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Home फिल्म/वेब रिव्यू

ओल्ड रिव्यू-उलझे ताने-बाने सुलझाती ‘कहानी’

Deepak Dua by Deepak Dua
2012/03/09
in फिल्म/वेब रिव्यू
0
ओल्ड रिव्यू-उलझे ताने-बाने सुलझाती ‘कहानी’
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-दीपक दुआ… (This review is featured in IMDb Critics Reviews)

एक कहानी में कितनी सच्चाई और कितनी कल्पना होती है? क्या एक कहानी पूरी तरह से सच हो सकती है? या फिर क्या एक सच असल में कहानी हो सकता है? जितने उलझे हुए ये सवाल हैं लगभग उतने ही उलझे हुए ताने-बाने हैं इस फिल्म की कहानी के। लेकिन जब ये खुलते हैं तो सब सुलझ जाता है। आप इसे देख कर खाली हाथ नहीं लौटते हैं और यही एक कहानी की सफलता है कि जब आप कुछ पढ़ें या देखें तो आपको कुछ हासिल हो।

जल्द मां बनने जा रही विद्या बागची (विद्या बालन) अपने गुमशुदा पति अर्णव बागची की तलाश में लंदन से कोलकाता आई है। एक पुलिस अफसर की मदद से वह उस ऑफिस, गैस्ट हाऊस और उन तमाम जगहों पर उसे तलाशने की कोशिश करती है जिनका अर्णव ने जिक्र किया था। लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिलता। बल्कि हर कोई उसे यह यकीन दिलाने पर आमादा है कि इस नाम का कोई शख्स है ही नहीं। मगर एक शख्स है जिसकी शक्ल अर्णव से मिलती है और जैसे-जैसे विद्या उसके करीब पहुंचने की कोशिश करती है एक-एक करके लाशें गिरने लगती हैं। आखिर कौन है यह शख्स और कौन है अर्णव? क्यों विद्या को इन तक पहुंचने से रोका जा रहा है और कौन कर रहा है ये सब? इन तमाम सवालों के जवाब आखिर में मिलते हैं तो इस पूरी कहानी का सच चैंका देता है।

किसी भी फिल्म की कहानी और पटकथा उसकी नींव होती है और इस फिल्म की यह नींव बेहद मजबूत है। सस्पैंस, थ्रिल, ड्रामा और सब कुछ बेहद सहज अंदाज में-अपनी फिल्मों में यह सुखद संयोग कम ही दिखाई देता है। स्क्रिप्ट को बहुत ही कायदे के साथ फेलाया गया है और एक ऊंचाई पर ले जाकर उसे समेटा गया है। बतौर लेखक यह सुजॉय घोष की सफलता है तो बतौर निर्देशक उन्होंने जिस खूबी से इसे फिल्माया है वह उन्हें एक पुख्ता मकाम पर ले जाती है। फिल्म की लोकेशंस इसे और निखारती हैं। कोलकाता शहर को एक किरदार बना कर किसी फिल्म में इस्तेमाल करने की कोई मिसाल इधर हाल के बरसों में तो नजर नहीं आती है। कोलकाता को उसकी जीवंतता के साथ कैमरे में कैद करने के लिए सिनेमेटोग्राफर सेतू भी तारीफ के हकदार हो जाते हैं।

विद्या बालन ने अपने हर रोल से जैसे दो कदम आगे बढ़ने की ठान ली है। अपने रोल को उन्होंने बेहद सहजता से अंजाम दिया है। प्रमब्रत चट्टोपाध्याय कमाल के कलाकार हैं। सच तो यह है कि इस फिल्म के तमाम किरदारों को इस सफाई से लिखा गया है कि इनमें नजर आ रहे चेहरे कलाकारों के नहीं बल्कि उन किरदारों के ही लगने लगते हैं। यहां तक कि दो-तीन सीन में आने वाला एक बाल-कलाकार भी जेहन पर असर छोड़ता है। गानों की जरूरत इस कहानी में काफी कम थी और इनके मोह से बचा भी गया है। गैरजरूरी मसालों के बिना बस कहीं-कहीं सिनेमाई छूट लेती यह फिल्म एक शानदार अनुभव है जिसे मिस करना सही नहीं होगा।

अपनी रेटिंग-चार स्टार

(नोट-यह समीक्षा हिन्दी दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ में 10 मार्च, 2012 को प्रकाशित हुई थी।)

Release Date-09 March, 2012

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

Tags: Dhritiman Chatterjeekahaani reviewNawazuddin Siddiquiprambrata chatterjeesujoy ghoshvidya balan
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