे सिनेमाघरों में।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-24 December, 2021

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: 19838383 review83 world cupAmmy virkBoman Iranichirag patilCricketdeepika padudoneharrdy sandhujatin sarnakabir khanKapil Devneena guptapankaj tripathiranveer singhsanjay puransingh chauhansaqib saleemsumit aroratahir raj bhasinvasan bala
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Comments 14

  1. Dilip Kumar Singh says:
    6 months ago

    A must see film for cricket lovers like us

    Reply
    • CineYatra says:
      6 months ago

      Indeed…

      Reply
  2. Harish Sharma says:
    6 months ago

    हमेशा की तरह सरल सच समीक्षा शुभकामनाएं

    Reply
    • CineYatra says:
      6 months ago

      धन्यवाद भाई साहब…

      Reply
  3. Kaushal Kumar says:
    6 months ago

    बड़े भाई गजब लिखते हो, गहराई से लिखते हो, दिल को छू जाता है।

    Reply
    • CineYatra says:
      6 months ago

      धन्यवाद छोटे भाई… प्रभु-कृपा है, बस… इसी तरह हौसला देते रहिए…

      Reply
  4. Rk says:
    6 months ago

    Good review & good film for cricket lovers

    Reply
    • CineYatra says:
      6 months ago

      thanks Sir…

      Reply
  5. Nirmal kumar says:
    6 months ago

    पा’ जी!! हमें तो 24 का इंतज़ार करना ही पड़ेगा। 😅 वैसे आपकी समीक्षा के बाद अन्य हिंदी समीक्षकों को पढ़ता हूँ तो हँसी आती है। खासतौर से अमर उजाला जो मेरे यहाँ आता है। 😜

    Reply
    • CineYatra says:
      6 months ago

      धन्यवाद…

      Reply
  6. Bhojraj uchchsare says:
    6 months ago

    जब आप किसी फिल्म की समीक्षा के अंत में मुट्ठियां भिंच जाने की बात लिखते हो तो वह इस बात की गारंटी होती है कि फ़िल्म बहुत बेहतर होगी।

    Reply
    • CineYatra says:
      6 months ago

      धन्यवाद भाई साहब…

      Reply
  7. Sunita Tewari says:
    6 months ago

    वाह, दीपक जी, आपका फिल्म समीक्षा का अंदाज बहुत नायाब है। आपने फिल्म का सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया है। अब तो फिल्म देखनी ही होगी।

    Reply
    • CineYatra says:
      6 months ago

      आभार… शुक्रिया…

      Reply

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