-दीपक दुआ… (This Review is featured in IMDb Critics Reviews)
दक्षिण भारत की यात्रा पर निकला अपना उत्तर भारतीय हीरो वहां के एक ढाबे वाली से पूछता है-अम्मा, दाल-रोटी मिलेगी। जवाब मिलता है-नहीं बेटा, यहां तो इडली है, डोसा है। तो चलो, वही खिला दो।
यह फिल्म (Jaat) भी वैसी ही है। हिन्दी में बनी हुई एक साउथ इंडियन फिल्म। यहां तक कि जब पर्दे पर कुछ किरदार किसी दक्षिण भारतीय भाषा में संवाद बोलते हैं तो निर्देशक ने उनके सब-टाइटिल तक नहीं दिए है। भई इडली-डोसा खाइए, रेसिपी मत पूछिए। वैसे भी पिछले कुछ समय से फिल्म वालों ने पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, हर किस्म की थाली में साउथ इंडियन डिशेज़ परोस-परोस कर हमारी ज़बान का ज़ायका बदल डाला है। सो, जब तक इस ज़ायके की डिमांड है, इडली-डोसा ही परोसा जाएगा। भले ही इडली के संग छोले हों या डोसे के साथ दाल मक्खनी।
हां तो, इडली खाते हुए हमारे जाट हीरो की प्लेट एक गुंडे के धक्के से गिर जाती है। वह गुंडे को कहता है-सॉरी बोल! गुंडा नहीं बोलता तो हीरो उसे पीट डालता है। गुंडा कहता है कि मैं फलां नेता का आदमी हूं। हीरो जाकर उस नेता को भी पीट देता है। नेता कहता है कि मैं फलां बाहुबली का आदमी हूं। जाट हीरो उस बाहुबली को भी पीट देता है और इस तरह से वह जा पहुंचता है राणातुंगा की उस लंका में जहां सिर्फ उसकी हुकूमत चलती है और उसे पकड़ने आई पुलिस वालियों के कपड़े उसकी बीवी फड़वा देती है। लेकिन जब आ गया है जाट तो काहे का राणातुंगा और काहे के उसके ठाठ।
पहली बार साउथ से हिन्दी के मैदान में आए राइटर-डायरेक्टर गोपीचंद मलिनेनी की लिखी कहानी अस्सी के दशक की उन मसाला फिल्मों की याद दिलाती है जिनमें एक अकेला हीरो खलनायक की लंका जलाने निकलता था। इधर साउथ से डब होकर आ रही मसालेदार फिल्मों ने तो जैसे इस रेसिपी को पकड़ ही लिया है। खलनायक की लंका में उसके सिवाय किसी की नहीं चलती। उसका आतंक इतना कि जिसकी नज़रें उठीं, उसका सिर धड़ से अलग। हालांकि मन में यह सवाल भी आता है कि जब खलनायक को हजारों करोड़ का मुनाफा हो रहा है तो वह गरीबों की ज़मीन जबरन कब्जाने की बजाय उन्हें कुछ-कुछ लाख रुपए बांट कर राज़ी क्यों नहीं कर लेता? लोग भी खुश होंगे, बवाल भी नहीं मचेगा। लेकिन नहीं, खलनायक है तो आतंक फैलाएगा ही, सिर काटेगा ही। और सिर तो इस फिल्म में इतने कटे हैं कि सैंसर ने भी सोचा होगा कि किस-किस सीन पर कट लगाने को कहें। वैसे भी जब पर्दे पर सिर्फ एक लाइन की चेतावनी लिख कर हर किरदार को बीड़ी-सिगरेट पिलाई जा सकती है तो कटे सिरों को भी ब्लर किया ही जा सकता है।
ऐसी फिल्मों की स्क्रिप्ट में तर्क नहीं ढूंढे जाते। देखा जाता है तो यह, कि जो मसाले परोसे गए, उनमें तालमेल है कि नहीं? ‘जाट’ (Jaat) में यह तालमेल बखूबी दिखता है। हालांकि इसे देखते हुए लगता है कि आप फिल्म में एक्शन नहीं बल्कि ढेर सारे एक्शन के बीच-बीच में कहानी देख रहे हैं। लेकिन इसमें कम से कम हल्की ही सही, एक कहानी तो है। पटकथा कमज़ोर ही सही, उसका एक ढांचा तो है। इसके किरदार अपनी खूबियों पर टिके तो हुए हैं। एक्शन के बीच-बीच में हंसने-हंसाने वाले पल तो हैं। जय श्री राम, वर्दी की आबरू, देश की मिट्टी, तिरंगे की शान, उर्वशी रौतेला की टांगें जैसे ऊपर से छिड़के गए मसाले तो हैं। और एक्शन…! साउथ इंडियन स्टाइल के फिज़िक्स-कैमिस्ट्री की धज्जियां उड़ाने वाले एक्शन-सीक्वेंस अब हमें भाने लगे हैं। और जब 67 की उम्र पार कर चुके सनी देओल अपने ढाई किलो के हाथ से जीप रोकें तो लगता है सचमुच रोकी होगी भाई, आखिर सनी पा’जी हैं। तेज़ रफ्तार एक्शन देखने के शौकीन तो एक सैकिंड के लिए भी अपनी नज़रें पर्दे से नहीं हटा पाएंगे भले ही लाउड बैकग्राउंड म्यूज़िक आपके कान खा जाए। काम भी हर कलाकार का बढ़िया रहा है, भले ही उनके रोल की लंबाई या गहराई कम क्यों न हो। रणदीप हुड्डा, विनीत कुमार सिंह, सैयामी खेर, जगपति बाबू, उपेंद्र लिमये, मकरंद देशपांडे वगैरह जंचे और राणातुंगा की पत्नी बनीं रेजिना कसांद्रा अलग से उभर कर दिखीं।
‘जाट’ (Jaat) में एक संवाद है कि जाट वो होता है जिसका सिर कट जाए तो उसका धड़ लडता रहता है। ‘जाट’ जैसी फिल्में भी इसी कैटेगरी में आती हैं। इनका सिर (पैर) नहीं है, सिर्फ धड़ लड़ रहा है, एक्शन कर रहा है। इन्हें देखने वाले भी अपने सिर (बुद्धि) का इस्तेमाल करने की बजाय एक्शन जैसे मसालों पर ध्यान दें तो सीटी बजाएंगे, चटखारे लेते हुए वापस जाएंगे। कल को इसका सीक्वेल बना तो लौट कर भी आएंगे।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि यह कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस पोस्ट के नीचे कमेंट कर के इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
Release Date-10 April, 2025 in theaters
(दीपक दुआ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म समीक्षक हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के साथ–साथ विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, वेब–पोर्टल, रेडियो, टी.वी. आदि पर सक्रिय दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य भी हैं।)
Review aapne de hi diye hai, to sochna kya movie dekhne Jana hai bas🤩
आपकी समीक्षा बहुत शानदार है और शब्द चयन तो सोने पे सुहागा 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
धन्यवाद
The name is enough of Sunny Deol Ji….
Jaisa Naam… Waisa Kaam….