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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…

Deepak Dua by Deepak Dua
2025/06/04
in फिल्म/वेब रिव्यू
3
रिव्यू-‘स्टोलन’ चैन चुराती है मगर…
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

राजस्थान के किसी छोटे-से रेलवे-स्टेशन से एक बच्चा चोरी हो जाता है। शक जाता है उसी समय ट्रेन से उतरे एक युवक और उसे लेने आए उसके भाई पर। इससे पहले कि मामला ठंडा हो, इनका एक वीडियो वायरल हो जाता है और कई लोग इनकी जान के दुश्मन बन जाते हैं। अब शुरू होती है एक ऐसी भागमभाग भरी अंधेरी रात जिसकी सुबह नज़र नहीं आती। उधर वह बच्चा किस का था, कौन ले गया, कहां ले गया जैसे तमाम सवाल भी अभी अनसुलझे ही हैं।

2023 में बनी और कई फिल्म फेस्टिवल्स में घूम कर आई इस फिल्म की लिखावट और बुनावट कसी हुई-सी लगती है। कुछ घंटों की कहानी में गिनती के कुछ किरदारों की भागमभाग और उनके पीछे हाथ धो कर पड़े लोगों की कहानियां अपनी इसी कसावट के चलते ही भाती हैं। अनुष्का शर्मा वाली ‘एन एच 10’ इस कतार में सबसे पहले याद आती है। नवाज़ुद्दीन सिद्दिकी, भूमि पेडनेकर वाली ‘अफवाह’ और तारा सुतारिया वाली ‘अपूर्वा’ भी ऐसी ही कहानियां दिखा रही थीं। ‘स्टोलन’ इन तीनों का मिक्सचर लगती है। ‘एन एच 10’ की तरह इसके किरदार गलत वक्त पर गलत जगह होने के कारण मुसीबतों में फंसते चले जाते हैं। ‘अपूर्वा’ और ‘स्टोलन’ में भौगोलिक स्थितियां एक जैसी हैं और दोनों में अभिषेक बैनर्जी की मौजूदगी इन्हें करीब लाती है। वहीं ‘अफवाह’ की तरह वायरल वीडियो और पीछे पड़े लोगों का हुजूम ‘स्टोलन’ को भी एक डरावनी फिल्म बनाता है। इसे देखते हुए यह सोच कर मन बेचैन होने लगता है कि ऐसे हालात में अपन कभी फंस गए तो…!

(रिव्यू-सरसों के खेत में अफीम की ‘अफवाह’)

लेकिन यह फिल्म इतनी भी शानदार नहीं है कि कस कर बांध ले। यह ज़रूर है कि मात्र डेढ़ घंटे की इसकी लंबाई और घटनाओं की रफ्तार के चलते इसे देखते हुए समय बीतता चला जाता है मगर यह फिल्म ऐसा कुछ खास ‘कह’ नहीं पाती है जो आपके दिल पर वार करे। यह मुसीबत में फंसे किसी इंसान की मदद को आगे आने की बात कहती है लेकिन डरा भी देती है कि कहीं मदद करने वाला ही न फंस जाए। मुसीबत आने के बाद यह हौसला न खोने की सीख देती है और अंत में यह भी बता जाती है कि कर भला तो हो भला की कहावत झूठी नहीं है। लेकिन यह सब काफी उथला है और असर नहीं छोड़ पाता। इस किस्म की फिल्मों से सामाजिक रूढ़ियों पर वार करने की जो उम्मीद की जाती है, उस मोर्चे पर भी यह फिल्म हल्की रही है। स्क्रिप्ट के कई पहलू पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं बन पाए हैं। कुछ बातें असंगत दिखती हैं और कुछ किरदार कमज़ोर। अंत ठंडा और रूखा-सा है। 

अधिकांश दृश्यों की शूटिंग अंधेरे में होने के कारण इस फिल्म को देखना आंखों के लिए आसान नहीं रहा। ऊपर से इसे रियलिस्टिक बनाने के चक्कर में कलाकारों का बुदबुदाते हुए संवाद बोलना कानों पर भी भारी पड़ा। हिलता-डुलता कैमरा अलग से डिर्स्टब करता रहा। करण तेजपाल का निर्देशन कसावट लिए हुए है और उन्हें सीन बनाने आते हैं।

अभिषेक बैनर्जी जंचे हैं लेकिन उन्हें पूरी फिल्म में सिगरेट पिलवाना ज़रूरी था क्या? शुभम वर्धन और मिया मेलज़र ने उम्दा काम किया। मिया की बांग्ला समझने में काफी ज़ोर लगाना पड़ा। पुलिस वाले बने हरीश खन्ना और सहीदुर रहमान शानदार रहे।

ग्रामीण पृष्ठभूमि की कहानी दिखाती यह फिल्म अपने नाम ‘स्टोलन’ (जिस का अर्थ कितने हिन्दी वाले समझ पाएंगे…?) और तेवर से एक शहरी फिल्म है। यह ऐसी फिल्म है जिसे बड़े शहरों के फिल्म फेस्टिवल्स वाले दर्शकों से तो तालियां मिल सकती हैं लेकिन यह कुछ उम्दा और गहरा देखने की चाह रखने वाले दर्शकों के दिल नहीं चुरा पाती।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-4 June, 2025 on Amazon Prime Video

(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)

Tags: abhishek banerjeeamazonamazon primeamazon prime videoAnurag Kashyapgaurav dhingraharish khannakaran tejpalkiran raoMia MaelzerNikhil Advanisahidur rahamanshubham vardhanstolenstolen reviewvikramaditya motwane
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Comments 3

  1. Ranjan Tiwary says:
    3 months ago

    Deepak ji, you really make my decision process easier to choose a right film worth watching. Thank you !!

    Reply
    • CineYatra says:
      3 months ago

      Thanks a lot…

      Reply
  2. NAFEES AHMED says:
    3 months ago

    रिव्यु में कोई शक नहीं लेकिन डेढ़ घंटे में एक फ़िल्म कों जो कहना चाहिए इसने कहा है…. वो अलग h कि हो सकता है ये कई फिल्मो का मिक्सर हो….

    बहुत उम्दाह नहीं यों बहुत बुरी भी नहीं है

    Reply

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