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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-ज़रूरी हैं ‘उरी’ जैसी फिल्में

Deepak Dua by Deepak Dua
2019/01/08
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-ज़रूरी हैं ‘उरी’ जैसी फिल्में
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
कुछ महीने पहले ‘राज़ी’ के रिव्यू में मैंने लिखा था-‘राज़ी’ जैसी फिल्में बननी चाहिएं। ऐसी कहानियां कही जानी चाहिएं। ये हमारी सोच को उद्वेलित भले न करें, उसे प्रभावित ज़रूर करती हैं। फिर ‘परमाणु-द स्टोरी ऑफ पोखरण’ के रिव्यू में मेरी लाइनें थीं-अखबार में जब आप पढ़ते हैं कि ‘भारत ने परमाणु परीक्षण किया’ तो इसके पीछे असल में कितने सारे लोगों की मेहनत लगी होती है। कितने सारे लोगों ने उसमें अपने और अपनों के सपनों की आहुति दी होती है। और बस, यहीं आकर यह एक ज़रूरी फिल्म हो जाती है। ‘उरी-द सर्जिकल स्ट्राइक’ इसी कड़ी की अगली फिल्म है जो न सिर्फ आपको उद्वेलित करती है बल्कि अपने ज़रूरी होने का अहसास भी कराती है।

2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में आर्मी कैंप में घुस आए आतंकियों द्वारा 19 जवानों के मारे जाने के बाद भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुस कर आतंकियों के अड्डों को तबाह करने की सर्जिकल स्ट्राइक को भले ही राजनीतिक-कूटनीतिक या सामरिक गलियारों में किसी भी चश्मे से देखा जाता हो, सच यह है कि एक आम भारतीय को इस तरह के मिशन, इस तरह की खबरें राहत देती हैं। उसे सुरक्षा और सुकून का अहसास कराती हैं। उसके भीतर देश के प्रति भावना भरती हैं। और हमारे फिल्मकार गाहे-बगाहे दर्शकों की इन्हीं भावनाओं को उभारने, भुनाने के लिए इस किस्म की फिल्में लाते रहते हैं।

उरी हमले के बाद हुई सर्जिकल-स्ट्राइक की प्लानिंग और उसकी तामील किसी डॉक्यूमेंट्री का विषय हो सकता है। जाहिर है कि जब इस पर कोई फिल्म बनेगी तो उसमें बहुत कुछ ‘फिल्मी’ भी होगा। यह ज़रूरी भी है। फिल्म अगर ‘फिल्मी’ न हो तो वह दर्शकों को नहीं बांध पाएगी और जो दर्शकों को न बांध पाए, उस फिल्म का बनना बेकार है। इस नज़र से देखें तो इस फिल्म में लेखक-निर्देशक आदित्य धर ने वो सारे तत्व, वो सारे मसाले डालने की कोशिश की है जो एक आम दर्शक को सुहाएं, उसे भाएं, उसे छुएं और उसके भीतर तक उतर जाएं। बीमार मां, जीजा की मौत का बदला, अपने साथियों की शहादत का गुस्सा, दो नायिकाएं, एक बच्ची के आंसू, पाकिस्तान में बैठे हमारे एजेंट, हमले की हमारी प्लानिंग जैसे ये तत्व ही इस विषय के रूखेपन पर मसालों का लेप लगा कर इसे एक सिनेमाई शक्ल देते हैं। हालांकि इनमें से काफी कुछ तार्किकता की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाता है। हमारी सरकार अपने बहादुर आर्मी अफसर की मां की देखभाल के लिए नर्स की शक्ल में खुफिया एजेंट क्यों भेजेगी, पाकिस्तान के हमारे एजेंट सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से फोन पर कैसे बतिया लेते हैं, जैसी बहुतेरी बातें हैं जो स्क्रिप्ट की कमज़ोरी या हल्केपन को सामने लाती हैं। साथ ही ‘कुछ लोगों’ को इस फिल्म में मौजूदा सरकार का और मौजूदा प्रधानमंत्री का महिमामंडन भी अखर सकता है। आदित्य की तारीफ इसलिए भी ज़रूरी हो जाती है कि इस रूखे विषय को रंगीन बनाने के लिए बेवजह के ड्रामा, इमोशन्स, देशभक्ति के उबाल, नायक-नायिका के रोमांस जैसे मसालों को डाले जाने की भरपूर संभावनाओं के बावजूद वो इससे बचे हैं और यह आसान नहीं होता।

किरदारों को कायदे से खड़ा किया गया है और कलाकारों ने उसे सलीके से निभाया भी है। यामी गौतम, कीर्ति कुल्हारी, मानसी पारिख, परेश रावल, स्वरूप संपत, रजत कपूर आदि ने अपने किरदारों में फिट रहे हैं। विकी कौशल के कंधों पर इस बार बड़ी ज़िम्मेदारी थी जिसे उन्होंने कायदे से निभाया। अपने हावभाव में वो एक आर्मी कमांडो का दम, उसका गुस्सा, उसका जोश ला पाने में कामयाब रहे हैं। गीत-संगीत में शोर-शराबे की बजाय मधुरता रहती तो इस फिल्म के गाने लंबे समय तक याद रह सकते थे। पंजाबी के दो लोक-गीतों को भी बेवजह रॉक में तब्दील कर दिया गया। तकनीकी तौर पर फिल्म काफी उन्नत है। कैमरा-मूवमैंट, साउंड-रिकॉर्डिंग, बैकग्राउंड म्यूजिक, एडिटिंग जैसे पक्ष इसे एक दर्शनीय फिल्म का दर्जा देते हैं।

‘उरी’ उत्कृष्ट दर्जे के सिनेमा का नमूना भले न हो लेकिन एक आम दर्शक के अंदर यह जिन भावनाओं का संचार करती है, वही इसकी कामयाबी है। ऐसी फिल्में ज़रूरी हैं ताकि लोगों को सनद रहे कि देश के भीतर बैठ कर नारे बनाना, सुनना और बोलना अलग बात है और सरहद पर जाकर उन नारों पर अमल करना दूसरी।

अपनी रेटिंग-तीन स्टार

Release Date-09 January, 2019

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: aditya dharkirti kulharimansi parekhparesh rawalswarup sampaturi-the surgical strike reviewvicky kaushalyami gautam
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