• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

वेब-रिव्यू : रहस्यमयी पत्थर की रोमांचक कहानी ‘द जेंगाबुरु कर्स’

Deepak Dua by Deepak Dua
2023/08/09
in फिल्म/वेब रिव्यू
2
वेब-रिव्यू : रहस्यमयी पत्थर की रोमांचक कहानी ‘द जेंगाबुरु कर्स’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

ओड़िशा का क्योंझर जिला। यहीं पर है जेंगाबुरु हिल्स जहां रहते हैं बोंड्रिया आदिवासी। यहां की ज़मीन के नीचे हैं बेशकीमती खनिज जिनके लालच में कुछ लोगों ने इन आदिवासियों को नक्सली करार देकर यहां से भगा दिया और लग गए ज़मीन की छाती छीलने में। लेकिन इस इलाके में एक अजीब-सी बीमारी क्यों फैल रही है? यहां की खदान में लोग मर क्यों रहे हैं? खदान वाले सच बाहर क्यों नहीं आने देना चाहते? कुछ विदेशी इस मामले में क्यों शामिल हैं? इस खदान में के पत्थरों में आखिर कौन-सा राज़ छुपा है? वह राज़ है या कोई अभिशाप?

‘आई एम कलाम’, ‘जलपरी’ (मनोरंजन और संदेश देती ‘जलपरी’) और ‘कड़वी हवा’ (रिव्यू-कड़वी है मगर ज़रूरी है) जैसी फिल्मों से ढेरों तारीफें व पुरस्कार पा चुके फिल्मकार नीला माधव पांडा की लिखी और बनाई इस वेब-सीरिज़ को ‘क्लाइ-फाई’ यानी क्लाइमेट-फिक्शन कहा जा रहा है। हालांकि किसी आदिवासी, गरीब, वंचित, मूल निवासी की ज़मीन या उस ज़मीन में छुपे किसी कीमती खज़ाने को कब्जाने के लिए उन्हें वहां से हटाने की बाहरी लोगों की साज़िशों की कहानियां पूरी दुनिया के सिनेमा में आती रही हैं। हॉलीवुड की ‘अवतार’ तक ने भी यही दिखाया था। कुछ महीने पहले आई वेब-सीरिज़ ‘आर या पार’ (वेब-रिव्यू : बदले का रोमांच ‘आर या पार’ में) में भी ऐसी ही कहानी थी। लेकिन इस सीरिज़ की बड़ी खासियत है इसका ज़मीनी यथार्थ। इसे देखते हुए आपको यह नहीं लगता कि आप कोई ‘सिनेमा’ देख रहे हैं बल्कि ऐसा लगता है जैसे आप खुद उस इलाके में हैं, आपके इर्दगिर्द मजबूर आदिवासी, भ्रष्ट पुलिस, अपने स्वार्थ में उलझे नेता, पॉवरफुल खदान मालिक आदि मौजूद हैं और आप इस कहानी की नायिका प्रिया की तरह बेबसी के साथ लगातार यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर यहां चल क्या रहा है?

हिन्दी के सिनेमा में ओड़िशा की बात कम ही हुई है। इसे बनाने वाले नीला माधव पांडा खुद ओड़िशा से हैं तो उन्होंने इसमें वहां के वास्तविक माहौल को बहुत ही बारीकी के साथ चित्रित किया है। और शायद पहली बार ऐसा भी हुआ है कि आदिवासियों की कहानी कहते हुए इतनी अधिक रिएलिटी दिखाई गई हो। निखिल रवि और मयंक तिवारी की पटकथा व संवाद इस कहानी को और अधिक बल देते हैं। बड़ी बात यह भी है कि इसमें पात्रों की पृष्ठभूमि के मुताबिक अंग्रेज़ी और बड़ी मात्रा में स्थानीय बोली के संवाद भी हैं जो इसे ज़्यादा विश्वसनीय बनाते हैं। नीला इससे पहले भी अपनी फिल्मों में देश, समाज, वातावरण की बात कर चुके हैं। इस बार उन्होंने यह सब एक बड़े स्केल पर, बड़े विस्तार से और बड़े ही प्रभावी ढंग से कहा है जिसके लिए उनकी तारीफ होनी चाहिए।

नायिका प्रिया के किरदार में फारिया अब्दुल्लाह ने प्रभावी अभिनय किया है। वरिष्ठ अभिनेता नासिर तो हर बार कमाल करते ही हैं। डॉक्टर बने मकरंद देशपांडे के पात्र को और अधिक विस्तार दिया जा सकता था। सुदेव नायर, माणिनी डे, दीपक संपत, पवित्र सरकार, श्रीकांत वर्मा, हितेश योगेश दवे, मिलानी ग्रे समेत सभी कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं से भरपूर न्याय किया है।

जेंगाबुरु के रहस्य को आखिरी एपिसोड तक जिस तरह से छुपाया गया है उससे जहां रोचकता बनी रहती है वहीं बेचैनी-सी भी होती है। सोनी लिव पर आई सात एपिसोड की यह सीरिज़ इस कदर कसी हुई है कि मात्र एक-दो जगह पर ही थोड़ी ढीली लगी है। आखिरी एपिसोड में ज़रूर कहीं-कहीं पकड़ कमज़ोर और बात हल्की होती हुई लगी है। बावजूद इसके इस सीरिज़ में एक उम्दा थ्रिलर कहानी है जो मनोरंजन परोसने के साथ-साथ जल, जंगल और ज़मीन के हक की बात करती है। ज़रूर देखें।

Release Date-09 August, 2023 on Sony Liv

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: deipak sampatfaria abdullahhitesh yogesh davejengaburumakrand deshpandemanini demelanie graynassarnila madhab pandaodishapavitra sarkarshrikant vermaSonyLivsudev nairthe jengaburu cursethe jengaburu curse reviewweb review
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू : धीमे-धीमे आगे बढ़ती ‘कच्छ एक्सप्रैस’

Next Post

रिव्यू-रख विश्वास, यह फिल्म (ओएमजी 2) है खास

Next Post
रिव्यू-रख विश्वास, यह फिल्म (ओएमजी 2) है खास

रिव्यू-रख विश्वास, यह फिल्म (ओएमजी 2) है खास

Comments 2

  1. NAFEESH AHMED says:
    2 years ago

    एक शानदार और जानदार और यथार्थ से जुड़ी हुई सीरीज़….साथ में रिव्यु इतना सटीक और हकीकी हसि कि एक बार तो इस सीरीज़ को देखना बनता ही है….

    किसी ने सही कहा है कि ख़ाक से पैदा हुए और फिर आखिरत में मिल जाना है ख़ाक (ज़मीन ) में…

    यही इस सीरीज़ का हकीकी आइना है कि कैसे आदिवासी अपनी बेशकीमती ख़ाक (ज़मीन और इसमें छिपे खजाने ) को बचाने के लिए किस तरह से जुस्तजू करते हैँ..

    Reply
    • CineYatra says:
      2 years ago

      वाह

      Reply

Leave a Reply to CineYatra Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment