• Home
  • Film Review
  • Book Review
  • Yatra
  • Yaden
  • Vividh
  • About Us
CineYatra
Advertisement
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
CineYatra
No Result
View All Result
ADVERTISEMENT
Home फिल्म/वेब रिव्यू

रिव्यू-तंत्रम थ्रिलम ‘करतम भुगतम’

Deepak Dua by Deepak Dua
2024/05/18
in फिल्म/वेब रिव्यू
1
रिव्यू-तंत्रम थ्रिलम ‘करतम भुगतम’
Share on FacebookShare on TwitterShare on Whatsapp

-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)

ज्योतिषीय उपायों, भविष्यवाणियों, काला जादू, तंत्र-मंत्र का असर होता है, नहीं होता है, कितना होता है, ये सब बातें बहस और निजी आस्था का विषय हो सकती हैं। इसी प्रकार से ‘जो हो रहा है वह पहले के कर्मों का भुगतान है और जो होगा वह आज के कर्मों का भुगतान होगा’ वाली थ्योरी पर भी लोगों के अलग-अलग मत हो सकते हैं। यह फिल्म ‘करतम भुगतम’ (Kartam Bhugtam) ऐसे ही विषय और ऐसे ही मतों पर अपनी बात रखती है।

अपने पिता की मौत के कई महीने बाद उनकी छोड़ी करोड़ों की संपत्ति, पैसों का हिसाब करने विदेश से दस दिन के लिए भोपाल आया देव जोशी यहां के सिस्टम में उलझ कर रह जाता है। ऐसे में उसे मिलता है तांत्रिक-ज्योतिषी अन्ना और इसके बाद देव की ज़िंदगी बदलने लगती है। कैसे बदलती है उसकी ज़िंदगी…? क्या इसके पीछे ज्योतिष और तंत्र का हाथ है…? या फिर यह सब एक छलावा है…?

‘काल’ और ‘लक’ जैसी बड़े सितारों वाली फिल्में दे चुके लेखक-निर्देशक सोहम पी. शाह की फिल्मों का एक अलग टोन रहता है जिसमें रहस्य, रोमांच, मिथ और आस्था के स्वर सुनाई देते हैं। ‘करतम भुगतम’ भी इसी टोन पर है लेकिन यह फिल्म ‘करतम भुगतम’ (Kartam Bhugtam) शुरू होती है तो इसका हल्का बजट झलकने लगता है। फिल्म के फर्स्ट हॉफ में कहानी को बनाने का काम किया गया है और दूसरे हॉफ में समेटने का। पहले हिस्से में दोहराव है और ठहराव भी। इंटरवल से काफी पहले कम से कम मुझे तो अंदाज़ा हो गया था कि आगे क्या होने वाला है। दूसरे हिस्से में थ्रिल ज़रूर है और वह देखने में अच्छा भी लगता है लेकिन उसमें कोई नयापन नहीं दिखता।

दरअसल यह फिल्म ‘करतम भुगतम’ (Kartam Bhugtam) लेखन और निर्देशन, दोनों के स्तर पर औसत रही है। कई जगह यह उतनी मज़बूत नहीं हो पाती, जितनी उम्मीद दर्शक इससे लगा लेता है। कुछ सीन बहुत अच्छे बनते-बनते अचानक औसत तक सिमट कर रह जाएं तो इसे कल्पनाशीलता की कमी ही कहा जाएगा। ‘जैसा करोगे, वैसा भुगतोगे’ का संदेश देने वाली यह फिल्म ‘करतम भुगतम’ (Kartam Bhugtam) अंत तक यह सिद्ध कर पाने में विफल रहती है कि ज्योतिष और तंत्र विद्या सही होती है या नहीं होती है। फिल्म के सीक्वेंस कन्फ्यूज़ करते हैं क्योंकि इसके किरदार कह कुछ और रहे हैं, कर कुछ और रहे हैं।

