-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
पहले एक सच्ची कहानी सुन लीजिए। 1965 में हुई भारत-पाकिस्तान की जंग में भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के भीतर तक घुस कर उनके सरगोधा एयर-बेस को न सिर्फ बुरी तरह तबाह कर दिया था बल्कि अमेरिका से उन्हें तोहफे में मिले बहुत सारे लड़ाकू जहाजों को भी नष्ट कर दिया था जबकि वे जहाज भारत के लड़ाकू जहाजों से कई गुना बेहतर थे। इस अभियान में एक भारतीय लड़ाकू विमान भी नष्ट हो गया था और उसका पायलट लापता। वायु सेना ने उस पायलट ए.बी. देवैया को ’मिसिंग इन एक्शन’ घोषित कर दिया लेकिन उसके करीबी विंग कमांडर तनेजा को हमेशा लगता रहा कि वह पायलट जीवित है। क्या हुआ था उस पायलट के साथ…? क्या वह सचमुच लापता हो गया था…? मर गया था…? या फिर…!
यह फिल्म इसी सच्ची कहानी पर आधारित है। अब चूंकि यह फिल्म है तो इसमें थोड़ा-सा मिर्च-मसाला, तड़का-शड़का होना स्वाभाविक है। लेकिन यह मिर्च-मसाला और तड़का अखरता नहीं है बल्कि इस कहानी को और अधिक स्वादिष्ट बना कर ही परोसता है। फिल्म का फर्स्ट हाफ थोड़ा सूखा-सा है। ऐसा महसूस होता है कि छौंक कम रह गया। दरअसल इंटरवल से पहले कहानी की भूमिका बनाने और उसका दायरा फैलाने में लेखकों की कल्पनाशीलता थोड़ी हल्की रह गई जिससे यह फिल्म कभी डॉक्यूमेंट्रीनुमा तो कभी एक एयर-शो की तरह लगी। लेकिन इंटरवल पॉइंट पर आकर लगता है कि अब आगे कुछ सचमुच बढ़िया और ज़ोरदार और ऐसा ही होता भी है। इंटरवल के बाद की कहानी जब उठान लेना शुरू करती है तो अंत में आपकी आंखों में भर आए पानी और बदन में दौड़ गई सिहरन पर ही खत्म होती है।
इस फिल्म को लिखने वालों की यह सफलता है कि उन्होंने इसे आम बॉलीवुडिया मसालेदार देशभक्ति फिल्म बनाने की बजाय एक सच्ची कहानी को दिखाने का ज़रिया ही बनाए रखा जिससे यह फिल्म हौले-हौले अपना प्रभाव जमाते हुए अंत में ऐसा ज़ोरदार असर छोड़ती है कि आप काफी देर तक उससे बाहर नहीं निकल पाते। फिल्म के संवाद शायद इरादतन सहज रखे गए हैं ताकि यह लाउड और तीखी देशभक्ति वाली फिल्म न बन जाए। 2024 में 26 जनवरी के मौके पर आई हृतिक रोशन, दीपिका पादुकोण वाली बेहूदा फिल्म ‘फाईटर’ से यह काफी अलग और बेहतर है तो इसका बड़ा कारण इसकी लिखाई और बुनाई ही है।
(रिव्यू : हवाई-वीरों की हवा-हवाई कहानी ‘फाईटर’)
नए निर्देशकों की जोड़ी अभिषेक अनिल कपूर और संदीप केवलानी ने मिल कर पर्दे पर जो संसार रचा है वह कुछ एक छोटी-मोटी, जल्द पकड़ में न आने वाली कमियों के बावजूद हमें अपने भीतर लेकर जाता है और फिल्म खत्म होने के बाद तक हमारे साथ बना रहता है। कई सीन इन्होंने बहुत कायदे से बनाए। बड़े सितारों की मौजूदगी के बावजूद फिल्म को सहज बनाए रखना इन दोनों के लिए सरल नहीं रहा होगा। इनके लिए अलग से तालियां बजनी चाहिएं।
अक्षय कुमार सचमुच बहुत अच्छा और असरदार काम करते दिखाई दिए हैं। बड़ी बात यह है कि उन्हें ज़्यादा बोलने और ज़्यादा उछल-कूद करने से निर्देशकों ने थामे रखा जिससे उनका काम और मेहनत उभर कर महसूस हुई। नए अभिनेता वीर पहाड़िया फिल्मी हीरो की बजाय एयरफोर्स पायलट ही लगे। उनके काम में गहराई है। एयर फोर्स के बाकी अफसर के किरदारों में आए कलाकार भी सहज लगे। मनीष चौधरी, वरुण वडोला, निमरत कौर, शरद केलकर, गुरपाल सिंह प्रभावी रहे। सारा अली खान का काम कच्चा रहा। उनकी बजाय किसी अन्य परिपक्व अभिनेत्री को लिया जाना बेहतर होता।
गीत-संगीत अच्छा है और प्रभावी भी। गाने जब-जब आए फिल्म को और अधिक बल ही देकर गए। खासतौर से मनोज मुंतशिर का लिखा और बी. प्राक का गाया ‘ओ माई तेरी मिट्टी बुलाए तो…’ 2019 में आई फिल्म ‘केसरी’ में इसी जोड़ी वाले गीत ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां…’ की याद दिलाने के बावजूद जेहन में गूंजते हुए आंखों को बार-बार नम करता रहा। कसर इरशाद कामिल ने भी नहीं छोड़ी। तनिष्क बागची की धुनें गीतों के बोलों और फिल्म के माहौल के साथ न्याय करती रहीं। अंत में लता मंगेशकर के गाए अमर गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों…’ का आना जैसे दिल चीर जाता है।
1965 में भारत के महान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के मज़बूत कद को स्थापित करते हुए यह फिल्म हवा में उड़ान भरने वाले हमारे शेरों के अदम्य साहस और बलिदान को भी सलाम करती है। यह कोई महान फिल्म नहीं है। यह कोई परफेक्ट फिल्म भी नहीं है लेकिन यह एक अच्छी फिल्म ज़रूर है, एक असरदार फिल्म ज़रूर है, जिसे देखा जाना चाहिए। फिल्म के अंत में यदि आपकी आंखों से दो बूंदें गालों पर लुढ़क आएं तो उन्हें पोंछिएगा नहीं, वीरों को श्रद्धांजलि समझ बह जाने दीजिएगा। रुंधा हुआ गला इजाज़त न दे तो मन ही मन कह डालिएगा-जय हिन्द…! जय हिन्द की सेना…!
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-24 January, 2025 in theaters
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
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