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Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-‘मणिकर्णिका’-वो तो झांसी वाली रानी थी

Deepak Dua by Deepak Dua
2019/01/26
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
रिव्यू-‘मणिकर्णिका’-वो तो झांसी वाली रानी थी
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

रानी लक्ष्मीबाई की वीरता के किस्सों ने रानी को सचमुच हमारे जेहन में किसी मनुज नहीं बल्कि अवतारी का दर्जा दिया हुआ है। ऐसी रानी की कहानी पर कोई फिल्म बन कर आए तो ज़ाहिर है कि उसमें इतिहास में बयान वे उजले पक्ष तो होंगे ही जिन्होंने उन्हें एक असाधारण वीरांगना का दर्जा दिया, साथ ही दंतकथाओं के उन हिस्सों का होना भी लाजिमी है जिन्होंने रानी को आज भी हमारे दिलों में जीवित रखा हुआ है। इस फिल्म में वो सब है जो आप देखना चाहते हैं। लेकिन साथ ही ऐसा भी बहुत कुछ है जो इसे बनाने वाले आपको दिखाना चाहते हैं। फिर चाहे वो इतिहास का हिस्सा हो या नहीं।

कह सकते हैं कि यह फिल्म है तो इसमें बहुत कुछ ‘फिल्मी’ तो होना ही हुआ। लेकिन क्यों? क्यों यह सब इतना ज़रूरी हो जाता है? क्यों इसे लिखने-बनाने वालों को यह लगता है कि इस किस्म के ‘लुभावने’ मसाले न डाले तो दर्शक को आनंद नहीं आएगा? क्या रानी की अपनी कहानी में इतना ओज नहीं कि वह दर्शकों को बांध सके? अब कहने को इस फिल्म के साथ दो नामी इतिहासकार भी जुड़े हुए हैं लेकिन जब किसी एक व्यक्ति की हठ से फिल्म का असल निर्देशक तक उसे छोड़ दे तो भला इतिहासकारों की क्या बिसात। फिल्म की नायिका कंगना रानौत ने जिस तरह से इस फिल्म के निर्देशक कृष को हाशिए पर धकेल कर इसे अपने मन-मुताबिक बदला, उसका असर फिल्म की क्वालिटी पर साफ नज़र आता है। इस किस्म की फिल्म हो और उसमें गहराई की बजाय उथलापन दिखे तो समझ लेना चाहिए कि बनाने वाले कहीं तो चूके हैं। लक्ष्मीबाई के अलावा किसी अन्य किरदार को कायदे से उभरने का मौका ही नहीं दिया गया जबकि उन किरदारों को निभा रहे कलाकार अपनी अदाकारी के पैनेपन से इस फिल्म को एक अलग ही ऊंचाई पर ले जा सकते थे।

‘बाहुबली’ और ‘बजरंगी भाईजान’ वाले विजयेंद्र प्रसाद की स्क्रिप्ट रानी के जीवन को कायदे से दिखाती है लेकिन कहीं-कहीं सुस्त होती रफ्तार फिल्म की लय को बिगाड़ती है। इतिहास के खलनायकों के तौर पर सदाशिव राव और सिंधिया घराने का ज़िक्र माकूल लगता है। अंतिम समय में रानी के घोड़े के नाले पर जा अड़ने और वहीं रानी की मृत्यु के बाद उनके सेवकों द्वारा तुरत-फुरत उनकी चिता सजा कर उनके शरीर के अंग्रेज़ों के हाथों में न पड़ने जैसी लोकप्रिय गाथा भी अगर फिल्म में होती तो ज़्यादा असर छोड़ती।

सैट और लोकेशन से भव्यता झलकती है। स्पेशल इफैक्ट्स अच्छे हैं लेकिन कुछ एक जगह तो बिल्कुल ही बचकाने लगते हैं। प्रसून जोशी के संवाद कुछ एक जगह ही जोशीले हैं। संवादों की भाषा भी कई जगह गड़बड़ लगती है। अंग्रेज़ों को ‘इंगलिश कर्मचारी’ तो पहले कहीं न सुना, न पढ़ा। प्रसून के गीत भी कुछ खास नहीं हैं। ‘भारत यह रहना चाहिए…’ को छोड़ दें तो गीत-संगीत इस फिल्म का सबसे कमज़ोर पक्ष है।

कंगना ने प्रभावी अभिनय किया है। उनकी सर्वश्रेष्ठ अदाकारी में इसे गिना जाएगा। रानी की भंगिमाओं को उन्होंने भरपूर आत्मसात किया है। अपने मेकअप, पोशाकों, गहने, रूप-लावण्य से उन्होंने इस किरदार को सम्मान दिलाया है। काम तो अतुल कुलकर्णी, डैनी डेंज़ोंग्पा, सुरेश ओबराॅय, जिशु सेनगुप्ता, कुलभूषण खरबंदा, अंकिता लोखंडे, मिष्टी चक्रवर्ती, मौहम्मद ज़ीशान अय्यूब का भी अच्छा है लेकिन फिल्म इन्हें भरपूर मौके नहीं दे पाती।

यह कोई महान फिल्म नहीं है। यह कोई परफैक्ट फिल्म भी नहीं है। लेकिन यह इतिहास की एक सम्मानित नायिका के प्रति देशवासियों की भावनाओं, सम्मान और स्नेह को और बढ़ाती है। देश के प्रति समर्पित होने का पाठ पढ़ाती है। भुजाएं फड़काती है, आंखें नम कर जाती है और अपने नायकों पर गौरव करना सिखाती है। इसे देखने के लिए इतने सारे कारण काफी हैं।

अपनी रेटिंग-तीन स्टार

Release Date-25 January, 2019

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: ankita lokhandeatul kulkarnidanny denzongpajisshu senguptakangana ranautkrishkulbhushan kharbandamanikarnika reviewsuresh oberoizeeshan ayyub
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