-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
मिलन लूथरिया को सिनेमाई शिल्प की समझ है यह वह अपनी पहली फिल्म ‘कच्चे धागे’ में ही सिद्ध कर चुके हैं। अब उनकी यह फिल्म उन्हें उम्दा निर्देशकों की कतार में एक नहीं, कई कदम आगे ले जाती है। मिलन और निर्मात्री एकता कपूर ने भले ही कुछ भी कहा हो मगर यह फिल्म साफ-साफ मुंबई के मशहूर स्मगलर हाजी मस्तान और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के जीवन से प्रेरित है।
60 और 70 के दशक की मुंबई में स्मगलर सुल्तान मिर्जा (अजय देवगन) के कुछ उसूल हैं और वह गरीबों का हमदर्द है। एक पुलिस इंस्पेक्टर का बेटा शोएब (इमरान हाशमी) उसकी तरह बनना चाहता है। जब सुल्तान राजनीति में प्रवेश करने के इरादे से दिल्ली जाता है तो पीछे से शोएब वे सारे उसूल तोड़ देता है जो सुल्तान ने बनाए थे।
फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है इसकी स्क्रिप्ट की कसावट। अंडरवर्ल्ड में एक बॉस के नीचे किसी दूसरे के सिर उठाने की कहानियां कोई नई नहीं हैं। लेकिन लेखक रजत अरोड़ा ने बहुत खूबसूरती से इसे फैलाया है। ताकत किस तरह से किसी को भी भ्रष्ट करती है, फिल्म इसे बखूबी दिखाती है। पहले ही सीन से फिल्म पटरी पर आ जाती है और फिर लगातार उसी पर दौड़ती रहती है। अंडरवर्ल्ड की कहानी होने के बावजूद इसमें दो प्रेम-कहानियां भी हैं जो इसे पूरी तरह से रोमांटिक बना देती हैं। एक्शन हो या कॉमेडी, हर चीज़ अपने पूरे रंग में है। फिल्म की जान हैं इसके डायलॉग। बरसों बाद किसी फिल्म में इतने जानदार संवाद सुनाई पड़े हैं। प्रीतम का संगीत बहुत बढ़िया रहा है। ‘पी लूं…’ तो कमाल की मिठास लिए हुए है।
अजय देवगन अपने किरदार में पूरी तरह से समाए नज़र आए हैं। इमरान हाशमी की अब तक की यह बेहतरीन परफॉर्मेंस है। प्राची देसाई और कंगना रानौत ने भी शानदार काम किया है। रणदीप हुड्डा बहुत बढ़िया काम कर गए। एक्टिंग बाकी सब की भी बढ़िया है। सच तो यह है कि अगर किरदार कायदे से लिखे गए हों और निर्देशन सधा हुआ हो तो बाकी सब खुद-ब-खुद पटरी पर आ जाता है।
अपनी रेटिंग-चार स्टार
(नोट-यह रिव्यू प्रसिद्ध फिल्म पत्रिका ‘फिल्मी कलियां’ में प्रकाशित हुआ था)
Release Date-30 July, 2010
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)