श्रेयस तलपड़े और विजय राज़ सधे हुए कलाकार हैं, चाहे कैसे भी किरदार हों, ये उसे संभालना जानते हैं। यह फिल्म ‘करतम भुगतम’ (Kartam Bhugtam) भी सिर्फ इन दोनों के अभिनय के कारण ही दर्शनीय बन पाई है। बाकी किसी को कायदे की भूमिकाएं ही न मिल सकीं। मधु साधारण रहीं और अक्षा पारदसानी कमज़ोर। अक्षा के चरित्र-चित्रण में भी कन्फ्यज़न नज़र आती है। एक कन्फ्यूज़न फिल्म बनाने वालों में यह भी दिखाई देती है कि जब ये लोग मुंबई से मध्यप्रदेश शूटिंग के लिए जा सकते हैं तो भोपाल में रहने वाले अजय सिंह पाल जैसे काबिल कलाकार को सिर्फ झलक भर के लिए अपनी फिल्म में क्यां लेते हैं। उन्हें एक अच्छा-खासा रोल दे कर उनका सदुपयोग किया जाना चाहिए था। गीत-संगीत कमज़ोर है। थीम-सॉन्ग को छोड़ कर बाकी गानों की ज़रूरत ही नहीं थी। कैमरा कहीं-कहीं ही कलाकारी दिखा सका।

साधारण कहानी पर साधारण ढंग से बनी हुई इस फिल्म ‘करतम भुगतम’ (Kartam Bhugtam) को साधारण टाइम पास के लिए देखें। वैसे भी जब फिल्म बनाने वाले (और उनके प्रचारक) फिल्म बनने के बाद उसका कायदे से प्रचार तक न कर रहे हों, तो समझिए कि दाल में पानी ज़्यादा है।

(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)

Release Date-17 May, 2024 in theaters

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए सिनेमा व पर्यटन पर नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: ajay singh palaksha pardasanykartam bhugtamkartam bhugtam reviewmadhooShreyas TalpadeSoham P Shahvijay raaz
ADVERTISEMENT
Previous Post

रिव्यू-राह दिखाती ‘श्रीकांत’

Next Post

रिव्यू-तस्वीर का दूसरा रुख ‘बारह बाइ बारह’

Related Posts

रिव्यू-चरस तो मत बोइए ‘मालिक’
CineYatra

रिव्यू-चरस तो मत बोइए ‘मालिक’

वेब-रिव्यू : राजीव गांधी हत्याकांड पर सधी हुई ‘द हंट’
CineYatra

वेब-रिव्यू : राजीव गांधी हत्याकांड पर सधी हुई ‘द हंट’

रिव्यू : मस्त पवन-सी है ‘मैट्रो… इन दिनों’
CineYatra

रिव्यू : मस्त पवन-सी है ‘मैट्रो… इन दिनों’

रिव्यू-‘कालीधर’ के साथ मनोरंजन ‘लापता’
CineYatra

रिव्यू-‘कालीधर’ के साथ मनोरंजन ‘लापता’

रिव्यू-’शैतान’ से ’मां’ की औसत भिड़ंत
CineYatra

रिव्यू-’शैतान’ से ’मां’ की औसत भिड़ंत

वेब-रिव्यू : रंगीले परजातंतर की रंग-बिरंगी ‘पंचायत’
फिल्म/वेब रिव्यू

वेब-रिव्यू : रंगीले परजातंतर की रंग-बिरंगी ‘पंचायत’

Next Post
रिव्यू-तस्वीर का दूसरा रुख ‘बारह बाइ बारह’

रिव्यू-तस्वीर का दूसरा रुख ‘बारह बाइ बारह’

Comments 1

  1. NAFEES AHMED says:
    1 year ago

    Sadharan …. lekin Kataaksh Bhari Kahani.. No Money Waste Movie

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में
संपर्क – dua3792@yahoo.com

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment

No Result
View All Result
  • होम
  • फिल्म/वेब रिव्यू
  • बुक-रिव्यू
  • यात्रा
  • यादें
  • विविध
  • हमारे बारे में

© 2021 CineYatra - Design & Developed By Beat of Life Entertainment