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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ऐसी फिल्में हल्ला नहीं मचा पातीं

Deepak Dua by Deepak Dua
2021/08/20
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-ऐसी फिल्में हल्ला नहीं मचा पातीं
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

2004 की बात है। नागपुर की एक अदालत में अक्कू यादव नाम के एक ऐसे शख्स को पेश किया गया जो पिछले 13 साल से शहर की एक दलित बस्ती में आतंक का पर्याय बन चुका था। दसियों बलात्कार, हत्याएं, डकैतियां, अपहरण, गुंडागर्दी और न जाने क्या-क्या आरोप उस पर थे। तभी अदालत में उसी बस्ती की दो सौ औरतें आ घुसीं और उन्होंने लाल मिर्च पाउडर, रसोई के चाकू, बेलन, जैसे औजारों से अक्कू यादव पर हमला बोल कर उसे मार डाला। यह फिल्म ‘200 हल्ला हो’ उसी सत्य-घटना को दिखाती है, थोड़े-से फिल्मीपने के साथ।

इस फिल्म के खलनायक बल्ली चौधरी का अदालत में मारा जाना तो पहले ही सीन में हो जाता है। उसके बाद यह फिल्म दरअसल हमारे सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में झांकने का काम करती है। कैसे एक आदमी एक मामूली गुंडे से इतना बड़ा गैंगस्टर हो जाता है, कैसे पुलिस-प्रशासन उसे रोकने की बजाय उसके संगी हो जाते हैं, लोग क्यों उसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठा पाते जैसे हालात के साथ-साथ यह फिल्म बल्ली की मौत के बाद उसे लेकर राजनीति करने और उस राजनीति की आंच पर रोटियां सेंकने वालों को भी दिखाती चलती है। साथ ही यह उन चंद लोगों को भी दिखाती है जो ईमानदारी से काम करना चाहते हैं लेकिन हमारा सिस्टम उनकी राह में रोड़े अटकाता है।

फिल्म का विषय अच्छा है और उसे कायदे से लिखा व उठाया भी गया है। निर्देशक सार्थक दासगुप्ता और आलोक बत्रा ने इसे निर्देशित भी सलीके से किया है। इस घटना के इर्दगिर्द जो माहौल उन्होंने गढ़ा है, वह कहानी कहने के लिहाज से जंचता भी है। लेकिन इसे लिखने-बनाने वाले लोग इसमें अपने निजी एजेंडे भी घुसाते हैं तो अखरता है। दलित लड़की, दलित जज, उनका साथ देता मुसलमान वकील…! निष्पक्षता पूरी तरह बरती जाती तो यह फिल्म और असरदार होती। कुछ एक संवाद बेहद दमदार हैं।

‘सैराट’ वाली रिंकू राजगुरु मराठी किरदारों में खूब जंचती हैं। उपेंद्र लिमये, इश्तियाक खान, नवनी परिहार, इंद्रनील सेनगुप्ता, फ्लोरा सैनी, प्रद्युमन सिंह आदि अच्छा अभिनय कर गए तो वहीं ‘प्रहार’ के तीस साल बाद गौतम जोगलेकर को किसी हिन्दी फिल्म में देखना भी सुखद लगा। लेकिन इस फिल्म का सबसे बड़ा हासिल है अमोल पालेकर का अभिनय। आप इस फिल्म की कहानी, विषय, फिलॉसफी आदि बातों को किनारे कर सिर्फ और सिर्फ अमोल पालेकर के लिए इसे देख लें तो भी सौदा घाटे का नहीं होगा। वैसे भी इस किस्म की फिल्में ज़्यादा हल्ला नहीं मचा पातीं जैसे ज़ी-5 पर आई यह फिल्म चुपचाप आकर किनारे जा बैठी है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-20 August, 2021

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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