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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-तंग सोच को ठेंगा दिखाती ‘मी रक़्सम’

Deepak Dua by Deepak Dua
2020/08/21
in फिल्म/वेब रिव्यू
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

भरतनाट्यम-भारत का डांस। हमारा ‘अपना’ डांस। लेकिन अगर कोई ‘पराया’ भी इसे करना चाहे तो हम उसे रोकते नहीं हैं। ऐसी ही एक ‘पराई’ लड़की मरियम और उसके पिता के संघर्षों की कहानी है यह। मां की असमय मौत के बाद किशोरी मरियम का मन हुआ कि वह भरतनाट्यम सीखे। पिता सलीम ने रोका नहीं, उलटे साथ दिया। लेकिन आड़े आ गए तंग सोच वाले वे लोग जिन्होंने समाज की हर बात का ठेका ले रखा है। हाशिम सेठ के इशारे पर सलीम को उसके ‘अपनों’ ने ही दुत्कारना शुरू कर दिया। उधर जयप्रकाश जैसे लोग भी भला कहां खुश थे एक ‘पराई’ लड़की को यह डांस करते देख कर।

ज़ी-5 पर रिलीज़ हुई इस फिल्म की कहानी बहुत ही साधारण है। हुसैन मीर और सफदर मीर ने इसमें तमाम फिल्मी मसालों, टेढ़े-मेढ़े रास्तों, मुरकियों की गुंजाइश होने के बावजूद इसे सीधी, सरल और सच्ची बनाए रखा। यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है। और इसीलिए यह हमें किसी पराई ज़मीन की कहानी न लग कर हमारे आसपास के मुआशरे की ही एक ऐसी दास्तान लगती है जो चल तो सामने पर्दे पर रही है लेकिन जिसके ताने-बाने हमें धीरे-धीरे लपेटना शुरू कर देते हैं। अंत में आंखों से बहते आंसुओं के साथ मन को और उजला करती है यह।

बाबा आज़मी फिल्म इंडस्ट्री के नामी सिनेमैटोग्राफर हैं। कैफी आज़मी जैसे शायर पिता और शबाना आज़मी जैसी अदाकारा बहन होने के बावजूद उन्होंने कैमरे के पीछे की राह पकड़ी। लेकिन बतौर निर्देशक अपनी इस पहली ही फिल्म से उन्होंने जता दिया है कि वह भी कम संवेदनशील नहीं हैं। कहानी की पृष्ठभूमि ही नहीं बल्कि उसकी शूटिंग तक अपने पिता के गांव में करके उन्होंने इसे यथार्थ के और करीब ला दिया है। छोटे-छोटे दृश्यों, छोटे-छोटे संवादों से उन्होंने फिल्म को कदम-दर-कदम इस तरह आगे बढ़ाया है कि अंत में यह दिल में जाकर बैठ जाती है। गाने ज़्यादा नहीं हैं। जो हैं, कहानी की ज़रूरत के मुताबिक हैं और उम्दा हैं।

छोटे से लेकर बड़े तक, तमाम किरदार इस तरह से रचे गए हैं कि वे कहीं भी असंगत नहीं लगते। इन्हें निभाने वाले तमाम कलाकारों से उम्दा काम निकलवा पाना भी निर्देशक की ही खूबी मानी जाएगी। पिता-पुत्री के किरदार में दानिश हुसैन और अदिति सुबेदी बेजोड़ रहे हैं। दानिश पल भर को भी अपने किरदार से बाहर नहीं हुए। वहीं अदिति का भावप्रदर्शन उन्हें पुरस्कार का हकदार बनाता है। अंत में डांस करते हुए उनके चेहरे के निर्विकार भाव बतौर कलाकार उन्हें बहुत ऊपर ले जाते हैं। हाशिम सेठ बने नसीरुद्दीन शाह और जयप्रकाश बने राकेश चतुर्वेदी ओम ने अपने पात्रों को सहजता से निभाया है। क्लाइमैक्स के दृश्यों में राकेश ने अपने अभिनय के कई रंग फटाफट दिखा डाले। सुदीप्ता सिंह, फारुख ज़फर, श्रद्धा कौल, कौस्तुभ शुक्ला, शिवांगी गौतम जैसे बाकी के तमाम कलाकारों ने भरपूर सहयोग दिया।

इस किस्म की फिल्में न सिर्फ तंग सोच को ठेंगा दिखाती हैं बल्कि न रुकने, न झुकने की हिम्मत को भी सलाम करती हैं। ऐसी फिल्में उम्मीदें जगाती हैं। यह भी बताती हैं कि माता-पिता अपने बच्चों को सही-गलत का फर्क सिखाएं। और ऐसी फिल्में नई पीढ़ियों की भी ज़िम्मेदारी तय करती हैं, उन्हें टिके रहना सिखाती हैं-सच की राह पर।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-21 August, 2020

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: aditi subedibaba azmidanish hussainfarrukh jaffarkaustubh shuklaMee RaqsamMee Raqsam Reviewnaseeruddin shahrakesh chaturvedirakesh chaturvedi omshivangi gautamshraddha kaul
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