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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-यह मर्द सर्द है, इसे दर्द नहीं होता

Deepak Dua by Deepak Dua
2019/03/21
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-यह मर्द सर्द है, इसे दर्द नहीं होता
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–दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

बरसों पहले ‘मर्द’ फिल्म में दारा सिंह ने अपने दुधमुंहे बच्चे की छाती पर चाकू की नोक से ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ उकेर दिया था। ज़रा सोचिए कि अगर किसी को सचमुच दर्द न हो तो…? इस फिल्म ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ का हीरो सूर्या ऐसा ही है। बचपन से ही उसे यह अजीब-सी ‘बीमारी’ है कि उसे दर्द, चुभन, खुजली जैसा कुछ भी महसूस नहीं होता (हां, बड़े होकर ‘कुछ’ और ज़रूर महसूस होता है)। कुंगफू-कराटे वाली और बॉलीवुड की घिसी-पिटी एक्शन फिल्में देख कर वह बड़ा होता है और इन फिल्मों के नायकों की तरह समाज में फैले हुए पाप को जला कर राख कर देना चाहता है।

इस फिल्म को आप किसी एक जॉनर में नहीं रख सकते। करीब सवा दो घंटे की यह फिल्म कुछ अलग है। कुछ नहीं, बहुत अलग है। कभी यह एक ‘फेस्टिवल मूवी’ हो जाती है जिसे फिल्म समारोहों में देख कर प्रबुद्ध दर्शक वाह-वाह करते हैं, तो कभी यह एक बिल्कुल ही पैदल स्क्रिप्ट पर बनी आम मसाला फिल्म हो जाती है। कभी यह किसी कॉमिक-बुक की तरह चलने लगती है तो कभी किसी सुपरहीरो मूवी की तरह जिसका हीरो पानी पी-पी कर बुरे लोगों का खात्मा करता है। दरअसल यह एक ऐसी एक्सपेरिमैंटल फिल्म है जिसके ज़रिए लेखक-निर्देशक ने मारधाड़ वाली उन देसी-विदेशी फिल्मों को ट्रिब्यूट देने की कोशिश की है जिन्हें हम ‘घिसी-पिटी’ मान कर मनोरंजन के लिए देख तो लेते हैं लेकिन सिनेमा को आगे बढ़ाने में उनके योगदान का ज़िक्र आने पर इन्हें उठा कर किनारे रख देते हैं। वासन बाला ने ऐसी तमाम फिल्मों के रेफरेंस का इस्तेमाल इसमें बखूबी किया है।

लेकिन यह एक्सपेरमैंट हर किसी को भाने वाला नहीं है। सूर्या को उसके पिता और नाना ने उसकी ‘बीमारी’ के चलते घर के भीतर रख कर पाला है। पर जब वह बाहर निकलता है तो अपने बचपन के प्यार सुप्री और कराटे मास्टर मणि से न सिर्फ जा मिलता है बल्कि उनके हक के लिए लड़ता भी है। फिल्म में एक साथ बहुत कुछ समेटने की कोशिश कई जगह अखरती है। फिल्म की लंबाई कई जगह खलने लग जाती है। खासतौर से एक्शन सीक्वेंस बेवजह बहुत लंबे रखे गए है। फिर जिस तरह से कहानी को कहने-दिखाने की कोशिश की गई है, वह भी हर किसी को न तो भाएगा और न ही हर कोई उसे हजम कर पाएगा। हां, पूरी फिल्म देखते हुए आपके होठों पर एक मुस्कान बराबर बनी रहेगी और कुछ जगह आप खुल कर हंसेगे भी।

बतौर सूर्या अभिमन्यु दासानी (अभिनेत्री भाग्यश्री के बेटे) अपना टेलेंट दिखा पाने में सफल रहे हैं। उनके भीतर आत्मविश्वास है। राधिका मदान को ‘पटाखा’ के बाद एक बिल्कुल ही बदले हुए रंग-रूप में देख कर सुखद आश्चर्य होता है और उनके प्रति आसक्ति भी जगती है। गुलशन देवैया हर बार की तरह लाजवाब रहे और महेश मांजरेकर अद्भुत। बैकग्राउंड म्यूज़िक और फोटोग्राफी इस फिल्म का सशक्त पहलू हैं।

कहीं-कहीं बहुत अच्छी होने के बावजूद यह फिल्म काफी जगह पर सर्द यानी ठंडी है। इसे देखते हुए आप ‘ऐसा क्यों हुआ, वैसे क्यों नहीं हुआ’ टाइप के सवाल भी पूछ सकते हैं। लेकिन इसी फिल्म के एक संवाद ‘ज़्यादा सोचो मत वरना दिमाग में लॉजिक आने लगेंगे’ को परम सत्य मानते हुए बिना ज़्यादा सोच-विचार के यह फिल्म देखनी हो तो देखिए वरना, मर्द को दर्द हो न हो, आपके सिर में ज़रूर दर्द होगा… आउच…!

अपनी रेटिंग-ढाई स्टार

Release Date-21 March, 2019

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Abhimanyu Dassanigulshan devaiahMahesh ManjrekarMard Ko Dard Nahin Hota reviewradhika madanvasan balaमर्द
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